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'बाला' के विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने की राह में रोड़ा बनेंगे ' विक्रांत '?

Updated on 20-12-2020 12:01 PM
प्रदेश के पहले निर्वाचित आदिवासी विक्रांत भूरिया के युवा कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद एक सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या अब वह राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने की आसान दिख रही बाला बच्चन की डगर पर रोड़ा बनकर खड़े हो गए हैं। यह सवाल इसलिए मौजूं  है क्योंकि दोनों ही एक ही अंचल  के होने के साथ ही साथ एक ही आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। कांग्रेस में सामान्यतः एक ही समुदाय या जाति और एक ही अंचल के दो  नेता एक साथ महत्वपूर्ण पदों पर नहीं रहे हैं। यदि कभी-कभी अपवाद स्वरूप ऐसा हुआ है तो जातिगत दृष्टि से संतुलन को ध्यान में रखा गया है। यदि संतुलन  कांग्रेस बनाए रखना चाहती है तो फिर आदिवासी वर्ग से किसी के नेता प्रतिपक्ष बनने की संभावना बहुत कम रह जाती है। लेकिन राजनीति वह भी कांग्रेस में  पिछले अनेक सालों से जो होता आया है और  कभी-कभी   अपेक्षा के विपरीत भी हो जाता है ,इसलिए बच्चन के नेता प्रतिपक्ष बनने की संभावना को पूरी तरह भले ही ना नकारा जा सके लेकिन धूमिल तो हो ही गईं हैं। ऐसा लगता है कि भूरिया के युवा कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही अब दलित, पिछड़ा वर्ग के साथ ही अगड़ी जातियों के किसी विधायक के नेता प्रतिपक्ष बनने की संभावना कुछ अधिक बलवती हो गई हैं।
     भूरिया ने चुनाव जीतते ही कहा है कि संघर्ष, संपर्क और संवाद के बूस्टर डोज से वह संगठन में उर्जा का संचार करेंगे। आज के माहौल में कांग्रेस को फिर से अपनी खुद की जमीन पाने के लिए यही कुछ करना होगा क्योंकि इन तीनों चीजों का अभाव कांग्रेस में नजर आने लगा है। किसी भी राजनीतिक दल की मैदानी ताकत उसकी युवा इकाई की सक्रियता और संघर्षशीलता  होती है। इसके लिए उन्हें स्वयं मैदान में उतर कर और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ ही साथ मैदान में भी संघर्ष करते हुए नजर आना पड़ेगा ताकि अन्य लोग भी मैदान में संघर्ष करते नजर आएं। भूरिया के सामने एक चुनौती यही होगी की पूर्ववर्ती अध्यक्ष कुणाल चौधरी ने संगठन को जितना सक्रिय किया था उसे और अधिक ऊर्जावान बनाना होगा। उनके सामने पहली सबसे बड़ी राजनीति चुनौती नगरीय निकाय चुनावों की आने वाली है और उसमें कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहता है तथा युवा कांग्रेस क्या कुछ कर पाती है उसके बाद ही  विक्रांत भूरिया के नेतृत्व में निखार आ पाएगा। भूरिया पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के बेटे हैं लेकिन उन पर केवल नेता पुत्र होने के कारण यह पद मिलने का आरोप नहीं लग सकता क्योंकि वह मनोनीत नहीं बल्कि चुने गए प्रदेश अध्यक्ष हैं। उनके पिता एक बड़े आदिवासी नेता रहे इसलिए उनके प्रभाव का उन्हें फायदा मिलता रहा है और  मिलेगा भी पर यह उनकी सक्रियता पर निर्भर करेगा। पिता के प्रभाव के सहारे वह अपना स्वयं का जनाधार कितना बढ़ा पाते हैं। उन्हें यह पद ऐसे अवसर मिला है जबकि कांग्रेस के प्रतिकूल परिस्थितियां हैं इसलिए यह कहा जा सकता है कि उन्हें एक प्रकार से कांटो का ताज मिला है। कसौटी पर  खरे उतरने के बाद के ही उनकी स्वयं की नेतृत्व क्षमता निखर पाएगी।  उनके सामने पहचान का कोई संकट नहीं है और ना ही वह किसी परिचय के मोहताज हैं  क्योंकि उनके पिता केवल मध्यप्रदेश में ही नहीं बल्कि देश में भी जाने पहचाने जाते हैं क्योंकि वह केंद्र में काबीना मंत्री भी रहे हैं। अब उन्हें खुद को साबित करना है क्योंकि वह 2018 का विधानसभा चुनाव  हार चुके हैं हालांकि बाद में उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया ने वह  सीट भाजपा को पराजित कर जीत ली।  डॉ विक्रांत भूरिया एमबीबीएस एवं एमएस उत्तीर्ण हैं तथा उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी संजय यादव को  पराजित किया  है। उन्हें कुल 40850 वोट मिले जबकि संजय यादव को 20430 वोट मिले , तीसरे स्थान पर अजीत बोरासी रहे जिन्हें 13204 वोट मिले । 2013 में कुणाल चौधरी युवा कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे और अब 7 साल 4 महीने बाद हुए चुनाव में भूरिया निर्वाचित हुए हैं। संजय यादव, अजीत बोरासी, प्रतिमा मुद्गल और विधायक विपिन वानखेड़ उपाध्यक्ष बने हैं। पांच महासचिव भी  पदाधिकारियों में शामिल हैं। कुणाल चौधरी 7 साल से  अधिक समय से इस पद पर थे और 2018 के विधानसभा चुनाव में कालापीपल विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। 
अब भूरिया की नई टी…
अरुण पटेल, लेखक                                                                 ये लेखक के अपने विचार है I 
प्रबंध संपादक सुबह सवेर 
कार्यकारी संपादक अमृत संदेश          

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