वास्तु, प्रकृति, पारिस्थिति और पर्यावरण का सरल अर्थ
Updated on
29-05-2022 11:26 AM
दिनचर्या मैं प्रकृति, पारिस्थिति और पर्यावरण का अर्थ बड़ा आसान है। बिस्तर से उठने से पहले आप वही इधर-उधर करवट ले एवं मां के पेट में बच्चा कैसा होता है उस अनुसार अपने शरीर को कुछ मोड़कर योगा करें। फिर ब्रह्म मुहूर्त में सुर्य को नमस्कार और मन की बात करें। तुलसी या किसी भी पेड़ पौधे से बात करें, ताजी हवा मैं बैठे, कोई अच्छा सा संगीत सुनें, घर में धूप अगरबत्ती लगाये। और मनपसंद चाय नाश्ता का सेवन करें। यहां पारिस्थिति अनुसार सिजनल आपके एरिये की फ्रूट, अनाज एवं सब्जी भरपूर खाये। यदी पूरा परिवार साथ में चाय नाश्ता कर रहे हो तब आपस में एक दूसरे को समझने का अवसर भी रहता है। घर का पर्यावरण (माहौल) भी सुधरता है। वास्तु याने घर निर्माण कला इसमें शामिल है दिशाएं व अंतरिक्ष की तरंगे। घर मैं धूप और ताजी हवा का प्रवेश कराना यही वास्तु कला है। मनभावन रंग रोगन और शिल्पकला से मन मैं शांति और विचारों में सृजनता बढ़ती हैं। पारिस्थिति याने आपके एरिया अनुसार प्रकृति की देन। वैसे पर्यावरण दो प्रकार के होते हैं एक प्रकृति प्रदत्त, दूसरा व्यक्ति अपने विचार और कार्यशैली से निर्मित करता हैं याने घर एवं आसपास का माहौल जो हमारे द्वारा निर्मित होता है। इसको आप अपने अनुसार परिभाषित करे यह आपके जीवन को जीवन शैली द्वारा प्रभावित करता हैं।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, वास्तु एवं पर्यावरणविद् )
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