संयुक्त अरब अमीरात की कोर्ट ने 57 बांग्लादेशियों को शेख हसीना की सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने पर जेल भेज दिया है। BBC के मुताबिक इनमें से तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, जबकि 53 को 10 साल और एक को 11 साल की सजा दी गई है।
कोर्ट ने आदेश दिया कि सजा पूरी होने के बाद इन लोगों को वापस बांग्लादेश डिपोर्ट कर दिया जाए। दरअसल, ये प्रदर्शनकारी UAE में रहकर बांग्लादेश में आरक्षण का विरोध कर रहे थे। इनके वकील ने कहा, "प्रवासी बांग्लादेशियों का मकसद देश में शांति भंग करना नहीं था।" वहीं स्थानीय लोगों ने बताया कि प्रदर्शनकारी जल्द ही एक बड़ा मार्च निकालने की प्लानिंग कर रहे थे।
खलीज टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इन बांग्लादेशियों को 19 जुलाई को गिरफ्तार किया गया था। इन पर UAE में हिंसा भड़काने और दंगे करने का आरोप था। 30 लोगों की टीम की तरफ से जांच पड़ताल करने के बाद सोमवार को सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां इन्हें सजा सुनाई गई।
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सजा की आलोचना की है। UAE में दूसरे देशों के खिलाफ प्रदर्शन करना गैरकानूनी है। UAE के अमीर के मुताबिक, इससे दूसरे देशों के साथ रिश्ते खराब होने का खतरा रहता है। दरअसल, UAE में 90% विदेशी रहते हैं। इनमें से एक-तिहाई बांग्लादेशी हैं।
बांग्लादेश में 12 जुलाई से हिंसा जारी
बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ 12 जुलाई से हिंसा जारी है। इसमें अब तक 163 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और 500 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 19 जुलाई से देश में कर्फ्यू लगा रखा है।
देश की सड़कों पर हिंसा काबू करने के लिए सेना को तैनात किया गया है। इसके साथ ही प्रदर्शनकारियों को देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने बदला आरक्षण का नियम
बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को सरकारी नौकरियों में 56% आरक्षण देने के ढाका हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया था। कोर्ट ने रविवार को आदेश जारी करते हुए आरक्षण को 56% से घटाकर 7% कर दिया था।
इसमें से स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार वालों को 5% आरक्षण मिलेगा, जो पहले 30% था। बाकी 2% में एथनिक माइनॉरिटी, ट्रांसजेंडर और दिव्यांग शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 93% नौकरियां मेरिट के आधार पर मिलेंगी।
बांग्लादेश में कैसी थी आरक्षण की व्यवस्था
बांग्लादेश 1971 में आजाद हुआ था। बांग्लादेशी अखबार द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक इसी साल से वहां पर 80 फीसदी कोटा सिस्टम लागू हुआ। इसमें स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को नौकरी में 30%, पिछड़े जिलों के लिए 40%, महिलाओं के लिए 10% आरक्षण दिया गया। सामान्य छात्रों के लिए सिर्फ 20% सीटें रखी गईं।
1976 में पिछड़े जिलों के लिए आरक्षण को 20% कर दिया गया। इससे सामान्य छात्रों को 40% सीटें हो गईं। 1985 में पिछड़े जिलों का आरक्षण और घटा कर 10% कर दिया गया और अल्पसंख्यकों के लिए 5% कोटा जोड़ा गया। इससे सामान्य छात्रों के लिए 45% सीटें हो गईं।
शुरू में स्वतंत्रता सेनानियों के बेटे-बेटियों को ही आरक्षण मिलता था, लेकिन 2009 से इसमें पोते-पोतियों को भी जोड़ दिया गया। 2012 विकलांग छात्रों के लिए भी 1% कोटा जोड़ दिया गया। इससे कुल कोटा 56% हो गया।
बांग्लादेश की सरकार ने 2018 में अलग-अलग कैटेगरी को मिलने वाला 56% आरक्षण खत्म कर दिया था, लेकिन इस साल 5 जून को वहां के हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले को पलटते हुए दोबारा आरक्षण लागू कर दिया था। इसके बाद से ही बांग्लादेश में हिंसा का दौर शुरू हो गया था।