मीडिया रिपोर्ट्स में आशंका जताई गई है कि इससे मिडिल ईस्ट में तनाव और बढ़ सकता है। ईरान के राष्ट्रपति और सुप्रीम लीडर से लेकर हिजबुल्लाह और हूतियों जैसे आतंकी संगठनों ने भी इजराइल से बदला लेने की बात कही है।
वहीं, इजराइल और हमास में 10 महीने से जारी जंग के बीच मध्यस्थता कराने की कोशिश में अहम भूमिका निभा रहे हानियेह की मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। हानियेह के बाद क्या हमास कमजोर पड़ जाएगा? इससे इजराइल और हमास की जंग पर क्या असर पड़ेगा? क्या हमास हानियेह की मौत का बदला इजराइली बंधकों से ले सकता है?
दैनिक भास्कर ने मिस्र में भारत के राजदूत रह चुके नवदीप सूरी से बात कर इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश की…
सवाल 1: हानियेह की मौत से क्या हमास खत्म हो जाएगा?
जवाब: इस सवाल का जवाब जानने के लिए सबसे पहले हमास को समझना होगा। 1948 में इजराइल के अस्तित्व में आने के बाद से ही यूहदियों और फिलिस्तीनियों के बीच तनाव रहा है। 1970 के दशक में फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी PLO बनाया गया। इसने इजराइल पर कई हमले किए। 2 दशक तक चले टकराव के बाद इजराइल और PLO में एक शांति समझौता हुआ।
इसके तहत PLO ने हिंसा और चरमपंथ का रास्ता छोड़ने का वादा किया। हालांकि, फिलिस्तीनियों के एक उग्रवादी संगठन को ये समझौता मंजूर नहीं था। इस संगठन का नाम था हमास। इसकी स्थापना 1987 में मौलवी शेख अहमद यासीन ने की थी। हमास को चार हिस्सों में बांटा जा सकता है।
भारत के पूर्व राजदूत नवदीप सूरी ने बताया कि इस्माइल हानियेह की मौत निश्चित तौर पर हमास के लिए बड़ा झटका था, लेकिन यह संगठन का अंत नहीं हो सकता। पॉलिटिकल लीडर के तौर पर इस्माइल हानियेह का दूसरा टेन्योर जल्द ही खत्म होने वाला था। हमास के नियमों के मुताबिक, कोई भी पॉलिटिकल लीडर 2 बार ही इस पद पर चुना जा सकता है। ऐसे में हानियेह जल्द ही अपने पद से हटने वाला था।
हमास की स्थापना से लेकर अब तक 37 सालों में संगठन को कई लीडर मिले। यह एक पॉलिटिकल पार्टी होने के साथ ही एक आंदोलन का प्रतीक है। इजराइल डिफेंस फोर्स (IDF) के प्रवक्ता एडमिरल डैनियल हगारी ने भी कहा था कि हमास एक विचारधारा है।
यह फिलिस्तीनियों के दिल में बसी हुई है। ऐसे में हानियेह की मौत से इस संगठन का अंत नहीं होगा। हानियेह से पहले खालिद मशाल हमास के पॉलिटिकल हेड थे। वे दोहा में ही रहते हैं। हानियेह के बाद वे इस पद के सबसे प्रबल दावेदार हैं।
सवाल 2: हानियेह की मौत के बाद अब जंग का रुख क्या रहेगा?
जवाब 2: विदेश मामलों के एक्सपर्ट नवदीप सूरी ने बताया कि गाजा पट्टी में हमास का नेतृत्व याह्या सिनवार करता है। वहीं जंग की जिम्मेदारी हमास की मिलिट्री विंग अल-कासिम ब्रिगेड के ऊपर है। इसका नेतृत्व हमास कमांडर मोहम्मद दाइफ करता है। हानियेह के पास हमास की राजनीति और कूटनीति से जुड़ी जिम्मेदारियां थीं। ऐसे में उसकी मौत के बाद जंग का रुख बदलने की उम्मीद बेहद कम है।
पिछले साल 7 अक्टूबर को इजराइल पर हमास के हमले के बाद संगठन के अधिकारी अली बाराकेह ने न्यूज एजेंसी AP को बताया था कि हमले से जुड़ी जानकारी हमास के कुछ ही नेताओं के पास थी। हमले की प्लानिंग हमास के करीब 6 कमांडरों ने मिलकर की थी।
इजराइल पर हमले के वक्त इस्माइल हानियेह तुर्किये में था। उसने टीवी पर हमले की खबर देखी थी और फिर नमाज अदा की थी। हमास के अधिकारी के बयान के बाद आशंका जताई गई थी कि इजराइल हमले की सटीक जानकारी हानियेह के पास भी नहीं थी।
सवाल 3: हमास और इजराइल के बीच सीजफायर की कोशिशों पर क्या असर पड़ेगा?
जवाब: एक्सपर्ट नवदीप सूरी के मुताबिक, हानियेह की मौत के बाद सीजफायर से जुड़ी बातचीत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है। दरअसल, अब तक मध्यस्थता के लिए सारी बैठकों में हमास का नेतृत्व हानियेह ही कर रहा था।
सीजफायर के लिए कतर, मिस्र और अमेरिका जैसे तमाम देशों महीनों से समझौता कराने की जद्दोजहद में लगे हुए थे। अब हमास के चीफ नेगोशिएटर की ही मौत हो गई है। इजराइल पर ही इसका आरोप भी लगाया गया है। ऐसे में अब दोनों पक्षों के बीच सीजफायर समझौते पर चर्चा दोबारा कब शुरू हो पाएगी, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
दूसरी तरफ, इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर भी यह आरोप लगे हैं कि वे सीजफायर नहीं होने देना चाहते हैं। दरअसल, नेतन्याहू के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई केस चल रहे हैं। इजराइली PM को डर है कि अगर जंग रुक गई, तो उनसे प्रधानमंत्री की कुर्सी छिन सकती है।
नेतन्याहू का लक्ष्य हमास पर जीत दर्ज कर देश की सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करना है। ऐसे में उन्होंने अपनी कुर्सी बचाने के लिए हानियेह के खिलाफ इस ऑपरेशन को अंजाम दिया।
सवाल 4: क्या इजराइल से बदला लेने की कोशिश करेगा हमास? क्या इसके लिए वह बंधकों को मार देगा?
जवाब: नहीं। इजराइल के खिलाफ जंग में बंधक अब तक हमास का सबसे बड़ा हथियार साबित हुए हैं। पिछले साल हुए सीजफायर के दौरान बंधकों के सहारे हमास ने इजराइली जेलों में बंद कई फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा कराया था। ये बंधक ही अब तक इजराइल को गाजा पर पूरी तरह कब्जा करने से रोक पाए हैं।
इजराइल में बंधकों के परिजन भी लगातार नेतन्याहू सरकार पर हमास के साथ समझौता करने का दबाव बनाते रहते हैं। अगर हमास ने बंधकों को मार दिया, तो फिर उसके पास इजराइल से अपनी शर्तें मनवाने का कोई तरीका नहीं होगा। इजराइली सेना गाजा पर अपने हमलों को और तेज कर सकती है।
सवाल 5: यह हमला ईरान में किया गया। क्या इससे एक बार फिर ईरान और इजराइल में टकराव बढ़ सकता है?
जवाब: 1 अप्रैल को इजराइल ने सीरिया में ईरानी दूतावास के पास एक एयरस्ट्राइक की थी। इसमें ईरान के दो टॉप आर्मी कमांडर्स समेत 13 लोग मारे गए थे। इसके बाद ईरान ने बदला लेने के लिए इजराइल पर अटैक करने की धमकी दी थी। इसके ठीक 12 दिन बाद 13 अप्रैल को ईरान ने इजराइल पर 300 मिसाइलों और ड्रोन्स से अटैक किया था।
तब हमला सीरिया में इजराइली दूतावास पर हुआ था, लेकिन इस बार ईरान की राजधानी में उसके मेहमान इस्माइल हानियेह की हत्या की गई है। ईरान ने इसे इजराइल की साजिश बताया है। बुधवार को ईरान के राष्ट्रपति मसूद पजशकियान ने इजराइल से बदला लेने की बात कही थी। वहीं देश के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह खामेनेई ने भी कहा था कि इजराइल ने उनके मेहमान को मारा है। अब इसका बदला लेना ईरान का फर्ज है।
हानियेह की मौत के बाद मिडिल ईस्ट में तनाव बढ़ गया है। हानियेह की मौत के बाद ईरान का मकसद क्षेत्र में यह संदेश देना होगा कि कोई भी उनके देश में घुसकर हमले करेगा, तो उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। ऐसे में अगले 1 हफ्ते के अंदर ईरान इजराइल को जवाब देने के लिए ठोस कदम उठा सकता है।
सवाल 6: क्या हमले के पीछे अमेरिका का हाथ हो सकता है? क्या उसे पहले से हमले की जानकारी होगी?
जवाब: नहीं। इजराइल ने पहले भी कई ऐसे ऑपरेशन्स चलाए हैं, जिसकी सूचना अमेरिका को नहीं दी गई थी। इन्हें ज्यादातर इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने अंजाम दिया था।
मिस्र में भारत के राजदूत रह चुके नवदीप सूरी ने कहा, "अमेरिका खुद कई महीनों से इजराइल-हमास के बीच समझौता कराने की कोशिश कर रहा है। US के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जेक सुलिवन और CIA के अधिकारी इसके लिए कई बार कतर और मिस्र के साथ बैठकें भी कर चुके हैं।"
दरअसल, अमेरिका में इस साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं। 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका में 44 लाख से ज्यादा मुस्लिम रहते हैं। ऐसे में वे आगामी चुनाव में एक बड़ा वोट बैंक रहेंगे। गाजा में इजराइल के बढ़ते हमलों के बीच अमेरिका की यूनिवर्सिटीज और व्हाइट हाउस के बाहर बड़े स्तर पर प्रदर्शन होते रहे हैं। इस दौरान विरोधियों ने इजराइल को समर्थन न देने की मांग उठाई है।
वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आम फिलिस्तीनियों पर हो रहे हमलों के खिलाफ विरोध लगातार बढ़ा है। ऐसे में इजराइल और हमास के बीच समझौता होने से अमेरिका के लिए भी फायदा है।