अरब सागर में लगातार हो रहे हूती विद्रोहियों के हमलों में पहली बार जहाज के 3 क्रू मेंबर्स की मौत हुई है।
अमेरिकी मीडिया CNN के मुताबिक, यमन के हूती विद्रोहियों ने 6 मार्च को अदन की खाड़ी में एक जहाज पर हमला कर दिया था। 'ट्रू कॉन्फिडेंस' नाम के जहाज पर हुआ हमला हूती विद्रोहियों का ऐसा पहला हमला है जिसमें लोगों की जान गई है। 4 क्रू मेंबर्स घायल भी हुए हैं।
ट्रू कॉन्फिडेंस एक लाइबेरियाई जहाज है। इस पर बारबाडोस का फ्लैग लगा हुआ था। हमले के बाद शिप के एक हिस्से में आग लग गई थी।
लाल सागर में हूतियों के हमले के बाद जहाज डूबा
2 मार्च को लाल सागर में लगातार हो रहे हूतियों के हमलों के बीच पहली बार कोई जहाज डूब गया था। न्यूज एजेंसी AP के मुताबिक, हूती विद्रोहियों ने 18 फरवरी को बाब-अल मंडब स्ट्रेट में रूबीमार नाम के जहाज पर मिसाइल से अटैक किया था। इसके बाद जहाज के क्रू मेंबर्स को ब्रिटिश मिलिट्री ने रेस्क्यू किया।
मीडिया हाउस इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक रूबीमार एक ब्रिटिश जहाज था। इस पर बेलीज का फ्लैग लगा हुआ था। हूतियों ने जब इस पर हमला किया तब यह यमन के मोखा पोर्ट से करीब 27.78 किमी की दूरी पर था। पिछले 12 दिनों से यह उत्तर की तरफ बढ़ रहा था, लेकिन लाल सागर में तूफान और खराब मौसम की वजह से जहाज डूब गया।
भारत का 80% व्यापार समुद्री रास्ते से
इजराइल-हमास जंग के बीच फिलिस्तीनियों के समर्थन में हूती विद्रोही लगातार लाल सागर और अरब सागर में जहाजों पर हमला कर रहे हैं। इसकी वजह से कई जहाज अपना रास्ता भी बदल रहे हैं। इन हमलों का असर भारत पर भी पड़ रहा है। हूतियों ने कई बार भारत आ रहे जहाजों या फिर भारतीय क्रू वाले जहाजों पर हमला किया है।
ग्लोबल ट्रेड का करीब 12% और 30% कंटेनर ट्रैफिक हर साल लाल सागर के स्वेज कैनाल से होकर गुजरता है। हूती विद्रोहियों के हमलों से यूरोप और एशिया के बीच मुख्य मार्ग पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
भारत का 80% व्यापार समुद्री रास्ते से होता है। वहीं 90% ईंधन भी समुद्री मार्ग से ही आता है। समुद्री रास्ते में हमले से भारत के कारोबार पर सीधा असर पड़ता है। इससे सप्लाई चेन बिगड़ने का खतरा है। हूतियों से निपटने के लिए अमेरिका ने करीब 10 देशों के साथ मिलकर एक गठबंधन भी बनाया है, जो लाल सागर में हूतियों को रोकने और कार्गो शिप्स को हमले से बचाने का काम कर रहा है।
कौन हैं हूती विद्रोही
साल 2014 में यमन में गृह युद्ध शुरू हुआ। इसकी जड़ शिया-सुन्नी विवाद है। कार्नेजी मिडल ईस्ट सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों समुदायों में हमेशा से विवाद था जो 2011 में अरब क्रांति की शुरूआत से गृह युद्ध में बदल गया। 2014 में शिया विद्रोहियों ने सुन्नी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
इस सरकार का नेतृत्व राष्ट्रपति अब्दरब्बू मंसूर हादी कर रहे थे। हादी ने अरब क्रांति के बाद लंबे समय से सत्ता पर काबिज पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह से फरवरी 2012 में सत्ता छीनी थी। हादी देश में बदलाव के बीच स्थिरता लाने के लिए जूझ रहे थे। उसी समय सेना दो फाड़ हो गई और अलगाववादी हूती दक्षिण में लामबंद हो गए।
अरब देशों में दबदबा बनाने की होड़ में ईरान और सउदी भी इस गृह युद्ध में कूद पड़े। एक तरफ हूती विद्रोहियों को शिया बहुल देश ईरान का समर्थन मिला। तो सरकार को सुन्नी बहुल देश सउदी अरब का।
देखते ही देखते हूती के नाम से मशहूर विद्रोहियों ने देश के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। 2015 में हालात ये हो गए थे कि विद्रोहियों ने पूरी सरकार को निर्वासन में जाने पर मजबूर कर दिया था।