अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की सदस्यता वाले संगठन AUKUS में जल्द ही जापान की एंट्री हो सकती है। चीन का मुकाबला करने के लिए तीनों देश जल्द ही बातचीत शुरू करेंगे, जिससे जापान के सदस्य बनने का रास्ता खुल सके। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के हवाले से इसकी जानकारी दी।
जापान को संगठन के पिलर 2 का हिस्सा बनाया जाएगा। संधि के तहत, सदस्य देश साथ मिलकर, क्वांटम कम्प्यूटिंग, हाइपरसोनिक, AI और साइबर तकनीकों पर काम करेंगे। जापान AUKUS के पहले पिलर का हिस्सा नहीं होगा, जिसका फोकस इस वक्त ऑस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर पावर वाली सबमरीन देना है।
अमेरिका बोला- चीन को रोकने में काम आएगा पनडुब्बी प्रोजेक्ट
अमेरिका के उप विदेश मंत्री कर्ट कैम्बेल ने बुधवार को कहा, "AUKUS का पनडुब्बी प्रोजेक्ट ताइवान के खिलाफ चीन के किसी भी कदम को रोकने में मददगार रहेगा। हम अगले हफ्ते संगठन से जुड़ी अहम घोषणा कर सकते हैं।" रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार को सदस्य देशों के रक्षा मंत्री जापान को संगठन में शामिल होने से जुड़ी घोषणा कर सकते हैं।
इसके अलावा, जापान में मौजूद अमेरिका के राजदूत राह्म इमैनुअल ने भी कुछ दिन पहले कहा था कि जापान पिलर 2 का पहला पार्टनर बनने जा रहा है। अब उनके बयान को जापान के AUKUS में शामिल होने से जोड़कर देखा जा रहा है।
अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया मिलकर बनाएंगे परमाणु पनडुब्बी
पिछले साल कैलिफोर्निया में हुई AUKUS की मीटिंग में 2030 तक ऑस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर पावर वाली सबमरीन देने की डील की गई थी। प्रोजेक्ट के तहत ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया मिलकर 8 SSN-AUKUS सबमरीन बनाएंगे, जिसमें अमेरिकी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा।
AUKUS की डील के मुताबिक, अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को 3 US वर्जीनिया क्लास न्यूक्लियर पावर्ड सबमरीन देगा। वहीं, जरूरत पड़ने पर उसे 2 और सबमरीन भी सप्लाई की जाएंगी। वहीं चीन ने हमेशा से ही AUKUS को वैश्विक शांति के लिए खतरनाक बताया है। बता दें कि 1950 के बाद ये पहला मौका था जब अमेरिका अपनी न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी को किसी और देश के साथ साझा करने के लिए तैयार हुआ था।
क्या है AUKUS?
सितंबर 2021 में बना AUKUS ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका के बीच नया रक्षा समूह है, जो इंडो-पैसेफिक क्षेत्र पर केंद्रित है। इस गठबंधन (AUKUS) से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामकता को कंट्रोल किया जा सकेगा।
इस संगठन की वर्किंग को 2 पिलर में बांटा गया था। पहले पिलर का मकसद परमाणु पनडुब्बी की टेक्नोलॉजी साझा करना है। वहीं दूसरे पिलर का मकसद हाइपरसोनिक और AI जैसी एडवांस्ड तकनीक पर मिलकर काम करना।
2021 में कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि AUKUS के जरिए भारत के लिए परमाणु सहयोग के नए रास्ते खुलेंगे। लेकिन अमेरिका ने साफ कर दिया था कि वह AUKUS में भारत को शामिल नहीं करेगा।
QUAD से कितना अलग है AUKUS?
क्वॉड देशों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत शामिल हैं। ये चारों मिलकर बहुपक्षीय बातचीत करते हैं। इसमें हाई टेक्नोलॉजी या कोई बड़ी डील नहीं होती है। वहीं QUAD से अलग हटकर ऑस्ट्रेलिया के साथ AUKUS समझौता एक नए मिलिट्री अलायंस की शुरुआत है। इस तरह का मिलिट्री अलायंस करने में भारत में एक तरह की हिचकिचाहट है, क्योंकि वो अमेरिका के साथ-साथ रूस और ईरान से भी संबंध रखना चाहता है।