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मंदिर की भव्यता बढ़ाने के लिए तरह-तरह की सजावट

Updated on 06-03-2023 01:34 AM
शान शौकत और दिखावटी जिंदगी वाले इस नए दौर में फूल, नोट (करेंसी), सिक्के, फल, (फ्रूट) मिठाई, ड्राई फ्रूट और 56 से लेकर 1008 तक के व्यंजन की सजावट होने लगी। कही 1-2 किलोमीटर लंबी चुनरी चढाने लगे तो कहीं कहीं कई किलोमीटर तक सड़क के दोनों और लाइटिंग।
🔴 मानते हैं धर्म स्थल पर आकर्षण होना चाहिए पर फिजूलखर्ची का नहीं होना चाहिए यथार्थ की मानव सेवा का आकर्षण होना चाहिए जिससे मन की शुद्धि और पवित्रता का भाव पनपे।
🔴 इतने लंबे चौड़े खर्च का सदुपयोग मानव जाति के उत्थान के लिए पहले भी होता था आज भी हो सकता है। इस दिखावटी फिजूलखर्ची से कुछ मानव जाति को लाभ नहीं पहुंचता है एक बल्कि उनके मन में आपसी होड़ पैदा हो जाती है कि उन्होंने ऐसा किया तो मैं भी भव्यता में ऐसा ही करूं।
🔴 ईश्वर का संदेश दिखाने में नहीं बल्कि आत्मा में पवित्रता बिठाने का है। साईं बाबा पूरी जिंदगी फकीर रहे परंतु आज उनकी मूर्ति बनाकर सोने चांदी का मुकुट पहनाते हैं।
🔴 आज सबसे वैचारीक बात यह है कि आखिर में धर्मस्थल क्यों बनाए जाते हैं और क्या है वास्तविकता में धर्म की परिभाषा, धर्म से हमें क्या संदेश मिलता है क्या उपदेश मिलता है और उसे हमें कैसे अपने जीवन में पालन करना चाहिए। जानकारी में यह भी आया है कि आजकल धार्मिक कथा आयोजनो का भी व्यवसायीकरण हो गया है। कथा वाचन करने वाले सभी को कहते हैं कि दान करो पुण्य मिलेगा और वे स्वयं उस कथा करने के लिए काफी लंबी चौड़ी रकम मांगते हैं और दान पेटी में हिस्सा मांगते हैं।
🔴 मैं हिंदू धर्मावली से हूं बचपन से वही देखता हूं और रामायण महाभारत और भगवत गीता के सार से जिंदगी के कई सबक इस महान ग्रंथ से सीखने को मिले हैं, की दिखावटी जिंदगी में छल कपट ज्यादा आ जाता है और भगवान राम रूपी जीवन अपनाने से आदर्शता आती है और छल कपट दूर हो जाते है। असली धर्म त्याग मैत्री भाव राष्ट्रप्रेम और कर्म-धर्म से जुड़ा है जो कि संपूर्ण मानवता के लिए एक अनन्य सीख है।
🔴 हिंदू धर्म और संस्कृति विश्व में सर्वोच्च आदर प्राप्त है। और उसी आदर को आने वाली पीढ़ियों तक कायम रखना हम सभी का कर्तव्य है। धर्म प्रचार जरूर हो लेकिन दिखावटी तौर पर नहीं बल्कि वास्तविकता में जीवन शैली में उतारने पर हो।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)
(धार्मिक अंधभक्ति के दौर में कुछ भी कहना बड़ा जोखिम का काम है पर विचारक होने के नाते अपनी बात कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। फिर भी किसी को यदि ठेस लगे तो मैं ह्रदय से क्षमा चाहता हूं।)
(ये लेखक के अपने विचार है)

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