12 घंटों से लाशों के ढेर संग, टुकड़ों में भी तलाश रहा बेटे के निशां... रुला देगी इस बदहवास पिता की कहानी
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03-06-2023 06:41 PM
भुवनेश्वर: बालासोर ट्रेन हादसे के पास एक स्कूल में लाशों के ढेर लगे थे। इन लाशों के बीच एक शख्स किसी को तलाश रहा था। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। सफेद चादरों से ढकी हर एक लाश का चेहरा खोलकर देखने के बाद वह बंद कर देता। यह शख्स बदहवाश था। चीख रहा था। कुछ लाशों के चेहरे इतने खराब थे कि उन्हें देखकर अपनी आंखें बंद कर लेते और फिर अगली लाश की ओर बढ़ जाते। ट्रेन हादसे के बाद आधी रात लाशों के ढेर के बीच पहुंचे यह शख्स दोपहर तक यही करते रहे। कुछ लोगों ने पूछा तो पता चला कि वह अपने बेटे को ढूंढ रहे हैं, जिसका कोरोमंडल ट्रेन हादसे के बाद से कुछ पता नहीं चल रहा था।
यह शख्स थे 53 वर्षीय पिता रवींद्र शॉ। वह अपने बेटे गोविंदा शॉ के साथ सफर कर रहे थे। दोनों बाप-बेटे परिवार पर हुए 15 लाख के कर्च को चुकाने के लिए कमाने निकले थे। बेटा लापता है और अब पिता बदहवास।
15 लाख का कर्ज उतारने निकले थे पिता और बेटा
रवींद्र शॉ ने जो बताया उसे सुनकर ही रूप कांप जाए, लेकिन उन्होंने जो देखा, जरा सोचिए कि उन पर तब क्या गुजरी होगी? रवींद्र शॉ ने बताया कि वह और उनका बेटा बैठकर भविष्य की चर्चा कर रहे थे कि कितना कमाना है और कितना बचाना है। वह कब तक अपना कर्ज उतार सकते हैं। तभी अचानक कानों को चीर देने वाली आवाज आई और ट्रेन हादसा हो गया।
टुकड़ों में तलाशे बेटे के निशां
रवींद्र ने बताया कि उन्हें उसके बाद कुछ होश नहीं, कुछ मिनटों के लिए अंधेरा छा गया और उनका दिमाग सुन्न हो गया। जब होश आया तो सब तबाह हो चुका था। हर तरफ लाशें और शवों के टुकड़े पड़े थे। वह अपने बेटे को इन लाशों के टुकड़ों में ढूंढने लगे। कटे सर से लेकर धड़ों को वह गौर से देख रहे थे। किसी का कटा हाथ दिख जाता या पैर उसे भी गौर से देखते कि कहीं उनके बेटे के शरीर का कोई अंग तो नहीं। आधी रात तक वह बदहवाश ऐसे ही बेटे को खोजते रहे। उसके बाद वहां पहुंच गए जहां शवों का ढेर रखा गया था।
टुकड़ों में बंटकर एक के ऊपर एक चढ़ीं बोगियां, फिर... ओडिशा ट्रेन हादसे की तस्वीरें ही बयां कर रही खौफनाक मंजर
हर एक लाश का देखा चेहरा
रवींद्र पास के एक स्कूल में पहुंचे जहां दर्जनों लाशें ढकी रखी थीं। वह उनके बीच में गए और एक तरह से एक-एक करके लाशों को देखने लगे। लेकिन उन्हें उनका बेटा नहीं मिला। रवींद्र वहीं बैठकर रोने लगे। कुछ लोगों ने उन्हें दिलासा दी और पीने के लिए पानी दिया। वह गुमसुम वहीं बैठ गए और फिर जो लाशें आती उन्हें देखने दौड़ पड़ते।
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