महाराष्ट्र के सोलापुर में सोमवार को गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के 9 और केस सामने आए। अब एक्टिव मरीजों की संख्या बढ़कर 110 हो गई है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक इन मरीजों में 73 पुरुष और 37 महिलाएं हैं, जबकि 17 मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं।
इससे पहले 26 जनवरी को सोलापुर के रहने वाले 40 साल के शख्स की मौत इसी GB सिंड्रोम के कारण हुई थी, इसकी पुष्टि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अबितकर ने भी की।
सोलापुर सरकारी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजीव ठाकुर के मुताबिक मरीज को सांस फूलने, निचले अंगों में कमजोरी और दस्त जैसे लक्षण थे। उसे 18 जनवरी से लगातार वेंटिलेटर सपोर्ट पर था।
डीन ने बताया कि मौत के कारणों का पता लगाने के लिए क्लिनिकल पोस्टमार्टम किया गया। जिसमें वजह GB सिंड्रोम बताई गई। जांच के लिए ब्लड सैंपल नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) भेजा गया है।
शहर के अलग-अलग हिस्सों से 34 वाटर सैंपल भी कैमिकल और बायोलॉजिक एनालिसिस के लिए पब्लिक हेल्थ लैब भेजे गए। इनमें से सात सैंपल में पानी के दूषित होने की सूचना मिली है।
गौरतलब है कि पुणे में 9 जनवरी को अस्पताल में भर्ती मरीज GBS पॉजिटिव आया था, यह पहला केस था। 19 दिन में एक्टिव केस बढ़ गए हैं।
स्वास्थ्य विभाग ने 35 हजार से ज्यादा घरों की जांच की
सोलापुर में स्वास्थ्य विभाग की टीमें मरीजों की जांच के लिए सर्वे कर रही हैं। अब तक कुल 35,068 घरों का सर्वे किया जा चुका है। इनमें पुणे नगर निगम के 23,017 घर, पिंपरी-चिंचवाड़ नगर निगम के 4,441 घर और ग्रामीण क्षेत्रों के 7610 घर शामिल हैं।
स्वास्थ्य मंत्री प्रकाश अबितकर ने भी खुलासा किया कि GB सिंड्रोम के 80% मामले सिंहगढ़ रोड पर नांदेड़ गांव में एक बड़े कुएं के आसपास के इलाकों से रिपोर्ट किए गए हैं।
NIV को 44 स्टूल सैंपल भेजे गए हैं। सभी का एंटरिक वायरस पैनल टेस्ट किया गया। इनमें से 14 नोरोवायरस पॉजिटिव और 5 कैम्पिलोबैक्टर पॉजिटिव हैं। कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया, जो आमतौर पर पेट में संक्रमण का कारण बनता है, GBS रोग को ट्रिगर करता है। इस बैक्टीरिया से दूषित पानी पीने से नर्व डिसऑर्डर का खतरा बढ़ सकता है।
इसके अलावा NIV को 59 ब्लड सैंपल भी जांच के लिए भेजे गए थे। ये सभी जीका, डेंगू, चिकनगुनिया नेगेटिव मिले।
महाराष्ट्र सरकार की मदद करने केंद्र ने भेजी टीम
GBS के बढ़ते मामलों को लेकर केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र सरकार की मदद के लिए हाई लेवल स्पेशलिस्ट टीम भेजी है। स्वास्थ मंत्रालय की इस 7 सदस्यों वाली टीम में टीम में राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) दिल्ली, निमहंस बेंगलुरु, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के क्षेत्रीय कार्यालय और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी), पुणे के विशेषज्ञ शामिल हैं।
हालांकि राज्य सरकार ने भी GB सिंड्रोम से बचने के लिए लोगों को सलाह दी है कि वे उबला हुआ पानी पिएं। ठंडा खाना खाने से बचें।
इलाज भी महंगा, एक इंजेक्शन की कीमत 20 हजार
GBS का इलाज भी महंगा है। डॉक्टरों के मुताबिक मरीजों को आमतौर पर इम्युनोग्लोबुलिन (IVIG) इंजेक्शन लगवाना पड़ता है। निजी अस्पताल में एक इंजेक्शन की कीमत 20 हजार रुपए है। पुणे के अस्पताल में भर्ती 68 साल के मरीज के परिजन ने बताया कि इलाज के दौरान पेशेंट को 13 इंजेक्शन लगाने पड़े थे।
डॉक्टरों ने मुताबिक GBS की चपेट में आए 80% मरीज अस्पताल से छुट्टी के बाद 6 महीने में बिना किसी सपोर्ट के चलने-फिरने लगते हैं। लेकिन कई मामलों में मरीज को एक साल या उससे ज्यादा समय भी लग जाता है।