हम कई बार अखबारों के जरिए खबर देखते हैं यदि कोई एक इक्का-दुक्का केस पुलिस तुरंत सुलझा लेती है तो उसे मीडिया के जरिए बहुत प्रचारित करती कि उन्होने तत्काल केस सुलझा दिया, ठीक है, बहुत अच्छी बात है पर वह चंद कुछ काम बड़ी ईमानदारी से, चुस्ती से होता है। लेकिन वह इस बात को नजरअंदाज करते हैं कि बहुतायत के पुलिसकर्मी जनता को उल्लू बनाने में, उनका दोहन करने में, उनको लूटते में कोई कसर नहीं छोड़ते। तब मीडिया में यह क्यों नहीं कहते कि हमारे ये आदमी निकम्मे हैं। इसी प्रकार कोई नेता कोई उद्घाटन करता है वह कहता है कि यह काम इन्होंने बड़ी मुश्किल से करवाया। अच्छा तो, भैया बताओ तुम नेता किस बात के। सांसद अपने इलाके मे आता है तो कहता है कि मैंने यह काम करा दिया वह काम करा दिया। मंत्री - नेता आते हैं और घोषणा कर जाते हैं कि चलो मैं इतना पैसा इस काम के लिए दे रहा हूं भैया दादा यह बताओ कि आपने अपने घर से कुछ कर रहे हो। हां। यह आप जो कर रहे हो यह तो आपका काम है। अधिकारी का काम है जन कार्य करना उसको किस बात की वाह वाही, उन्हे तनखा मिलती है। हां वाह वाही करना है तो इस बात की करो कि यह व्यक्ति शासन की नौकरी में होकर या नेता होकर ईमानदारी को अपनाता है। परंतु उससे ज्यादा उन लोगों की नींदा करो कि यह व्यक्ति अपना काम इमानदारी से नहीं निभा रहा है। निंदा करने से भविष्य सुधर जाएगा और सुख भरे दिन आ जाएंगे। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, वास्तुविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…