कश्मीरी पंडित की बेटियों ने क्या कहा कि काम में अंधे खलीफा ने मोहम्मद बिन कासिम की खाल में भूसा भरवा दिया, जानिए कश्मीर की कहानी
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12-09-2024 02:43 PM
नई दिल्ली: 712 वो साल है, जब भारत पर अरबों का पहला आक्रमण हुआ। खलीफा के एक कमांडर मोहम्मद बिन कासिम ने यह हमला किया, उस वक्त सिंध पर राजा दाहिर का राज था। जिन्होंने 663 से लेकर 712 ईसवी तक सिंध पर शासन किया। वो राजा चच के सबसे छोटे बेटे और ब्राह्मण वंश के आखिरी शासक थे। वह आखिरी कश्मीरी पंडित थे, जिन्होंने सिंध पर शासन किया था।
कहा जाता है कि सदियों पहले कई कश्मीरी ब्राह्मण वंश सिंध आकर आबाद हुए। जो पढ़ा-लिखा और राजनीति में गहरी पैठ रखने वाला तबका हुआ करता था। उस वक्त सिंध के राय घराने की 184 साल पुराने शासन की जगह चच वंश के पहले ब्राह्मण राजा बने। सिंध के इतिहास को बयां करने वाली किताब 'चचनामा' के अनुसार, राजा दाहिर की हुकूमत पश्चिम में मकरान, दक्षिण में अरब सागर और गुजरात, पूर्व में मौजूदा मालवा के केंद्र और राजपूताने और उत्तर में मुल्तान से लेकर दक्षिणी पंजाब तक फैली हुई थी। मगर, राजा दाहिर को बड़ा धक्का तब लगा, जब कासिम का साथ देने वाले बौद्धों ने उनके साथ विश्वासघात किया। आज कश्मीर की कहानी की दूसरी किस्त में जानते हैं राजा दाहिर और उनके साथ हुए विश्वासघात और अपने पिता का बदला लेने वाली राजा दाहिर की बेटियों की कहानी।
अपना सिर कलम करवाने में आगे रहते थे राजा दाहिर
राजा चच की तरह राजा दाहिर बहुत पराक्रमी थे। उन्होंने भी मुस्लिम आक्रमणकारियों के दांत खट्टे कर दिए थे। चचनामा के अनुसार, हर एक सच्चे सिंधी को राजा दाहिर के कारनामे पर फख्र होना चाहिए क्योंकि वो सिंध के लिए सिर कलम करने वालों में सबसे आगे थे। इनके बाद सिंध 340 बरसों तक दुश्मनों का गुलाम रहा, जब तक सिंध के सोमरा घराने ने हुकूमत हासिल नहीं कर ली।
दाहिर को जब बौद्ध भिक्षुओं ने दे दिया धोखा
राजा दाहिर के सत्ता पर काबिज होने से पहले उनके भाई चंद्रसेन राजा था। चंद्रसेन बौद्ध समर्थक थे। मगर, दाहिर ने आते ही बौद्ध धर्म को उतनी तवज्जो नहीं दी, क्योंकि सिंध और कश्मीर में शैव मत फल-फूल रहा था। चचनामा के अनुसार, राजा दाहिर से नाराज होकर बौद्ध भिक्षुओं ने मोहम्मद बिन कासिम के हमले के वक्त उसके सैनिकों का निरानकोट और सिवस्तान में जमकर स्वागत किया और पैसों से मदद की। साथ ही बौद्धों ने राजा दाहिर के महल के राज भी कासिम को बताए। हकीकत ये है कि राजा दाहिर के दो गवर्नर बौद्ध थे। चचनामा को फतेहनामा सिंध और तारीख अल हिंद वा सिंध भी कहा जाता है।
बगदाद से आया दूसरे खलीफा का फरमान
राजा दाहिर के ही जमाने में तब बगदाद से लेकर सीरिया, तब के पर्शिया यानी ईरान से लेकर पूरे अरब पर खलीफा का ही राज चलता था। दूसरे खलीफा उमैयद वंश के खलीफा वालिद बिन अब्दुल मलिक के जमाने में बगदाद के सबसे बेरहम गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफ का शासन था। उस वक्त खलीफा और हज्जाज दूर-दूर से सुंदर औरतों को अपने हरम का हिस्सा बनाया करते थे। अरब के कुछ इतिहासकारों के अनुसार, सुंदर औरतों की वजह से अरब के लोग उसे जवाहरातों का द्वीप कहते थे।
जब देवल बंदरगाह पर औरतों को बंदी बनाने की कोशिश की
दमिश्क और बगदाद जाते वक्त जब अरबों का जहाज भारत के देवल बंदरगाह पर रुका तो वहां से कुछ औरतों को बंदी बनाकर ले जाने की कोशिश की। इस पर तटीय सीमा रक्षकों ने अरबों को भगा दिया। इसके बाद खलीफा ने भारत के खिलाफ जेहादी अभियान छेड़ने का आदेश दिया। इतिहासकार एचएम इलियट के अनुसार, 'इन क्रूर धर्मोन्मादी अरबों ने अपनी पूरी जिंदगी लंपटपूर्ण विलासिता और कामुकता में बिता दी थी। इसे पूरा करने के लिए उन्होंने धर्म का सहारा लिया।'
खलीफा ने दाहिर को मारने के लिए मोहम्मद बिन कासिम को भेजा
अपने खलीफा के आदेश का पालन करते हुए हज्जाज ने अरब सैनिकों की एक टुकड़ी सईद और मुज्जा के नेतृत्व में हमले के लिए भारत भेजी। हालांकि, राजा दाहिर ने इन्हें मकरान में मार गिराया। इसके बाद एक और टुकड़ी भेजी गई, जो मारे गए। इसके बाद हज्जाज ने एक बर्बर आततायी कमांडर मोहम्मद बिन कासिम को राजा दाहिर को सिर कलम करने के लिए भेजा। रिश्ते में कासिम खलीफा का दामाद और प्रिय भतीजा था। कासिम ने अपनी सारी ताकत से दाहिर पर आक्रमण किया, मगर दाहिर के सैनिकों ने उन्हें धूल चटा दी। एक इतिहासकार मुमताज पठान 'तारीख ए सिंध' में लिखते हैं कि राजा दाहिर इंसाफ पसंद थे। उनके राज में तीन तरह की अदालतें चला करती थीं, जिन्हें कोलास, सरपनास और गनास कहा जाता था। बड़े और आपराधिक मुकदमे राजा के पास जाते थे, जो आज के सुप्रीम कोर्ट की तरह होते थे।
जब औरतों के भेष में मदद मांगने आए मुस्लिम सैनिक
चचनामा के अनुसार, मोहम्मद बिन कासिम को जब कामयाबी नहीं मिली तो उसने धोखे से अपने कुछ सैनिकों को रात के समय औरतों के भेष में स्थानीय औरतों के झुंड में दाहिर की सेना के पास भेजा। रोती-बिलखती आवाजों की वजह से राजा दाहिर उनकी मदद के लिए बाहर आ गए। उसी वक्त पहले से घात लगाकर बैठे कासिम और उसके सैनिकों ने दाहिर पर तलवारों और भालों से हमला बोल दिया। दाहिर ने अपनी तलवार के दम पर काफी देर तक दुश्मनों का मुकाबला किया। मगर दुश्मन इतने ज्यादा थे कि उनकी तलवार टूट गई। इसी बीच, दुश्मनों ने दाहिर के शरीर में भाले घुसेड़ दिए। कहते हैं कि दाहिर भाला निकालकर आखिरी दम तक लड़ते रहे। कहा जाता है कि हज्जाज ने कासिम को संदेश भेजा था-काफिरों को जरा भी मौका मत देना। तुरंत उनके सिर कलम कर देना।
दाहिर की पत्नी ने महल की बाकी औरतों के साथ कर लिया जौहर
जब मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध की राजधानी अलोर पर कब्जा कर लिया तो राजा दाहिर की पत्नी मैना देवी ने रावर के किले के भीतर से कासिम के सैनिकों के साथ लड़ी। जब वो कासिम से हार गई तो उन्होंने किले की औरतों के साथ जौहर कर लिया। राजा दाहिर की दूसरी पत्नी रानी बाई ने ब्राह्मणाबाद के किले से अपने पुत्र जयसिम्हा के साथ कासिम की सेना से जमकर मुकाबला किया। आखिरकार वो भी मारी गईं।
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