पहले ही महंगाई से जूझ रहे आम आदमी को एक और झटका लग सकता है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने चेतावनी दी है कि मार्च तक महंगाई पीक पर पहुंचने की आशंका है। इसके अलावा लोन भी फिलहाल सस्ता नहीं होगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। इसके मायने यह भी हैं कि आपकी मौजूदा ईएमआई में कोई बदलाव नहीं होगा। भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से एक बार फिर से रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है। आरबीआई के गवर्नर ने गुरुवार को साफ किया कि रेपो रेट पहले की तरह ही 4 फीसदी रहेगी और रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसदी बनी रहेगी। इससे पहले आरबीआई ने मई 2020 में नीतिगत दरों में बदलाव किया था। आज रेट में बदलाव न होने से साफ है कि लगातार दो सालों तक नीतिगत दरें एक समान ही रहेंगी। आरबीआई ने खुदरा महंगाई दर के वित्तीय वर्ष 2021-22 में 5.3 फीसदी रहने का अनुमान लगाया। चौथी तिमाही में यह 5.7 फीसदी रह सकती है। वहीं, वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए इन्फ्लेशन 4.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। 2022-23 की पहली तिमाही में महंगाई 4.9 फीसदी, दूसरी तिमाही में 5 फीसदी, तीसरी तिमाही में 4 फीसदी और चौथी तिमाही में 4.2 फीसदी रह सकती है। उन्होंने कोरोना काल की बात करते हुए कहा कि हमने बीते
दो सालों में देखा है कि दुनिया किस तरह से बदली है। आज भले ही हम इस बात को लेकर अनिश्चित हैं कि भविष्य में क्या होगा, लेकिन हमें भरोसा बनाए रखना होगा। अर्थव्यवस्था के भविष्य के बारे में फिलहाल बात करना आसान नहीं है। जिस तरह से वायरस फैल रहा है, उसे लेकर कुछ भी अच्छा या बुरा होने के बारे में भरोसे से कुछ नहीं कहा जा सकता। हालांकि उन्होंने कहा कि हमने बीते दो सालों में बहुत से सबक सीखे हैं। अब हमारा हौसला और उम्मीदें कभी कम नहीं होंगी। आम लोगों के सामने पिछले करीब दो साल से कई
तरह की मुश्किलें लगातार पेश आ रही हैं और उनके लिए अपने जीवन को सहज रख पाना एक चुनौती बनी हुई है। महामारी की मार के अलग-अलग रूपों ने रोजमर्रा की जरूरतों से भी समझौता करने के हालात पैदा कर दिए हैं। आय और खर्च का संतुलन इस कदर बिगड़ता जा रहा है कि कई बार लोग लाचार भाव से बाजार की ओर देखते हैं। मसलन, आय में तेजी से गिरावट के साथ घटती क्रय-शक्ति या फिर बेरोजगारी में इजाफे के दौर में महंगाई ने लोगों के जीवन को किस स्तर तक प्रभावित किया है, उससे सभी वाकिफ हैं। जनता का खयाल रखने का भरोसा देने वाली सरकारों को इस समस्या के हल के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत थी। लेकिन हालत यह है कि एक ओर लोगों के सामने रोजमर्रा का खर्च चलाना भारी पड़ रहा है, दूसरी ओर लगभग सभी जरूरत की चीजों की कीमतें बेलगाम बढ़ती जा रही हैं। खासकर खाने-पीने की वस्तुओं की महंगाई ने लोगों को ज्यादा परेशानी में डाल दिया है। सरकार का कहना है कि मंहगाई की मौजूदा मुश्किल की वजह खनिज तेलों, मूल धातुओं, कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, रसायन और रासायनिक उत्पादों, खाद्य उत्पादों आदि की कीमतों में बढ़ोतरी है। यानी कहा जा सकता है कि सरकार की ओर से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है, जो थोड़ी राहत का सबब बन सके। हालत यह है कि बहुत सारे साधारण परिवारों को अपनी थाली में कटौती करनी पड़ रही है, क्योंकि बाजार में अनाज से लेकर सब्जियों और खाद्य तेल आदि खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतें अब बहुत सारे लोगों की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। अभी महामारी से मुक्त वक्त की संभावना काफी दूर दिख रही है, जिस वजह से लोग खर्च के मामले में कोई जोखिम उठाने से बच रहे हैं। ऐसे में अनिवार्य वस्तुओं की महंगाई ने लोगों की चुनौती दोहरी कर दी है।
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