कहते है यदि इच्छाशक्ति हो तो क्या नहीं किया जा सकता ऐसा ही कुछ करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कोरोना संक्रमण के बीच अवसर खोजने और आत्मनिर्भर बनने की बात कही,जिसमे अपने ही देश में व्यापार और उत्पादन बढाने की बात है। उनका कहना है आत्मनिर्भर बनने के लिए यह अवसर है उनका ध्यान आत्मनिर्भर भारत बनाने की और है वे चाहते है, हमारा देश भी मैन्युफेक्चरर हब बने। ऐसे उद्यमी देश में हो कि हमें किसी दूसरे देश पर निर्भर न रहना पडे, खासकर चीन पर। एक और तो भारत की जनता चीन के उत्पाद उपयोग न करने के लिए बात करती है, प्रेरित करती है,लेकिन वही चीन के उत्पाद उपयोग करना लगभग सभी की मजबूरी है। क्योंकि खासकर तकनिकी क्षेत्र में जैसे मोबाइल,कंप्यूटर से लेकर ऐसा कोई उत्पाद नहीं है जिसमे हम चीन पर निर्भर नहीं है। हमारे देश में हम सिर्फ असेम्बलिंग किये उत्पाद को मेक इन इंडिया या मेड इन इंडिया समझते है। जबकि कच्चा माल (चिप) प्रकार के आइटम तो लगभग सारे चीन से आते है इसलिए हमारे देश को हम कैसे मैन्युफेक्चरर हब बना सकते है! इसी लक्ष्य को पूरा करने युवाओं को उद्यमी बनाने की दिशा में काम करने का उन्होंने इशारा किया है। वहीँ दूसरी और चीन से भी कई विदेशी कंपनियां बाहर निकलने के रास्ते ढूंढ रही है क्योंकि उनके ब्रांड के पीछे भी चीन का नाम जुडा है। अब ऐसे में यदि उन कंपनियों को भी हमारे देश में आने का मौका मिले तो उनका उत्पाद भी मेड इन इंडिया कहलायेगा और रोजगार कि सम्भावनाये भी बढ सकती है । वही अभी कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री ने इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए एक बार फि र न केवल देश को आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत पर बल दिया, बल्कि उद्योग जगत से इस अभियान को आगे बढाने को भी कहा। वास्तव में यह समय उद्योग जगत को प्रेरित और प्रोत्साहित करने का है, लेकिन इसमें नौकरशाही कि भूमिका महत्वपूर्ण है, उसके रुख-रवैये से यह नहीं लगता कि वह कोरोना संकट को एक अवसर में बदलने के लिए प्रतिबद्ध है। इस आशय की बातें तो खूब हो रही हैं कि सरकारी तंत्र चीन से निकलने वाली कंपनियों को देश में आकर्षित करने के लिए सक्रिय है, लेकिन यह सक्रियता जमीन पर नजर नहीं आती। कायदे से तो जैसे ही यह भनक लगी थी कि कोरोना वायरस के प्रसार में चीनी नेतृत्व की संदिग्ध भूमिका के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन छोडने की तैयारी कर रही हैं, वैसे ही भारतीय नौकरशाही को इन कंपनियों को लुभाने में जुट जाना चाहिए था। यह निराशाजनक है कि ऐसा कुछ होता हुआ दिखा नहीं दे रहा है । चूंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियां आनन-फानन में चीन से निकलना चाहती हैं, इसलिए जरूरत इसकी है कि उनके लिए अनुकूल माहौल तैयार करने का काम भी युद्धस्तर पर किया जाए। ऐसा इसलिए और आवश्यक है, क्योंकि इन कंपनियों के पास ताईवान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम आदि देश विकल्प के रूप में मौजूद हैं। अच्छा हो कि हमारी नौकरशाही खुद से यह सवाल करे कि आखिर बीते तीन महीनों में कितनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने चीन से निकलकर भारत की ओर रुख किया है नि:संदेह केंद्र और राज्य सरकारों को भी इसकी खोज-खबर लेनी चाहिए कि उनकी ओर से आपदा को अवसर में बदलने के बारे में जो कुछ कहा जा रहा है, नौकरशाही उस पर अमल कर रही है या नहीं! यदि यह समझा जा रहा है कि कुछ नीतिगत घोषणाएं कर देने से चीन छोडने को तैयार बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत आ जाएंगी तो ऐसा होने वाला नहीं है। इन नीतिगत घोषणाओं के अनुरूप कुछ ठोस काम भी होने चाहिए। ध्यान रहे कि जब ये कंपनियां चीन गई थीं तो उसने उन्हें हरसंभव आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई थीं। यह सही है कि विदेशी कंपनियों के लिए आवश्यक सुविधाएं रातों रात नहीं जुटाई जा सकतीं, लेकिन ऐसा करने की प्रबल इच्छाशक्ति का प्रदर्शन तो किया ही जा सकता है। इससे ही हालात बदलेंगे और चीन छोडने का मन बना चुकीं बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत आने के लिए तैयार होंगी। यदि इन कंपनियों को आकर्षित करने में देरी होती है और उन्हें भारत लाने में वांछित सफ लता नहीं मिलती तो यह एक तरह से एक बडे अवसर को खोने जैसा ही होगा। वही दूसरी और हमारे देश के युवाओ में भी टेलेंट कि कमी नहीं है उन्हें भी जब व्यापारिक माहौल मिलेगा तो वो भी उत्पादन कि दिशा में काम कर सकते है अभी तो सरकारों को रियायती जगहों में व्यापारिक माहौल बनाकर कैसे हम चीन से अचछा और सस्ता प्रोडक्ट तैयार कर विदेशो में भी एक्सपोर्ट करें इस लक्ष्य को लेकर भी काम करने कि जरुरत है।
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