कांग्रेसियों में व्याप्त निराशा को आशा में बदलेगा नगरीय निकाय चुनाव ?
Updated on
23-12-2020 04:38 PM
15 साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस के हाथ से 15 माह में ही सत्ता खिसक जाने और उसके बाद उपचुनावों में भी भाजपा के अधिकांश सीटें जीत लेने के बाद से कांग्रेस कार्यकर्ताओं और नेताओं में हताशा की भावना घर कर गई है। उसे छुपाने की वह लाख कोशिश करे लेकिन रह-रह कर यह किसी न किसी तरह से सामने आ जाती है। नगरीय निकाय चुनाव सिर पर हैं लेकिन आपसी खींचतान हो ही रही है। रीवा में कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी महासचिव मुकुल वासनिक के सामने ही कार्यकर्ताओं के दो गुट आपस में ही उलझ गए। क्या नगरीय निकाय चुनाव की तैयारियां और भाजपा का मुकाबला करने के लिए यह चुनाव कांग्रेसियों की निराशा दूर कर उन्हें उत्साह से लवरेज कर पाएंगे? वैसे कांग्रेस तो दावा कर रही है कि वह इन चुनावों में काफी अच्छा प्रदर्शन करेगी लेकिन क्या नेताओं के दावे कार्यकर्ताओं को उत्साहित कर पाएंगे। यह एक ऐसा सवाल है जिसका उत्तर चुनाव परिणामों से ही मिल सकेगा। यदि पार्टी कार्यकर्ताओं में जोश खरोश नहीं आया तो फिर नतीजों से पहले ही पता चल जाएगा कि कांग्रेस के दावों में कितना दम है और वह कितने हवाई हैं।
यह एक वास्तविकता है कि अधिकांश कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं पर सबसे ज्यादा असर पूर्व मुख्यमंत्री सांसद दिग्विजय सिंह का है और यह बहुत कुछ उन पर निर्भर करेगा कि वह कितने सक्रिय होते हैं क्योंकि नेता और कार्यकर्ताओं पर सबसे ज्यादा प्रभाव दिग्विजय का ही है। पूरे प्रदेश में कांग्रेस के भीतर सबसे मजबूत पकड़ उनकी है और वह सबको अच्छे से जानते पहचानते हैं कि किसकी क्षमता और उपयोगिता कितनी है। इस प्रकार के आरोप लग रहे हैं कि दिग्विजय सिंह को उपचुनाव प्रचार में अधिकांश जगह पर्दे के पीछे रखने के कारण ही कांग्रेस को वांछित सफलता नहीं मिल पाई और फिर से कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने का सपना चकनाचूर हो गया। एक बात साफ है कि विपरीत और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कार्यकर्ताओं को केवल दिग्विजय सिंह ही सक्रिय कर सकते हैं। इसी वजह से प्रदेश में पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकती है।
नगरीय निकाय के चुनाव में भले ही भाजपा दिग्विजय सिंह की मौजूदगी का लाभ लेने से चूकेगी नहीं पर हर छोटा-बड़ा कांग्रेसी दिग्विजय सिंह की संगठन क्षमता को भी भलीभांति जानता पहचानता है। यही कारण है कि हाल के विधानसभा उपचुनाव में दिग्विजय सिंह की अनदेखी का आरोप कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ पर लगा रहे हैं, कोई खुलकर तो कोई दबी जुबान में। कांग्रेस बीते पंद्रह साल में तीन विधानसभा चुनाव लगातार हारी और सरकार में आई तो पंद्रह माह बमुश्किल चल पाई। नए साल में नगरीय निकायों के चुनाव होना हैं। इन चुनावों के उम्मीदवार तय करने में दिग्विजय सिंह की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रहने वाली है। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि समर्थकों के लिहाज से सबसे ताकतवर दिग्विजय सिंह हैं।नगरीय निकाय के चुनाव के उम्मीदवार तय कर पाना अकेले पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के वश की बात नहीं है। इस लिहाज से उनके लिए नगरीय निकाय के चुनाव भी उपचुनाव से कम महत्वपूर्ण नहीं हैं। राज्य में नगरीय निकाय की व्यवस्था तीन स्तर की है। सबसे छोटी इकाई नगर परिषद है। इनकी कुल संख्या 294 है। मध्यम स्तर पर नगरपालिका हैं। इनकी कुल संख्या 98 है। जबकि नगरों की सबसे बड़ी इकाई नगर निगम है, इनकी कुल संख्या सोलह है। कुल 408 नगरीय निकायों के वार्डों की संख्या लगभग छह हजार है। इतनी बड़ी संख्या में वार्डों के लिए उम्मीदवार तय करना मुश्किल भरा काम है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद दिग्विजय सिंह के लिए समर्थकों को टिकट दिलाना बेहद मुश्किल भरा नहीं है। हर नगरीय निकाय में कमलनाथ के समर्थक भी नहीं हैं। विंध्य में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की पकड है जबकि निमाड़ की कुछ नगरीय निकायों में यादव बंधु यानी पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और उनके लघु भ्राता पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव की पकड़ है। अरूण यादव के हाथ में प्रदेश कांग्रेस की कमान रही है इस कारण हर जिले में उनके समर्थक भी टिकट मांगेगे। पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी के खाते में भी टिकट जाएंगे। नगर निगमों में उम्मीदवारों का चयन पूरी तरह से दिग्विजय सिंह की सहमति से ही हो सकेगा। दिग्विजय सिंह के पुत्र और कमलनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जयवर्द्धन सिंह पिता के समर्थकों के साथ ही राजनीति कर रहे हैं। संविधान के 73 वें और 74 वे संशोधन के तहत चुनाव कराए जाने वाला मध्यप्रदेश पहला राज्य था। पहली बार वर्ष 1994 में नगरीय निकाय के चुनाव हुए थे। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। पार्टी में गुटबाजी के चलते वे खुद भी उम्मीदवारों का चयन नहीं कर पाए थे और सभी कांग्रेसियों को चुनाव लड़ने की छूट दे दी गई थी।
इस बार उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया पार्टी ने अभी से ही शुरू कर दी है। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष और संगठन प्रभारी चंद्रप्रभाष शेखर कहते हैं कि तीन स्तरीय नगरीय निकाय के चुनाव में प्रत्याशी चयन एवं चुनावी रणनीति के लिए जिला कांग्रेस इकाईयों एवं स्थानीय कांग्रेस नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। जिलों में चुनावी रणनीति एवं प्रत्याशी चयन समिति का गठन जिला कांग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व में किया जा रहा है जिसमें उस क्षेत्र के माननीय विधायक/प्रत्याशी 2018, क्षेत्रीय सांसद/प्रत्याशी 2019, प्रतिपक्ष के नेता/ मोर्चा संगठन के जिला अध्यक्ष एवं प्रदेश कांग्रेस द्वारा मनोनीत प्रभारी शामिल होंगे। नगरीय निकाय के चुनाव परिणामों पर पर निर्भर करेगा राज्य में कांग्रेस का भविष्य दिशा और दशा क्या होगी ?
और अंत में...
अब मैं आराम करना चाहता हूं। कमलनाथ के इस बयान के बाद प्रदेश कांग्रेस में अवसाद की छाया दिखाई देने लगी है। नगरीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई तो उसे 2023 के विधानसभा चुनाव में संभालने के लिए एड़ी चोटी का जोर भाजपा के मुकाबले खड़ा होने के लिए लगाना होगा ।
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