*⛅तिथि - अमावस्या रात्रि 12:01 से दोपहर 12:01 बजे तक*
*⛅नक्षत्र - पुनर्वसु 18 जुलाई प्रातः 05:11 तक पुष्य पुष्य*
*⛅योग-व्याघात प्रातः 08:58 बजे तक उत्पादन*
*⛅राहु काल - प्रातः 07:44 से 09:25 तक*
*⛅सूर्योदय - 06:04*
*⛅सूर्यस्त - 07:28*
*⛅दिशा शूल - पूर्व दिशा में*
*⛅ब्रह्ममुहूर्त - प्रातः 04:39 से 05:21 तक*
*⛅निशिता उत्सव - रात्रि 12:25 से 01:07 तक*
*⛅व्रत पर्व विवरण - सोमवती बाज़ार*
*⛅विशेष - बिस्तर के दिन स्त्री-सहवास और तिल का तेल खाना और बेचना है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
*🌹सोमवती योजना : 17 जुलाई 2023 🌹*
*🌹पुण्य काल : 17 जुलाई सूर्योदय से रात्रि 12:01 तक*
*🌹 वनस्पति के दिन सोमवार का योग उस दिन देवताओं को भी दुर्लभ हो जाता है ऐसा पुण्यकाल होता है क्योंकि गंगा, तीर्थ और भूमि के जो सभी तीर्थ हैं, वे 'सोमवती (दर्शन) के दिन जप, ध्यान, पूजन विशेष धर्मलाभ प्रदान करें।*
*🌹सोमवती अमावस्या, रविवारी सप्तमी, मंगलवारी चतुर्थी, रविवारी अष्टमी - ये चार तिथियां सूर्य ग्रह के बराबर कही जाती हैं।*
*🌹सोमवती में स्नान, दान व श्राद्ध अक्षय होता है।*
*🌹सोमवती दोषः दरिद्रता सेवा🌹*
*🌹इस दिन भी मौन स्नान करने से होता है हजार गौदान का फल।*
*🌹इस दिन पीपल और भगवान विष्णु की पूजा और उनकी 108 प्रदक्षिणा करने का विधान है। 108 में से 8 प्रदक्षिणा पीपल के पेड़ को कच्चा सुत लपेटते हुए देखा जाता है। प्रदक्षिणा करते समय 108 फल पृथक्करण दिये जाते हैं। बाद में वे भगवान का भजन करने वाले ब्राह्मण या ब्राह्मणियों में पूत कर देते हैं। ऐसा करने से संत चिरंजीवी होता है।*
*🌹सोमवती के दिन तुलसी की 108 पूजा करने से दरिद्रता मिटती है।*
*🔹अधिक मास का माहात्म्य🔹*
*(अधिक मासः 18 जुलाई से 16 अगस्त )*
*🔸अधिक मास में सूर्य की संक्रांति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न होने के कारण इसे मलमास (मलिन मास) कहा गया है। स्वामी होने से यह मास देव-पितर आदि की पूजा और मंगल कर्मों के लिए यज्ञ माना गया है। इससे लोग इसका घोर निंदा करने लगे।*
*🔸तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहाः "मैं इसे सर्वोपरी - अपनी तुल्यता देता हूं।" सद्गुण, कीर्ति, प्रभाव, षडैश्वर्य, प्रभाव, भक्तों को पुष्पांजलि का सामर्थ्य आदि गुण गुण हैं, उन सब्सुइस ने इस मास को समाप्त कर दिया।*
*अहमेते यथा लोके पृथितः पुरूषोत्तमः।*
*तथायमपि लोकेषु पृथितः पुरूषोत्तमः।।*
*🔸इन गुणों के कारण जिस प्रकार से मैं वेदों, लोकों और शास्त्रों में 'पुरुषोत्तम' नाम से प्रसिद्ध हूं, उसी प्रकार यह मलमास भी भूतल पर 'पुरुषोत्तम' नाम से प्रसिद्ध हुआ और मैं स्वयं स्वामी हो गया हूं।''
*🔸इस प्रकार अधिक मास, मलमास ʹपुरुषोत्तम मासʹ के नाम से जाना गया।*
*🔸 भगवान कहते हैं- "इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान किया जाता है (ब्रह्ममुहूर्त में भगवत्स्मरण किया जाता है), दान, जप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण और देवार्चन किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है।" जो प्रमाद से इस मास को खाली विश्राम देते हैं, उनका जीवन मनुष्यलोक में दारिद्रय, पुत्रशोक और पाप के तट से निन्दित हो जाता है इसमें सन्देह नहीं।*
*🔸सुगंधित चंदन, दीप आदि से लक्ष्मी समर्थित सनातन भगवान तथा पितामह भीष्म का पूजन करें। घंटा, मृदंग और शंख की ध्वनि के साथ कपूर और चंदन से आरती करें। ये ना हो तो रुई की मिठाई से ही आरती कर लें। इससे अनंत फल की प्राप्ति होती है। चंदन, अक्षत और पुष्पों के साथ तांबे के पात्र में पानी मिलाकर भक्ति से पहले या बाद में अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय भगवान ब्रह्माजी के साथ मेरा स्मरण करके इस मंत्र को बोलें-*
*देवदेव महादेव प्रलयोत्पत्तिकारक।*
*गृहाणार्घ्यमिमं देव कृपां कृत्वा ममोपरि।।*
*स्वयंभुवे नमस्तुभ्यं ब्राह्मणेऽमिततेजसे।*
*नमोઽस्तुते श्रियानन्त दयां कुरु ममोपरि।।*
*🔸ʹहे देवदेव ! हे महादेव ! यह प्रलय और उत्पत्ति करने वाला है ! हे देव कृपया करके इस अर्घ्य को ग्रहण करें। तुझे स्वयंभू के लिए नमस्कार तथा तुझे अमिततेज ब्रह्मा के लिए नमस्कार। हे अनंत ! लक्ष्मी जी के साथ कृपया कृपया .ʹ*
*🔸पुरुषोत्तम मास का व्रत दारिद्रय, पुत्रशोक और वैधव्य का नाश है। इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।*
*विधिवत् सेवते यस्तु पुरूषोत्तममादरात्।*
*कुलं स्वकीयमुधृत्य मामेवैश्यत्यसंशयम्।।*
*🔸 प्रति तृतीय वर्ष में प्रथम मास के आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति के साथ व्रत, उपवास, पूजा आदि शुभ कर्म करता है, वह अपने पूरे परिवार के साथ निःसंदेह करता है, मेरे लोक में प्रवेशकर मेरा सान्निध्य प्राप्त करता है।"
*🔸इस माह में केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो जप, सत्संग व सतकथा-श्रवण, हरिकीर्तन, व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजनादि जाते हैं, उनका अक्षय फल होता है और व्रती के संपूर्ण अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं। निष्काम भाव से जाने वाले अनुष्ठानों के लिए यह अत्यंत श्रेष्ठ समय है। `देवी भागवत` के अनुसार यदि दान आदि की परिभाषा न हो तो संतों-महापुरुषों की सेवा सबसे अच्छी है। इससे तीर्थस्नानादि के समान फल प्राप्त होता है।*
*🔸इस मास में प्रातः स्नान, दान, तप, नियम, धर्म, पुण्यकर्म, व्रत-उपासना तथा नि:स्वार्थ नाम जप-गुरुमंत्र जप का अधिक महत्व है। इस महीने में दीपकों का दान करने से मन की भावनाएं पूरी होती हैं। दुःखों शोक का नाश होता है। वंशदीप बहुतायत है, उच्च सान्निध्य दृष्टि है, आयु घनत्व है।*
*🔸अधिक मास में आँवले और तिल का उबटन शरीर पर मलकर स्नान करना और आँवले के पेड़ के नीचे भोजन करना - यह भगवान श्री पुरूषोत्तम को अतिशय प्रिय है, साथ ही स्वास्थ्यप्रद और प्रशान्तप्रद भी है। यह व्रत करने वाले लोग बहुत पुण्यवान हो जाते हैं।*
*🔹अमावस्या विशेष🔹*
*🔸16 जुलाई रात्रि 10:08 से 17 जुलाई रात्रि 12:01 बजे तक।*
*🌹1. जो व्यक्ति किसी अन्य का अन्न खाता रखता है उसका महीने भर का पुण्य दूसरे को (अन्नदाता को) मिल जाता है।*
*(स्कंद पुराण, प्रभास खं. 207.11.13)*
*🌹2. जिस दिन पेड़-पौधों से फूल-पत्ते, तिनके आदि नहीं टूटते, उससे ब्रह्महत्या का पाप लगता है! (विष्णु पुराण)*
*🌹4. *बिक्री के दिन खेती का काम न करें, न मजदूर से करवाएं।*
*🌹5. श्रीमद्भगवद्गीता का सातवाँ अध्याय पढ़ें और उस पाठ का पुण्य अपने पितरों को अर्पित करें। सूर्य को अर्घ्य दें और प्रार्थना करें। आज जो मैंने पाठ किया मेरे घर में जो गुजर गए हैं, उनमें उसका पुण्य मिल जाएगा। इससे उनका आर्शीवाद हमें मिलेगा और घर में सुख-सम्पत्ति की स्थिति बनेगी।*