नई दिल्ली । लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के समक्ष कठिन समय में बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। कदम-कदम पर मार्ग-दर्शन करने वाले उनके पिता और पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान अब नहीं रहे। सामने बिहार विधानसभा का चुनाव है। पार्टी अकेले ही चुनावी महासमर में उतरी है। ऐसे समय में चिराग के कंधे पर परिवार को संबल देने के साथ ही पार्टी का नेतृत्व की भी जिम्मेदारी होगी। इसके अलावा पार्टी प्रत्याशियों के चयन और चुनाव प्रचार की कमान संभालने जैसी बड़ी चुनौतियां भी होंगी। हालांकि पार्टी की कमान चिराग के हाथों में रामविलास पासवान करीब एक साल पहले ही दे चुके थे। पार्टी का अंतिम निर्णय चिराग स्वयं लेने लगे थे। पर, रामविलास पासवान का अनुभव और उनका बड़े कद का लाभ भी चिराग पासवान को बखूबी मिलता रहता था, जो अब नहीं मिलेगा। अभी उनकी सबसे बड़ी परीक्षा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन होगी। चुनाव सिर पर है। दूसरे चरण के नामांकन के लिए मात्र छह दिन शेष हैं। लेकिन अब तक इस चरण के प्रत्याशियों के नाम तय नहीं हुए हैं। तुरंत तीसरे चरण का नामांकन भी शुरू होगा। इसके साथ ही पहले चरण के प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार भी शुरू हो चुका है। पहले चरण का मतदान 28 अक्टूबर को है। उधर, पिता की तबीयत खराब रहने के कारण पिछले कुछ सप्ताह से वे पार्टी को अपेक्षित समय नहीं दे पा रहे थे। वहीं, 8 अक्टूबर को पिता के निधन के बाद फिलहाल उनके लिए स्थितियां सामान्य नहीं हैं। विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी के घोषणा पत्र को अंतिम रूप दिया जा रहा था, जिसे उनके हाथों की जारी होना था। ये सारे कार्य आगे उन्हें ही पूरा करना है और इसके लिए उनके पास समय बहुत कम है।