इस बात से प्रायः सभी लोग डरते हैं, कि "लोग क्या कहेंगे", या "लोग क्या सोचेंगे" ? जो कुछ सीधा-साधा व्यक्ति है, लेकिन थोड़ा डरपोक है, वह व्यक्ति अच्छे कामों को भी कभी-कभी नहीं कर पाता। केवल यही सोचकर नहीं कर पाता, कि "लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे?" सत्य तो यह है, कि "लोग तो सोचेंगे ही। आप उनकी सोच पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते।" वे कुछ न कुछ तो सोचेंगे ही। उन्हें सोचने दीजिए। "वे स्वतंत्र हैं। उन्हें सोचने से कोई भी नहीं रोक सकता। यहां तक कि ईश्वर भी नहीं रोकता। कारण वही है, कि वे कर्म करने में स्वतंत्र हैं।" "जैसे वे स्वतंत्र हैं, ऐसे ही आप भी स्वतंत्र हैं। वे लोग अपने ढंग से सोचते हैं, आप अपने ढंग से सोचिए।" "उनके कुछ भी सोचने से आपको कोई अंतर नहीं पड़ता। मान लीजिए, कोई व्यक्ति आपके बारे में ऐसा सोचे, कि 'आप चोर हैं।' तो क्या आप चोर बन जाएंगे? 'नहीं बनेंगे।' इसी प्रकार से कोई आपके विषय में यह सोचे, कि 'आप अनपढ़ हैं।' तो क्या उसके सोचने से आप अनपढ़ बन जाएंगे? 'नहीं बनेंगे।' फिर उनके सोचने की चिन्ता क्या करनी?" "इसलिए यदि आपको आनंद से जीवन जीना हो, तनाव मुक्त होकर जीवन जीना हो, तो उनकी चिंता न करें, और अपने काम में मस्त रहें।" "वे लोग क्या सोचेंगे', इससे अधिक महत्वपूर्ण बात तो यह है, कि 'आप अपने बारे में क्या सोचते हैं!' आप इस बात पर अधिक ध्यान देवें।" "क्योंकि 'आपके विषय में' 'आपके द्वारा सोचने से' आपके ऊपर 'विशेष प्रभाव' पड़ता है।" "आप के गुणों और दोषों को सबसे अधिक आप ही जानते हैं, दूसरे लोग इतना नहीं जानते। यदि आप में दोष हैं, आप बुरे कर्म करते हैं, तो आपको यह सोचना चाहिए, कि "मैं अच्छा व्यक्ति नहीं हूं, मुझे अच्छा बनना चाहिए। मैं अवश्य ही अच्छा व्यक्ति बनूंगा।" यदि आप में दूसरों की तुलना में गुण कुछ अधिक हैं, तब यह सोचिए, कि "ये गुण मुझमें ईश्वर की कृपा से हैं।" यदि आप ऐसा सोचेंगे, कि "मैंने कितने सारे गुण स्वयं अपने पुरुषार्थ से प्राप्त किए हैं।' तो आपको अभिमान आएगा। वह अभिमान भी आपका विनाश करेगा। तो अभिमान भी नहीं करना है। सभ्यता नम्रता भी बनाए रखनी है, और दूसरों के गलत सोचने की परवाह भी नहीं करनी।" बस ऐसे ही सोचिए। यही आप के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यदि आप अपने विषय में ऐसा सोचेंगे, तो आप निश्चित रूप से अपना सुधार करेंगे। "इसका परिणाम यह होगा, कि धीरे-धीरे आपके दोष कम होते जाएंगे, और आप में गुण बढ़ते जाएंगे।" इस प्रकार से आपके जीवन में सुख शांति आनंद बढ़ेगा। "इसलिए दुनियां जो भी सोचे, सोचती रहे। उससे परेशान न हों। आप तो अपने विषय में सोचें। अपना सुधार करें, और सदा प्रसन्न रहें। यही आपके लिए हितकर है।
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