नीदरलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री ड्राइस वेन एग्त और पत्नी यूजीन (दोनों की उम्र 93 साल) ने सोमवार को कानूनी तौर पर इच्छा मृत्यु (एक्टिव यूथेनेसिया) के जरिए प्राण त्यागे। दोनों लंबे वक्त से बीमार थे।
डॉक्टरों की मदद से दोनों ने अंतिम सांस ली और आखिरी वक्त तक ये एक दूसरे का हाथ थामे हमसफर ही बने रहे। नीदरलैंड की एक कानूनी अधिकार संस्था के मुताबिक- इन्हें बिल्कुल आसपास की कब्रों में दफना दिया गया।
एग्त पत्नी यूजीन को बहुत चाहते थे। कुछ साल पहले यूजीन ने कहा था- वो आज भी मुझे माय गर्ल कहते हैं।
वक्त और दिन खुद चुना
एग्त 1977 से 1982 के दौरान नीदरलैंड के प्रधानमंत्री रहे। वो क्रिश्चियन डेमोक्रेट पार्टी के मेंबर थे। नीदरलैंड में साल 2000 में यूथेनेसिया को कानूनी तौर पर मान्यता मिली थी। इसके तहत वो व्यक्ति इच्छा मृत्यु मांग सकता है जो ‘ऐसी बीमारी से पीड़ित हो, जो लाइलाइज हो या उसकी सेहत में सुधार की कोई गुंजाइश न बची हो’।
नीदरलैंड में इच्छा मृत्यु पर एक नजर
नीदरलैंड में आमतौर पर इच्छा मृत्यु की मंजूरी मिलने के बाद डॉक्टर्स लास्ट टाइम प्रोसीजर संबधित व्यक्ति के घर पर ही करते हैं। इस दौरान पेशेंट को एक खास तरह का इंजेक्शन दिया जाता है और कुछ ही मिनिट में उसकी सांसें थम जाती हैं।
खास बात यह है कि मौत के बाद भी इस मामले की जांच होती है। अगर डॉक्टर्स की जरा भी लापरवाही सामने आती है तो उन्हें 12 साल की कैद हो सकती है। 2022 के दौरान नीदरलैंड में कुल 8501 लोगों ने इस कानूनी तरीके से प्राण त्यागे थे।
68 साल साथ रहने के बाद एग्त और यूजीन ने अपनी मौत का वक्त और दिन खुद तय किया। इस दौरान डॉक्टर्स का पैनल मौजूद रहा।
एग्त को 2019 में ब्रेन हेमरेज हुआ था। उस दौरान वो एक सेमिनार में स्पीच दे रहे थे। कई बार वे पार्टी लाइन क्रॉस कर लेते थे। इसलिए विरोध भी होता था। यही वजह थी कि 2017 में उन्होंने पार्टी ही छोड़ दी। वो इजराइल के विरोधी और फिलिस्तीन के कट्टर समर्थक थे। इस कपल के तीन बच्चे हैं।
बच्चों को भी इच्छा मृत्यु का अधिकार
‘यरूशलम पोस्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक- 2023 में नीदलैंड उस वक्त विवादों में आ गया था, जब यहां की सरकार ने उन बच्चों को भी यूथेनेसिया का हक दे दिया, जो लाइलाज बीमारी से पीड़ित हों और जिन्हें इलाज से आराम मिलने की कोई उम्मीद न हो। इस नियम में यह भी साफ था कि एक साल के दौरान सिर्फ 5 से 10 बच्चों को यह अधिकार मिल सकता है।
इसी नियम में यह भी साफ था कि इच्छा मृत्यु का अधिकार सिर्फ 12 साल या इससे ज्यादा उम्र के बच्चों को ही मिलेगा। इसके लिए उनके पेरेंट्स की लिखित मंजूरी जरूरी होगी। 16 साल ये इससे ज्यादा उम्र के लोगों को पेरेंट्स की मंजूरी दरकार नहीं होगी।