‘इस देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आॅक्सीजन की कमी से किसी मरीज की मौत नहीं हुई।‘ संसद में केन्द्र सरकार के इस मासूम जवाब पर कौन न मर जाए ए खुदा ! और जवाब की वजह यह कि किसी राज्य ने ऐसी कोई जानकारी नहीं भेजी। सो हम भी क्या करें? उस पर दलील ये कि केन्द्र सरकार का काम महज आंकड़े इकट्ठा कर उन्हें कम्पाइल करना है। बाकी जिम्मेदारी राज्य सरकारों की हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो जब राज्य ही नंगी सच्चाई को झुठलाना चाहते हैं तो भई हम केन्द्र में बैठकर उसे कैसे सच बता दें। यानी खुद को शर्मसार करने वाली बेशर्मी। राज्यसभा में मोदी सरकार के जवाब पर आम जनता को मलाल और राजनीति में बवाल मचा है। कांग्रेस सांसद के.सी.वेणुगोपाल ने सवाल किया था कि क्या यह सच है कि कोविड की दूसरी लहर में कई मरीज अस्पतालों में आॅक्सीजन के अभाव में मर गए? जवाब में केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री भारती प्रवीण पवार ने अपने लिखित उत्तर में कहा 'स्वास्थ्य राज्य का विषय है। सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को कोरोना के दौरान हुई मौतों के बारे में सूचित करने के लिए गाइडलाइंस दी गई थीं। किसी भी राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश की रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया है कि किसी की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है। अलबत्ता मंत्री ने इतना जरूर माना कि कोविड दूसरी लहर के समय देश में जीवन रक्षक आॅक्सीजन पूर्व के मुकाबले दोगुनी यानी 3095 मीट्रिक टन से बढ़ कर करीब 9000 मीट्रिक टन हो गई थी।
तकनीकी रूप से यह जवाब बहुत सपाट और मासूमियत भरा है। इसमें चतुराई भी है और लाचारी का इजहार भी है। इस जवाब से इतना ही सिद्ध होता है कि नंगी सच्चाई पर पर्दा डालने के मामले में केन्द्र और सभी राज्य सरकारें एक हैं। चाहे वो भाजपा की हो, कांग्रेस की हो, आम आदमी पार्टी की या किसी और दल की हो। वरना इस साल अप्रैल और मई के महीने में आॅक्सीजन को लेकर मचे देशव्यापी हाहाकार को जिस तरह आम जनता ने भुगता, समूची दुनिया ने देखा और जिसे मीडिया ने पूरी शिद्दत से रिपोर्ट किया, वह सच सरकारी रिकाॅर्ड में सिरे से नदारद है। है भी तो कहीं चालाक चुप्पी में दबा हुआ है। यह वो भयावह समय था जब समूचा देश अपने ही प्राण बचाने में जुटा था। जिन्होने कभी रसोई गैस सिलेंडर के लिए भी इतने हाथ नहीं जोड़े, वो बेचारे अपने परिजन के प्राण बचाने के लिए एक अदद आक्सीजन सिलेंडर के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे थे। ब्लैक में खरीद रहे थे। अस्पताल प्रबंधन और प्रशासन के आगे गिड़गिड़ा रहे थे कि किसी तरह थोड़ी आॅक्सीजन दिला दो कि मेरे परिजन के प्राण बच जाएं। फिर भी जान बचाने में नाकाम रहे। वो लोग और कोई नहीं, हम और आप ही थे। हम कैसे भूलें कि उसी आपदा में अवसर खोजकर नेताअोंऔर कालाबाजारियों ने आॅक्सीजन गैस सिलेंडर ब्लैक में बेचे। और तो और कुछ जगह पैसे लेकर एक मरणासन्न मरीज का आॅक्सीजन मास्क निकालकर दूसरे को लगाने की नीचता भी हुई। आॅक्सीजन की भारी किल्लत के उस दौर में हमने इंसान के शैतानी चेहरे, अस्पतालों की लूट और प्रशासन की असहायता को भी देखा। चंद सांसों के लिए तपड़ते कितने ही वीडियो देखे। यह कोई कैसे भूल सकता है? खुद राज्य सरकारें आॅक्सीजन की कमी से परेशान थीं। किसी भी कीमत पर आॅक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने ने औद्योगिक आॅक्सीजन उत्पादन पर रोक लगाई। आॅक्सीजन गैस वितरण के काम में अफसरों को लगाया गया। आॅक्सीजन के अंतरराज्यीय परिवहनके नियम शिथिल िकए गए। क्योंकि लोग अस्पतालों में घरों में आॅक्सीजन के अभाव में कीड़े-मकोड़ों की माफिक दम तोड़ रहे थे। इस दौरान आॅक्सीजन सिलेंडरों की लूट और चोरियां भी हुईं। इस हकीकत में हम कैसे नकार दें ?
यह बेहद शर्मनाक है कि राज्य सरकारें यह बात छिपा रही हैं कोविड में प्राणवायु के अभाव में कितने लोग असमय ही दुनिया छोड़ गए, इसका कोई डेटा उनके पास नहीं है या उन्होंने रखना ही नहीं चाहा, क्योंकि राजनीतिक रूप से भी यह उनके गले की फांस बन सकता था। याद करें मध्यप्रदेश सरकार का जबलपुर हाईकोर्ट में दिया हलफनामा, जिसमें कहा गया था कि प्रदेश में आॅक्सीजन की कोई कमी नहीं है। जबकि हाईकोर्ट ने प्रदेश के शहडोल मेडिकल काॅलेज में आक्सीजन की कमी के कारण 12 कोरोना मरीजों की मौत के बाद मामले का स्वत: संज्ञान लेकर सरकार को नोटिस दिया था।
शायद ही किसी ने सोचा था कि कभी इस देश में लोग सिर्फ इसलिए बेमौत मरेंगे कि सरकारें उन्हें समय पर पर्याप्त प्राणवायु मुहैया नहीं करा पाएंगी। देश के स्वास्थ्य इतिहास और स्वास्थ्य प्रबंधन का वह ऐसा काला अध्याय है, जिसे कोई फिर याद नहीं करना चाहेगा। कौन नहीं जानता कि देश में आॅक्सीजन सप्लाई व्यवस्था फेल हो जाने के बाद स्वयं प्रधानमंत्री मोदी को हस्तक्षेप कर व्यवस्था की समीक्षा खुद करनी पड़ी थी। किसे नहीं मालूम कि दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 25, गोवा मेडिकल काॅलेज में 13, हरियाणा के अस्पतालो में 19, कर्नाटक के चामराजनगर में 24, जयपुर के एक अस्पताल में 4 मौतें ( वहां तो इस घटना के बाद अस्पताल का स्टाफ भाग खड़ा हुआ था)। यह सूची और लंबी हो सकती है। देश का शायद ही कोई कोना छूटा होगा जहां मेडिकल आॅक्सीजन की कमी को लेकर त्राहि-त्राहि नहीं मची थी। राज्यों में आपस में भी आॅक्सीजन को लेकर तीखी तकरारें हो रही थीं। क्या सरकार को यह हकीकत नहीं दिखाई दी या फिर उसने सचाई से पतली गली से निकलकर बचना चाहा ?
केन्द्र सरकार के जवाब का एक सच यह है कि अगर सच्चाई राज्यों ने छुपाई तो केन्द्र ने भी उसे छुपाने दी। चलिए राज्यों ने छुपाई पर केन्द्र शासित प्रदेशों की जानकारी तो सीधे केन्द्र के पास आती है। आॅक्सीजन का टोटा तो वहां भी था। वह भी रिपोर्ट क्यों नहीं हुआ? कई दूसरे मामलो में राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दंबगई से हस्तक्षेप करने वाली केन्द्र सरकार आॅक्सीजन किल्लत से मौतों के मामले में राज्यो की अधिकृत जानकारी पर इतनी आश्रित क्यों है? क्या वो खुद भी शुतुरमुर्ग की माफिक आंखे बंद रखना चाहती है? अगर ऐसा है तो उस आम नागरिक के प्रति भी नाइंसाफी है, जिसने चुनाव में उसे खुलकर वोट दिया था।
माना कि सरकारी तंत्र अमूमन आत्माविहीन और अंसवेदनशील होता है। पर्याप्त आॅक्सीजन और दवाइयों के अभाव में मौतें उसके लिए राजनीतिक काली अधोरेखा भर है। आम आदमी सरकारी दस्तावेज में एक आंकड़ा भर है और इस आंकड़े को भी अपने हिसाब से दर्ज करने सरकारें किसी भी सच पर अज्ञानता का पोंछा मार सकती हैं। यह कठोर सच्चाई है कि कोरोना की दूसरी लहर तेज होते ही अप्रैल के दूसरे हफ्ते में देश के विभिन्न अस्पतालों में आॅक्सीजन सप्लाई व्यवस्था दम तोड़ने लगी थी। कारण कि कोरोना का डेल्टा वेरिएंट बहुत तेजी से संक्रमितों के फेफड़ों पर हमला कर उनकी श्वसन प्रणाली को ध्वस्त कर रहा था। केन्द्र सरकार का यह जवाब भी यही सिद्ध करता है कि आॅक्सीजन के अभाव मरते लोगों की कराह को अनसुना कर लगभग सभी राज्य सरकारों ने कागजो में यही दर्शाया कि लोग मरे तो हैं मगर किसी और कारण से। आॅक्सीजन के अभाव में नहीं मरे। और जो बदनसीब इसी वजह से मरे वो कभी सच बयान करने नहीं आएंगे, यह सरकारों को पता है।
सबसे अफसोस की बात यह कि इस देश में प्राणवायु पर भी शुरू से अब तक सियासत ही ज्यादा हो रही है। कोविड के कठिन काल में भी आॅक्सीजन सप्लाई को लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों ने एक-दूसरे पर ठीकरे फोड़े थे। और अब आॅक्सीजन न मिलने से मर चुके मरीजों की हकीकत छुपाने के िलए एक-दूसरे का गला पकड़ा जा रहा है। यह भी सिद्ध हुआ कि लोगों की जान से खिलवाड़ के मामले में केन्द्र सरकार की भूमिका केवल गाइड लाइन जारी करने और कम्प्यूटर की तरह आंकड़े एकत्रित करने की है और यह भी कि राज्यो का काम उस विभीषिका के विनम्र स्वीकार के बजाए अपनी कमीज उजली जताने का ज्यादा है। और यह सारा खेल आंकड़ो के कैनवास पर खेला जा रहा है। मूर्ख सिर्फ हम और आप बन रहे हैं। क्या आपको नहीं लगता?
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