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कमलनाथ गणेश परिक्रमा वाले नेताओं से तौबा कर पाएंगे ?

Updated on 01-02-2021 01:22 PM
मध्यप्रदेश में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ इन दिनों पार्टी संगठन में प्रदेश से लेकर निचले स्तर तक बड़े बदलाव करने की दिशा में सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे हैं। कांग्रेस को हर स्तर पर मजबूत करने के लिए उन्होंने अपनी कमर कस ली है।  कमलनाथ केवल विजिटिंग कार्ड के लिए बने पदाधिकारियों खासकर ऐसे लोग जो नेताओं की गणेश परिक्रमा, बैनर, पोस्टर, होर्डिंग, बड़े नेताओं के जिंदाबाद के नारे गुंजायमान करने की बदौलत लंबे समय से हर स्तर पर प्रमुख पदों पर कुंडली जमाए हुए हैं, उनकी छुट्टी कर जमीनी पकड़ वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को पद देने वाले हैं। कहने और सोचने के लिए इस प्रकार की बातें मीडिया में सुर्खियां बन जाती हैं लेकिन क्या कमलनाथ ऐसे लोगों को चाहे वह उनकी स्वयं की और अन्य नेताओं की गणेश परिक्रमा करने के कारण पदों पर आसीन हैं उनसे पार्टी में बदलाव करते समय तौबा कर पाएंगे ? अभी तक तो ऐसा ही देखने में आया है की आसानी से नेता की गणेश परिक्रमा करने वाले और जमीन से कटे नेता और कार्यकर्ताओं के लिए पद पाने का यही शॉर्टकट बन चुका है। इसी के कारण मैदान में पकड़ रखने वाले जमीनी कार्यकर्ता या तो पद पाने में असफल रहते हैं या फिर निराश होकर अपने घर में बैठ जाते हैं जबकि ऐसे लोग ही पार्टी की असली ताकत होते हैं। कमलनाथ यदि ऐसा कर पाए तो  वह एक ऐसी टीम खड़ी करने में सफल हो सकते हैं जो कि अपने -अपने स्तर पर पार्टी को कुछ ना कुछ मजबूती देने में अपनी पूरी शक्ति लगा सकती है। इसके विपरीत  जिस ढंग से अभी तक कांग्रेस के पदाधिकारी बनते हैं वही दस्तूर जारी रहा तो फिर  कांग्रेस को अधिक उम्मीद नहीं रखना चाहिए कि वैसी टीम  उपयोगी साबित हो पाएगी। पूर्व मुख्यमंत्री सांसद दिग्विजय सिंह  सालों पहले यह कह चुके हैं कि आजकल तो कांग्रेस केवल ए टू जेड हो गई है। कार्यकर्ताओं का काम एयरपोर्ट तथा रेलवे स्टेशन पहुंच कर ट्रेन से आने वाले नेताओं के जिंदाबाद के नाले बुलंद करने तक सिमट गया है।  दिग्विजय सिंह चाहते हैं कि कांग्रेस कार्यकर्ता विभिन्न जनसमस्याओं को लेकर सड़क पर संघर्ष करते नजर आए। पर सवाल यही है कि कमलनाथ  जिस प्रकार का बदलाव करना चाहते हैं कर पाएंगे या नहीं? वैसे वह पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़े नेता है और यदि चाहेंगे तो बदलाव कर सकते हैं बशर्ते कि ऐसा करते समय अपने और परायों में भेदभाव ना करें। ए टू जेड का शॉर्टकट अपनाकर  जो पदाधिकारी बन गए हैं उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने में कोताही नहीं बरतें। कमलनाथ पार्टी में व्यापक बदलाव  स्थानीय निकाय चुनाव, 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव तथा 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की चुनौतियों को मद्देनजर रखते हुए करना चाहते हैं। पार्टी को गतिशील बनाने के लिए कम से कम लगभग दो दर्जन  जिला कांग्रेस अध्यक्ष पदमुक्त किए जा सकते हैं और उनके स्थान पर नए चेहरे को जिले में कमान सौंपी  जा सकती है।28 उपचुनावों में पार्टी को जो हार का सामना करना पड़ा और  2018 के विधानसभा चुनाव में जीती अपनी सीटों पर वह अपनी जीत दर्ज कराने में असफल रही इसकी वजह भी गणेश परिक्रमा करने वाले पदाधिकारी माने जा रहे हैं।  ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद से इस समय कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ही कांग्रेस के बड़े चेहरे हैं। चूंकि  कमलनाथ साफतौर पर कह चुके हैं कि वह प्रदेश छोड़ने वाले नहीं हैं और यहीं रहेंगे। इसका मतलब साफ है कि कमलनाथ अब अपना समय प्रदेश की राजनीति में देंगे और किसी पद पर कोई हो लेकिन मध्यप्रदेश की कांग्रेस राजनीति में उनका दबदबा कायम रहेगा। प्रदेश कांग्रेस की राजनीति की दिशा और दशा उनकी सहमति से ही तय होगी। इस बदलाव में युवाओं को अधिक महत्व दिया जाएगा क्योंकि दिग्विजय सिंह और कमलनाथ दोनों ही चाहते हैं कि अभी से युवाओं के रूप में नई पीढ़ी तैयार की जाए जो पार्टी को भविष्य में सक्षम नेतृत्व और दिशा दे सके। इस हिसाब से ही पार्टी में बदलाव की रूपरेखा तैयार करने में कमलनाथ व्यस्त हैं। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि वक्त है बदलाव के नारे के साथ कमलनाथ ने   प्रादेशिक फलक पर अपनी  राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी और अब देखने वाली बात यही है कि  आखिर वह कब और  कैसा बदलाव पार्टी में लाने में सफल होंगे।? यह सवाल इसलिए पैदा हो रहा है क्योंकि कांग्रेस  में बदलाव अति धीमी गति से होते हैं। एक तरफ भाजपा ने नगरीय निकाय चुनाव के लिए एक पद एक व्यक्ति के सिद्धांत को मानते हुए विधायकों को महापौर का चुनाव नहीं लड़ाने का लगभग मन बना लिया है तो उसके विपरीत कांग्रेस नगर निगम चुनाव में  विधायक और उनके परिजनों को टिकट दे सकती है। यह संकेत प्रदेश के पूर्व मंत्री विधायक तथा कमलनाथ के नजदीकी कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा ने दिया है। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है कि विधायक महापौर का चुनाव नहीं लड़ सकता। कुछ उन विधायकों को  जिनमें दम और जीतने का माद्दा है उन्हें चुनाव लड़ाया जाएगा। वर्मा के अनुसार कांग्रेस पार्टी इन चुनावों में 75 से लेकर 80 प्रतिशत तक युवाओं को मौका देगी।
और अंत में..............
आज प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में नवनियुक्त प्रदेश भाजपा पदाधिकारियों की बैठक में  पार्टी की पद्धति और काम के तौर-तरीकों तथा आचार, व्यवहार के संबंध में विस्तार से नसीहत दी गई। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने साफतौर पर यह रेखांकित किया कि हमारे पूर्वजों ने जिस सपने और जिस संगठन को खड़ा  करने के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया है, संगठन की नई टीम को उनके सपनों को साकार करने के लिए मेहनत की पराकाष्ठा करनी होगी। प्रदेश संगठन को देश में एक सर्वश्रेष्ठ संगठन बनाने की दिशा में काम करना होगा। पार्टी का प्रत्येक कार्यकर्ता इस महायज्ञ की में अपनी आहुति डालेगा और नवगठित टीम अपनी पूरी ताकत खपाने में जुटेगी। 
बैठक में  नगरीय निकाय चुनाव तथा पंचायत चुनाव में पार्टी की एक तरफा जीत के लिए टिप्स देने के साथ ही पदाधिकारियों को संगठन की मजबूती के लिए अहंकार से बचने की भी नसीहत दी गई। पदाधिकारियों से पार्टी और कार्यकर्ताओं कि हर कसौटी पर खरा साबित होने की अपेक्षा की गई। इस प्रकार बैठक में उपदेशों और नसीहतों की घुट्टी प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव तथा दो सह प्रभारियों की मौजूदगी में पिलाई गई। इसका पदाधिकारियों पर कितना असर हुआ यह आने  वाले कुछ माहों की उनकी कार्यप्रणाली से पता  चलेगा।
अरुण पटेल, लेखक                                                                 ये लेखक के अपने विचार है I 
प्रबंध संपादक सुबह सवेर 
कार्यकारी संपादक अमृत संदेश
    

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