भारतीय संस्कृति में धर्मों का बड़ा प्रभाव होने से यहां जगह-जगह मंदिर बने है। जितने भी बड़े मंदिर या धार्मिक स्थल की जगह है उनका सदुपयोग सामाजिक स्तर पर भी किया जा सकता है जैसे समाज के कम आय वाले परिवारों को रहने के लिए कम किराए पर रहवासी मकान, प्राथमिक से लेकर हायर सेकेंडरी स्कूल, वर्किंग वुमन होम, बाहर से पढ़ने आए बच्चों के लिए हॉस्टल, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, वृद्ध आश्रम, ठाना पंथ संत साध्वी के लिए निवास आदि जहां पर जो भी सुविधा एवं व्यवस्था कर सके करना चाहिए।
अभी हमारे यहां धार्मिक स्थलों पर ठहरने की, खाने की, पूजा पाठ की अच्छी व्यवस्था है, कहीं-कहीं तो थ्री स्टार रैंक की व्यवस्था हैं। वहां रुकना और शाम की आरती पुजा का जो आनंद आता है वह हमें सुखद अलौकिक अनुभव कराता है मन पवित्र हो जाता है। हमारे समाज में दान धर्म देने वाले बहुत लोग हैं बस सिर्फ सोच ऐसा चाहिए कि उस पैसे को सामाजिक व्यवस्था के लिये कैसे उपयोग में लाएं, मुझे नहीं लगता कि मेरे इन विचारों पर कोई संत, ट्रस्टी या हीं है बस एक बार विचार करने की कोशिश जरूर करे।
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