आज का माहौल हमें यह सोचने पर विवश कर रहा है कि हमने किन से स्वतंत्र प्राप्त की और हम किसके गुलाम हो गए हैं। बड़ा अच्छा लगता है और गर्व से कहते हैं कि हम स्वतंत्र हो गए हैं, हमारा अपना शासन होगा, कई सुविधाएं होगी, किसी के आगे हाथ जोड़कर झुकना नहीं पड़ेगा, हमारे बच्चे सुरक्षित रहेंगे पर क्या हो रहा है क्या हमारी बच्चियां सुरक्षित है बलात्कार और अत्याचार अब नहीं हो रहे। क्या मिलावटी व्यापार नहीं हो रहा, क्या अब हम पर हर बात पर टैक्स नही लग रहे। महंगाई चरम सीमा पर है। दिन प्रतिदिन नए नए कानून लादे जा रहे हैं। जनता के अधिकार संविधान के पन्नों तक अच्छे दिखने लग रहैं, जनता को उन अधिकार को प्राप्त करने के लिए कड़ी मशक्कत करना पड़ती है, जोकि असंभव है। आदमी रोजी-रोटी से टूटा हुआ है वह उस पर ध्यान दें या कानून कायदे की लड़ाई लड़ने पर। स्वतंत्रता का सही अर्थ मे कितना फायदा हमे हुआ इसका आंकलन कौन करेगा। भ्रष्टाचार चरम पर है, हक की लड़ाई लड़ने के लिए, न्याय पाने के लिए बरसो लग जाते हैं। क्या हमने सुचारू, सुव्यवस्थित, स्वस्थ और सुरक्षित जीवन शैली स्वतंत्रता के बाद पाली है। इस पर विचार करो नहीं तो इसे सुधारने की कोशिश करें।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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