"सिद्धार्थ" विस उपचुनाव में "राहुल" की राह आसान करेंगे या स्पीड ब्रेकर बनेंगे?
Updated on
18-03-2021 01:25 PM
भारत निर्वाचन आयोग ने दमोह विधानसभा का उपचुनाव 17 अप्रैल को कराने की घोषणा कर दी है और इस कारण भाजपा और कांग्रेस को तत्काल लामबंद होना पड़ेगा क्योंकि मतदान के लिए आज से एक माह का ही समय बचा है। यह उपचुनाव भाजपा की तुलना में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ की प्रतिष्ठा से अधिक जुड़ा हुआ है। कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखने की है क्योंकि यह उपचुनाव 2018 में उसी की टिकट पर चुनाव जीते राहुल सिंह लोधी के त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो जाने के कारण हो रहा है। यदि इस सीट पर कांग्रेस अपना कब्जा बरकरार नहीं रख पाती तो फिर कमलनाथ के लिए कांग्रेस कार्यकर्ता और नेताओं के मनोबल को बनाए रखना कठिन होगा और परदे के पीछे उनके नेतृत्व को परोक्ष या अपरोक्ष रूप से चुनौती मिलना प्रारंभ हो जाएगा। कमलनाथ अभी दोनों पदों पर हैं इसलिए उनकी प्रतिष्ठा अधिक दांव पर लगी है। जहां तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सवाल है इस एक सीट के नतीजे से उनकी सरकार के स्थायित्व पर कोई असर नहीं पड़ने वाला फिर भी भाजपा इस सीट को जीत कर कांग्रेस को एक और मनोवैज्ञानिक झटका देना चाहती है ताकि कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बुरी तरह से गिर जाए। इस उपचुनाव में देखने वाली बात यही होगी कि अब बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया भाजपा उम्मीदवार के रूप में राहुल सिंह लोधी की जीत की राह आसान करेंगे या फिर स्पीड ब्रेकर की भूमिका में होंगे।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा का दावा है कि 28 विधानसभा उपचुनाव की तरह ही दमोह में भी भाजपा की विजय यात्रा जारी रहेगी और कांग्रेस खुद से ही लड़ती रहेगी क्योंकि वह मतिभ्रम की शिकार पार्टी है। कांग्रेस को अभी एक जीतने वाले चेहरे की तलाश है तो वहीं दूसरी ओर भाजपा उम्मीदवार के रूप में राहुल सिंह लोधी कांग्रेस उम्मीदवार को चुनौती देते नजर आएंगे। राहुल की चुनावी जीत आसान होगी या नहीं यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उन्हें जयंत मलैया परिवार का कितना समर्थन मिलता है। जयंत मलैया जो लंबे समय तक शिवराज सिंह चौहान सरकार में भी महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रह चुके हैं के परिवार का अच्छा खासा दबदबा है और भाजपा को आसान जीत मिल सके इसके लिए जरूरी है कि मलैया परिवार भाजपा उम्मीदवार लोधी का खुला समर्थन करे। दमोह विधानसभा क्षेत्र में जैन मतदाताओं की भी बड़ी संख्या है और इस समाज का इस इलाके में अच्छा खासा प्रभाव भी है। जयंत मलैया का क्षेत्र में कितना असर है उसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि अभी तक 1990 से लेकर इस क्षेत्र में सात विधानसभा चुनाव हुए हैं और उनमें से 6 चुनाव उन्होंने जीते हैं और केवल 2018 विधानसभा चुनाव में उन्हें मामूली से अंतर से कांग्रेस उम्मीदवार राहुल सिंह लोधी ने पराजित कर दिया था। 2008 का विधानसभा चुनाव जयंत मलैया कांग्रेस के चंद्रभान भैया को मात्र 130 मतों से ही पराजित कर जीत पाए थे तो 2018 का विधानसभा चुनाव वह कांग्रेस के राहुल सिंह लोधी से मात्र 758 मतों से हार गए। लेकिन अब हालात बदले हुए हैं क्योंकि उन्हें पराजित करने वाले लोधी भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे।
यह उपचुनाव चुनाव भाजपा के वरिष्ठ नेता जयंत मलैया के राजनीतिक वर्चस्व और कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त राहुल सिंह लोधी के भविष्य के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। अपना मजबूत किला होने के बाद भी जयंत मलैया को 2018 के विधानसभा चुनाव में जो शिकस्त मिली उसका एक बड़ा कारण भाजपा के भीतर पैदा हुआ असंतोष था जिसने विद्रोह की शक्ल ले ली और ऐसी परिस्थितियां इस चुनाव में ना बन पाए इसके लिए भाजपा नेतृत्व प्रयास कर रहा है। इसके बावजूद भी ऐसे ही हालात अब बनते दिख रहे हैं और हो सकता है कि पार्टी के भीतर उसी तरह के घमासान की स्थिति देखने में आ जाए। आम चुनाव में मलैया का गणित पूर्व मंत्री डॉ रामकृष्ण कुसमरिया ने बिगाड़ा था और टिकट न मिलने पर वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और परिणाम यह हुआ कि मलैया चुनाव हार गए। राहुल सिंह लोधी ही भाजपा उम्मीदवार होंगे इसका संकेत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा दे चुके हैं। मलैया परिवार लगता है अभी मैदान छोड़ने को राजी नहीं हुआ है हालांकि भाजपा पूरी कोशिश करेगी कि मलैया परिवार पार्टी उम्मीदवार को पूरा-पूरा सहयोग करें और नामांकन के अवसर पर जयंत मलैया भी मौजूद रहें । शिवराज के दमोह दौरे के बाद भी जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया जन आशीर्वाद यात्रा लेकर जिले में निकले और उन्होंने कोरोना वारियर्स के सम्मान के लिए कार्यक्रम भी किया। चुनाव की घोषणा के बाद अब मलैया परिवार का क्या रुख रहता है इस ओर राजनीतिक पर्यवेक्षकों की निगाहें लगी हुई हैं। उपचुनाव कार्यक्रम की घोषणा के बाद कांग्रेस के विधायकों का 6 और 7 अप्रैल को होने वाला प्रशिक्षण शिविर जो कि रामराजा की नगरी ओरछा में होना था वह स्थगित कर दिया गया है। अब उपचुनाव के बाद मई माह के प्रथम सप्ताह में यह प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जाएगा। भाजपा ने चुनाव संबंधी व्यवस्थाओं के लिए दो वरिष्ठ मंत्रियों गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह को जिम्मेवारी सौंप रखी है और वह जल्दी ही संगठन के कुछ नेताओं के साथ यहां डेरा डालने वाले हैं।
और अंत में..............
दमोह उपचुनाव में 23 मार्च से उम्मीदवार अपना नामांकन पर्चा दाखिल करना प्रारंभ कर देंगे तथा 30 मार्च इसकी अंतिम तिथि है। कांग्रेस को अपना उम्मीदवार 30 मार्च से पूर्व तय करना होगा। देखने वाली बात यही होगी कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ उपचुनाव की तरह भाजपा से कोई उम्मीदवार तलाश कर उसे कांग्रेस टिकट पर चुनाव में उतारते हैं या नहीं। भाजपा नेता अवधेश प्रताप सिंह के कांग्रेस नेताओं के साथ फोटो आने से ऐसे संकेत मिले हैं कि भाजपा के किसी चेहरे को कांग्रेस प्रवेश दिलाकर उसे चुनाव मैदान में उतारा जाए। वैसे कांग्रेस जैन समाज के ऐसे चेहरे की तलाश में हैं जो चुनाव में लोधी को अच्छी टक्कर दे सके। इसके अलावा जिन नामों की चर्चा चल रही है उनमें कांग्रेस नेता सुश्री लक्ष्मी ठाकुर, अजय टंडन और वीरेंद्र दवे शामिल हैं। जातिगत समीकरण देखें जाएं तो दलित मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं क्योंकि उनकी संख्या लगभग 40 हजार है और इनका झुकाव जिस ओर होगा उसका उम्मीदवार अधिक मजबूत स्थिति में पहुंच जाएगा। लोधी समाज के 38 हजार और ब्राह्मण समाज के 28 हजार मतदाता बताए जाते हैं। मुस्लिम और जैन समाज भी चुनाव नतीजों पर काफी असर डालते हैं। कांग्रेस और बसपा उम्मीदवारों के नाम सामने आने के बाद ही यह कहा जा सकेगा कि राहुल सिंह लोधी की विधानसभा प्रवेश की राह आसान या मुश्किल होगी।
अरुण पटेल, लेखक ये लेखक के अपने विचार है I प्रबंध संपादक सुबह सवेर कार्यकारी संपादक अमृत संदेश
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