कुछ लोग इसे ‘अप्रैल फूल’ वाली अफवाह भी मान सकते हैं, लेकिन यह सच है कि आंध्र प्रदेश में प्रसिद्ध तिरूपति मंदिर में भक्तों द्वारा दान किए गए बालों पर भी राजनीति हो रही है। साथ ही भगवान को अर्पित बालों की तस्करी भी हो रही है। बालों पर यह ताजा बवाल तब मचा जब मिजोरम-म्यांमार सीमा पर तैनात असम राइफल्स व मिजोरम पुलिस के जवानों ने इंसानी बालों के 120 बोरे जब्त किए। इसकी कीमत करीब 2 करोड़ रू. बताई जाती है। यह खबर आते ही राज्य में विपक्षी पार्टी तेलुगू देशम पार्टी ( टीडीपी) के नेता व पूर्व मंत्री अयन्ना पत्रुदु ने आरोप लगाया कि तिरूपति मंदिर से बालों की तस्करी में सत्ताधारी दल वाईएसआर कांग्रेस के कई नेता शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मंदिर में अर्पित बालों को म्यामांर, थाईलैंड और चीन भेजा जा रहा है। इससे यह स्पष्ट कि वाईएसआर कांग्रेस के नेता रेत, सीमेंट और शराब के अलावा इंसानी बालों का माफिया गैंग भी चला रहे हैं और इस तरह अपवित्र गतिविधियों में लिप्त होकर वाईएसआर कांग्रेस के नेता हिंदू भक्तों की भावनाओं को लगातार ठेस पहुंचा रहे हैं। उन्होंने ने मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी से पूछा कि उनकी सरकार पूजनीय मंदिर से बाल माफिया पर अंकुश लगाने में क्यों फेल रही? पत्रुदु के सनसनीखेज बाल-आरोप पर इस स्तम्भ के लिखे जाने तक वायएसआरकांग्रेस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। लेकिन तिरूपति बालाजी मंदिर का प्रबंधन करने वाले तिरूमाला तिरूपति देवस्थानम् (टीटीडी) ट्रस्ट ने पत्रुदु के आरोपों को आधारहीन और झूठा बताया है। टीटीडी के अतिरिक्त कार्यकारी अधिकारी एवी धर्म रेड्डी ने कहा कि भक्तों के बालों के स्टोरेज, प्रोसेसिंग, हैंडलिंग और ट्रांसपोर्टेशन का परफेक्ट सिस्टम है। इसमें किसी तरह की गड़बड़ी की िशकायत नहीं है। उन्होंने कहा कि समर्पित बालों को ई प्लेटफार्म पर बिडर को सौंपने के साथ ही हमारा दायित्व खत्म हो जाता है। रेड्डी ने यह भी कहा कि टीटीडी असम राइफल्स और मिजोरम पुलिस के संपर्क में है जो हेयर स्मगलिंग मामले की जांच कर रहे हैं।
बहुत से लोगों को इस बात पर हैरानी हो सकती है कि मुंडन में दिए बालों की भी तस्करी हो सकती है। चाहें तो इसे ‘बाल की राजनीतिक खाल निकालना’ भी कह सकते हैं। जहां तक सिर के बाल देना या सिर घुटाने की बात है तो कई लोग शौकिया या फैशन के तौर पर भी ऐसा करते हैं। ईसाइयत को छोड़कर हिंदू सहित कुछ अन्य धर्मों में विशिष्ट अवसर पर सिर के बाल देने या उतारने की परंपरा है। हिंदू धर्म में इसे चूडाकरण संस्कार कहा जाता है। तिरूपति देवस्थानम् यानी भगवान बालाजी के मंदिर में भक्तों द्वारा मुंडन करवाकर अपने बाल दान करने की सदियों पुरानी अडिग परंपरा है। इसके पीछे एक दिलचस्प कथा बताई जाती है। भगवान बालाजी की प्रतिमा पर लगे बाल असली हैं। वे रेशमी और सरल सीधे होते हैं। कहते हैं कि पृथ्वी पर राज करते समय किसी दुर्घटनावश भगवान बालाजी के बाल चले गए। गंधर्व राजकुमारी नीला देवी को इस का पता चला तो उसने अपने सुंदर बालों को काटकर देवी के चरणों में अर्पण कर कठिन तपस्या की। देवी के प्रसन्न होने पर राजकुमारी ने प्रार्थना की कि वो ये बाल भगवान बालाजी के सिर पर स्थापित कर दे। राजकुमारी की मन्नत पूरी हुई। उसी के बाद से बालाजी मंदिर में भक्त मन्नत मानने या उसकी पूर्ति होने पर भगवान बालाजी को अपने बाल देते हैं। भक्तों के लिए वह अडिग आस्था का विषय है तो तिरूपति में मंदिर यह अपने आप में बड़ा कारोबार है और मंदिर की आय का एक साधन भी। वहां हर साल लाखों भक्त आते हैं और अपने बाल देते हैं। लिहाजा ट्रस्ट ने इसके लिए 1500 नाई काम पर रखे हैं, जिनमें करीब 275 महिलाएं हैं। हालांकि महिलाअों को यह काम पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। मंदिर परिसर में केशवपन के लिए 12 बड़े हाॅल हैं, जहां तीन शिफ्टोंक बाल उतारने का काम चलता है। उतरे हुए बालों को साफ कर, उनकी लंबाई और चमक के आधार पर ग्रेडिंग की जाती है। उन्हें नियंत्रित तापमान वाले सुरक्षित कक्षों में रखा जाता है। ट्रस्ट इन बालों की ई-नीलामी करता है। 2019 में ट्रस्ट ने इन बालों से लगभग 12 करोड़ रू. कमाए। बाजार में ये मानव बाल 6 हजार रू. किलो तक बिकते हैं। इन बालों का उपयोग बड़े पैमाने पर तरह तरह के विग बनाने के लिए होता है।
कम ही लोगों को पता होगा कि मानव बालों के निर्यात में भारत का नंबर विश्व में दूसरा है। हमसे आगे केवल हांगकांग है। 2019 में भारत ने दुनिया को 139 करोड़ रू. के बाल निर्यात किए। इन बालो के बड़े खरीदार यूरोप, चीन और अमेरिका हैं। भारतीय महिलाअों के बालों की मांग ज्यादा है, क्योंकि ये अमूमन काले, चमकीले और काफी लंबे होते हैं। चीन सहित कुछ और देशों में ये बाल तस्करी के माध्यम से पहुंचते हैं। बताया जाता है कि चीन के लोग चीनी और भारतीय बालो को मिलाकर सस्ते विग तैयार कर दुनिया को बेचते हैं। म्यानमार की सीमा पर जो बाल पकड़े गए, वो भी थाईलैंड होते हुए चीन भेजे जाने थे।
यह बात अलग है कि भगवान को अर्पित करने वाले भक्त यह नहीं सोचते कि उनके बालों का आगे क्या होगा। वो तो यह मानते है कि भगवान को बाल से मन्नतें पूरी होती हैं। हालांकि तिरूपति के अलावा कुछ और हिंदू धर्म स्थलों पर बाल देने की परंपरा है, लेकिन दिए गए बालों का सुसंगठित तरीके से व्यवसाय तिरूपति में ही होता है। वैसे हिंदुअों में बच्चों के मुंडन और मृतक की अंत्येष्टि के समय और पश्चात भी बाल देने की परंपरा है। लेकिन इन उतरे हुए बालों पर किसी ने सियासी चढ़ाई करने की कोशिश नहीं की।
रहा सवाल बालों पर राजनीति करने का इसके पीछे एक वजह तिरूपति लोकसभा सुरक्षित सीट पर 17 अप्रैल को होने वाला उपचुनाव भी हो सकता है। यह सीट पिछले चुनाव में सत्तारूढ़ वायएसआर कांग्रेस के बाली दुर्गा प्रसाद ने जीती थी। लेकिन पिछले दिनो उनका कोरोना संक्रमण से निधन हो गया था। इस चुनाव के जरिए विपक्ष में बैठी टीडीपी फिर से सियासी ताकत पाने की कोशिश कर रही है तो पिछले लोकसभा चुनाव में हाशिए पर रही भाजपा ने इस दफा जाति कार्ड खेलकर उपेक्षित माडिगा दलित जाति में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है। जबकि वायएसआर कांग्रेस को भरोसा है कि वह तिरूपति सीट फिर से जीत लेगी। बहरहाल बालों की तस्करी की तस्करी की आड़ में सत्तारूढ़ वायएसआर कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप इस उपचुनाव में कितना असर दिखाएगा कहना मुश्किल है, बावजूद इसके बालों के जरिए राजनीति साधने का यह मामला अपने आप में अनोखा है। अगर यह मुद्दा कभी चल गया तो सोचिए कि अगले चुनाव में मानव शरीर के और हिस्सों पर भी राजनीति हो सकती है। क्योंकि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है।
वरिष्ठ संपादक,अजय बोकिल ये लेखक के अपने विचार है I
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