पृथ्वी पर जितने भी जीव है उसमें इंसान ही एक ऐसा जीव है जिसके पास बुद्धि (ब्रेन) है। हमारी मूल आवश्यकता क्या थी, हमें पृथ्वी पर दूसरे नरभक्षी जीवो से बचना, सर्दी, गर्मी, बरसात और कीड़े मकोड़े इन सब से अपनी रक्षा करना, खाने के लिए अनाज उत्पन्न करना, पहनने के लिए कपड़े। तब इंसान ने अपनी बुद्धि का उपयोग करना शुरू किया और मकान बनाएं, खेती करना शुरू किया, कपड़े बुनने शुरू किया लेकिन इनमें कामयाब होते ही इंसान का दिमाग और आगे दौड़ने लगा, सुरक्षा के नाम पर हथियार , मकान के नाम पर बड़े-बड़े अट्टालिका शहर, पानी के लिए बड़े बड़े डैम, अन्य संसाधन के लिए फैक्ट्री, ऐश आराम और मनोरंजन के साधन और क्या क्या नहीं करा। बस एक चीज में पीछे रह गए हमारे पूर्वजों ने पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदा और उससे बचाव को समझा था उसे हम भुलते गए। पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधन और उनसे उपचार क्या है उस पर हमने ध्यान ही नहीं दिया। केमिकल दवाइयां पर ज्यादा विचार रखा। नतीजन कोई वायरस आया और हमें परेशान कर तबाही मचा देता है। हमने भौतिकवादी जीवन शैली का विकास किया और प्राकृतिक जीवन शैली से दूर रहे। आज वायरस के चलते तमाम विकास के बावजूद भी हम कमरे में बंद है। अभी भी वक्त है प्रकृति की इस आपदा से सबक ले प्रकृति में जीवन की सुरक्षा के उपाय ढूंढे।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, वास्तु एवं पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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