इम्युनिटी बढाने के लिए प्रकृति ने इस समय में सभी को सीखा दिया है कि उससे बडा कोई नहीं है। जहां मंदिर मस्जिद से लेकर सभी कुछ लोकडाउन में है वही अब सभी को यह समझना होगा कि प्रकृति से आगे जाने या उसे खत्म करने या उस पर विजय पाने की कोशिश भी भारी है। इस दौर में प्रकृति ने अपना रूप दिखा दिया कि मनुष्य से लेकर प्रत्येक जीव-जंतु प्रकृति से सीधे जुडा है। अब समझना मानव को ही है क्योंकि वो ही है,जो प्रकृति को संजोके रख सकता है। पिछली पीढीयो से क्या सीखा वर्तमान में क्या करना है उसी से भविष्य तय होता है। अब सोचने और चिंतन का समय प्रकृति ने सभी को दिया है जो देश में लोकडाउन हुआ है उसके लाभ-हानि दोनों ही है यदि हानी की बात करें या सोचे तो सीधे अर्थव्यवस्था। लेकिन यदि इसके दूरगामी परिणाम देखेंगे तो वर्तमान की तरफ ,पहले बात प्रकृति पर आएगी क्योंकि अब प्रकृति ने पूरा पर्यावरण शुद्ध कर दिया या यूँ सोचे तो हवा,पानी शुद्ध हो गया और कह सकते है कि प्रकृति ने अपने आप को नया स्वरुप कर जन्नत बना दिया।
अभी गंगा दशहरे पर होशंगाबाद जाना हुआ जब वहां नर्मदा और ताप्ती नदी का जल देखा मन प्रसन्न हो गया वहां के आसपास का वातावरण वो शुद्ध वायु के साथ चमकता हुआ पानी मानो ऐसा लग रहा था कि जन्नत का नजारा हो उसे देख ऐसा लगा की यदि देश को इसी तरह 15 दिनों के लिए साल में एक बार बंद कर दें तो प्रकृति में खुद इतनी शक्ति है कि वो अपने आप को स्वच्छ कर लेगी और सरकारों द्वारा जो शुद्ध करने के लिए फ ण्ड रखा जाता है उसे रखने की जरुरत भी नहीं होगी।
आज सभी वायरस से परेशान है आम आदमी से लेकर शासन-प्रशासन तक वेक्सीन के इंतजार में है पर यदि वायरस को देखे तो वो सिर्फ वहीँ अटक कर रहा है जहां व्यक्ति का इम्युनिटी सिस्टम कमजोर है। अब शासन-प्रशासन,डॉक्टर्स सब एक ही बात समझा रहे है की अपनी इम्युनिटी बढाए, ताकि कोई भी वायरस आपके शरीर पर अटक न कर सके ।
इसका मतलब पर्यावरण शुद्ध होगा तो पोषक तत्व सभी को मिलने लगेंगे। लेकिन वही यदि प्रकृति को नष्ट करेंगे तो पोषक आहार कहाँ से मिलेगा। शुद्ध हवा, पानी आदि का मिश्रण ही तो प्रकृति से मिलता है। अब इस धरती के प्रत्येक मानव को सोचने का अच्छा समय मिला है। जिससे की वह अपनी समझ का उपयोग कर पूरी ईमानदारी और समझदारी से प्रकृति के प्रति अपना प्रेम,श्रद्धा और विश्वास करें, क्योंकि समय बार-बार मौका नहीं देता यदि इस समय पर भी नहीं चेते तो अगला आने वाला समय और भी भयानक हो सकता है।
ये बहुत अच्छा है की हमारे देश की संस्कृति,अध्यात्म और आयुर्वेद के साथ योग जुडा है जिससे की बडे -बुजुर्गों का आर्शीवाद आज भी जीवित है और हमें प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग पता है जैसे तुलसी,गिलोय,काढा आदि। जिन देशों में यह नहीं पता वहां के हालात सभी को दिख ही रहें है, इसका मतलब ये नहीं है की हम विश्वगुरु बन गए, लेकिन अब यह जिम्मेदारी भी आने वाले भविष्य और पीढी के लिए लेना होगी और प्रकृति प्रेम प्रत्येक के अंदर जगाना और बढाना होगा।
अब बरसात का मौसम शुरू हो रहा है तो यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने या अपने घर के सदस्य के नाम से एक पौधा लगा दे और ऐसी जगह लगाए जहाँ उस पौधे का संरक्षण वो स्वयं कर सके,वो कभी पौधा ऐसी जगह न लगाएं की किसी को उससे भविष्य में भी परेशानी हो। करोडों पौधे तो ऐसी ही लग जाएंगे, जो आने वाले भविष्य के लिए वरदान होंगे। कई संस्थाएं भी पौधे नि:शुल्क वितरित करती है यदि किसी की स्थिति खरीदने की नहीं है तो वो उनसे लेकर भी लगा सकता है लेकिन उसकी जिम्मेदारी भी उसे लेनी होगी।
यदि स्वयं सोच कर देखे तो स्वच्छता का सन्देश लेकर ही तो ये covid-19 नाम का संक्रमण आया है और ये भी समझाने आया है कि "सब धरा पर ही धरा रह जाएगा" खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना है। इसलिए अब उठो जागो और चलो प्रकृति की और। ....
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