नई दिल्ली । भारत-चीन सीमा
से लगे गांव
खाली होने लगे
हैं। ग्रीष्मकालीन प्रवास
पर उच्च हिमालयी
क्षेत्रों में जाने
वाले ग्रामीणों की
वापसी का सिलसिला
शुरू हो गया
है। 15 अक्तूबर तक सीमा
से लगे गांव
पूरी तरह खाली
हो जाएंगे। सीमा
के ये प्रहरी
अब अगले छह
महीने तक घाटी
वाले क्षेत्रों में
बने स्थायी घरों
में रहेंगे। पिथौरागढ़
में मुनस्यारी और
धारचूला के घाटी
वाले क्षेत्रों से
हर साल करीब
तीस गांवों के
छह हजार से
अधिक लोग उच्च
हिमालयी क्षेत्रों में खेती
करने के लिए
जाते हैं। इसी
खेती से अधिकांश
ग्रामीणों की आजीविका
चलती है। प्रवास
के दौरान ग्रामीण
जम्बू, गंदरायणी , छिपी, कूट,
काला जैसी जड़ी
बूटियों का उत्पादन
करते हैं। आलू
भी यहां बड़ी
मात्रा में उगाया
जाता है। निचले
इलाकों में इनकी
बढ़िया कीमत मिलती
है और इससे
ही इनकी आजीविका
चलती है। प्रवास
पर जाने ग्रामीण
सेना के असल
साथी भी हैं।
इनकी मौजूदगी से
सेना को बड़ी
मदद मिलती है।
साल 1962 में भारत-चीन विवाद
में भी ग्रामीणों
ने सेना को
बड़ा सहयोग पहुंचाया
था। आज भी
सेना का सामान
ढोने से लेकर
कई प्रकार के
सहयोग ग्रामीण करते
हैं।आम तौर पर
15 मार्च के बाद
ग्रीष्मकालीन प्रवास शुरू होता
है और 15 अक्तूबर
तक लोग वापस
लौट आते हैं।
इस बार कोरोना
के कहर के
कारण माइग्रेशन दो
माह देरी से
शुरू हुआ। 15 मई
के बाद ग्रामीण
उच्च हिमालयी क्षेत्रों
में जा सके
थे। सितंबर पर
में ठंड शुरू
होने के साथ
ही प्रवासी लौटने
लगते हैं। प्रवास
वाले गांवों में
ठंड शुरू हो
गई है। इन
दिनों यहां अधिकतम
तापमान 14 डिग्री सेल्सियस और
न्यूनतम तापमान चार डिग्री
तक पहुंच रहा
है।