दीन, दुखी की मातु तुम , रखना हरदम लाज।। दूध,पूत,धन,धान से, सभी रहें भरपूर। इस दीपावली यही दे वरदान।। जिनके घर पर रहता है अंधेरा, वह दूसरों के घरों में रोशनी के लिए दीये बेच रहे हैं,लक्ष्मी माता इस बार ग़रीबों की कुटियाओं में दर्शन दे दो । बहुत हुआ अमीरों के घर पर जाना,इस बार ग़रीबों की बस्ती में जाकर दर्शन दे दो माता,इस बार अगर आप अमीरों के घरों में नहीं जाएंगी,इनको कोई फर्क नहीं पड़ेगा,अगर एक बार ग़रीब बस्ती में आप चली जाएंगी तो इन ग़रीबों की जिंदगी जरूर बदल जाएगी । फुटपाथ पर बैठी 65 वर्षीय शकुंतला जिसके पास मात्र 400 के करीब मिट्टी के छोटे-छोटे दीये बोरे के ऊपर बेचने के लिए रखे हुए थे,शकुंतला का पोता ज़ोर ज़ोर से आवाज़ लगा रहा था,20 रुपए के,25 दीये खरीद लो,शकुंतला अपनी मायूस नज़रों से ग्राहकों को ढूंढ रही थी,कोई ग्राहक आ जाए,उसके दीये बिक जाएं,ग्राहक तो नहीं आ रहे थे, अलबत्ता सिपाही ने आकर शकुंतला से बोला अम्मा अपना सामान साइड से कर लो,नहीं तो उठा कर ले जाऊंगा, मैंने शकुंतला के दीये देखें और मन ही मन में हिसाब लगाया उसके कुल दीये 320 रुपए के होते हैं, पिछले 2 दिन से दीपक लिए बैठी है, दो दिन में कुल उसकी 160 रुपए की बिक्री हुई है,उसको उम्मीद थी आज छोटी दिवाली है,आज तो पूरे दीये बिक जाएंगे, पर अफसोस ऐसा लगता है,इस बार मीठे तेल की महंगाई की मार लोग कम ही दीये खरीद रहे हैं, लोग चाइना के द्वारा निर्मित छोटे बल्बों की झालरों को खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं,फिर बैठी रहेगी शकुंतला देवी नहीं बिकेंगे उसके दीये, फिर इस साल भी उसकी दिवाली ग़रीबी के अंधकार में छिप जाएगी,मेरी नज़र उसके पोते पर पड़ी,थोड़ी देर पहले जो ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगा रहा था, 20 रुपए के 25 दीये ले लो, उसकी आवाज़ अचानक बंद हो गई थी,मैंने उसको चारों तरफ नज़रों से ढूंढा,मेरी नज़र एक पटाखे की दुकान पर पड़ी जहां पर यह मासूम खड़ा होकर रंग-बिरंगे पटाखों को निहार रहा था,दुकानदार उस ग़रीब बच्चे को देखकर दुकान के सामने से भगा रहे थे,वह मासूम दुकान के साइड में खड़े होकर अमीरों के बच्चों को देख रहा था,जो अपने अमीर माता पिता के साथ बड़ी बड़ी गाड़ियों में आए थे और झोला भर भर के पटाखे खरीद कर ले जा रहे थे,कभी मासूम की नज़र अनार पर पड़ती, तो कभी उसकी नज़रें फुलझड़ी पर जाकर टिक जाती थी,कभी वह प्लास्टिक की पिस्तौल जो टिकली चलाने के काम पर आती है,उसको निहारता हुआ,हिम्मत करके दुकान के करीब पहुंचता है, पिस्तौल को उठाकर दुकानदार से पूछता है, भैया कितने की है,दुकानदार समझ जाता है,यह गरीब बच्चा है, दुकानदार भद्दी गाली देकर उसको भगा देता है,आँखों में आँसू लिए,अपनी दादी की गोद में सिर रखकर लेट जाता है,और सोचता है, हे भगवान मुझको भी पैसा वाला बना दो, मुझको भी बम पटाखे और नए कपड़े दिला दो,मैं भी दिवाली वाले दिन अच्छे-अच्छे पकवान खाऊं,नए कपड़े पहन कर दोस्तों के साथ खूब धमाल मचाऊं,पर शायद ग़रीबों की आवाज़ भगवान तक नहीं पहुंच पाती,दादी अपने पोते के सिर पर हाथ फेरती जाती है, अपनी बूढ़ी और कांपती हुई आवाज़ से आवाज़ लगाती है, 20 रुपए के 25 दीये ले लो, कभी शकुंतला देवी अपने पल्लू को खोलकर उसमें रखे पैसों को गिनती है,फिर मन ही मन हिसाब लगाती है 160 रुपए में तो तेल भी नहीं आ पाएगा,सब्जी दाल तो दूर की बात है, फिर आज त्यौहार के दिन रुखा सुखा खाकर त्यौहार मना लेंगे,दीपावली के दूसरे दिन शायद कुछ तेल की व्यवस्था हो जाए, उसके लिए सुबह भोर निकलने से पहले घर से निकलना पड़ेगा,लोगों के घर के बाहर रखे हुए दीयो में से बचा हुआ तेल इकट्ठा कर के लाना पड़ेगा,शायद थोड़ा सा तेल मिल जाए तो अपने पोते के लिए पूरी और आलू की सब्ज़ी बनाकर उसको खिला सके,उसके पोते को पूरी और आलू की सब्ज़ी बहुत पसंद है । इस बार शकुंतला देवी ने अपने कांपते हुए हाथों से अपनी झुग्गी को गोबर और पीली मिट्टी से लीपा है, लक्ष्मी माता की मूर्ति खरीद कर लाई है, झुग्गी के बाहर रंगोली बनाई है,साथ में झुग्गी के दरवाज़े पर दो दीये जलाए हैं,इसी उम्मीद में शायदकी लक्ष्मी माता की नज़र उसकी झुग्गी पर पड़ जाएं और माता उसको दर्शन दे दे। माना अमीरों के पास बहुत पैसा होता है, उनके नौकर चाकर उनके महलों जैसे घरों पर बड़ी-बड़ी लाइटें लगाते हैं महल जैसे घरों को सजाने के लिए खूब पैसा खर्च करते हैं, वहीं दूसरी ओर शकुंतला देवी जैसे ग़रीब अपनी हैसियत के हिसाब से लक्ष्मी माता को प्रसन्न करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते इसलिए मैं कहता हूँ,इस बार लक्ष्मी माता शकुंतला देवी जैसे लोगों के घर पर जरूर जाना, शायद अगली दीपावली पर शकुंतला देवी का पोता अपने लिए मनपसंद कपड़े और मिठाई ख़रीद सके पटाखे की दुकानों पर दुकानदार उसको भद्दी सी गाली देकर भगा ना सके । अमीरों का रिवाज है वह दूसरे अमीरों के घर पर महंगी महंगी मिठाइयों के डब्बे भेजते हैं इस बार एक नया रिवाज शुरू करें भले आधा किलो का मिठाई का डब्बा किसी ग़रीब के घर पर पहुंचाए जितनी खुशी ग़रीब को होगी शायद लाखों के उपहार अमीरों को देने के बाद भी उनको इतनी खुशी नहीं होगी । लेकर बैठे फुटपाथ पर दीये, घर उसका भी रोशन करें । दो जून की रोटी से वो भी परिवार का पेट भरे, आओ मिलकर इस दिवाली एक छोटी शुरुआत करें ।। मोहम्मद जावेद खान,लेखक , संपादक , भोपाल मेट्रो न्यूज़ ये लेखक के अपने विचार है I
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