प्रकृति के अनगिनत रहस्य है जिन्हे हमें समझने में कई वर्ष लग जाएंगे क्योंकि अभी तक हम अपने स्वयं के शरीर के बारे में भी पूरी तरह नहीं जान पाए हैं एवं प्रकृति पर उत्पन्न सभी जीव जंतु वायरस वनस्पति उनका भी पूरी तरह ज्ञान नहीं कर पाए है तो हम जीवन का सत्य भी नहीं समझ पाएंगे। प्रकृति में हमारा जन्म सिर्फ एक मशीन के रूप में हुआ है हमारा काम पृकति की वनस्पति एवं फल फ्रुट साम्रगी को खाना पचाना और उसे मल के रूप में वापस प्रकृति में छोड़ना है। हम ही नहीं प्रकृति में जितने दूसरे जीव है उनका भी यही कार्य है सब के ऊपर अपनी अपनी जवाबदारी है। जंगल में छोटे-मोटे कीड़े मकोड़ों पर जंगल की सफाई, गाय बैल भैंस बकरी हिरण आदि को घास के बड़े-बड़े मैदान को चरना और इन जीवो की संख्या ज्यादा ना हो जाए तो मांसाहारी जिवो को बना दिया। एक के ऊपर एक को नष्ट करने का पूरा प्रावधान इकोसिस्टम ने बनाए रखा है। अब जरूरत है हमें हमारे जीवन का जो सत्य है हम उसे स्वीकार करें प्रकृति ने हमें जो मस्तिष्क दिया उसका सदुपयोग कर जिवन बिताएं या हम हमारे मस्तिष्क का जरूरत से ज्यादा उपयोग कर प्रकृति के सब नियमों का उल्लंघन करते हुए जीवन जीने का सोचे। प्रकृति में भी कई परिवर्तन है और वह भी हमें समय-समय को मारने का इंतजाम रखती है कभी भूकंप कभी अकाल कभी बाढ़। हमे परिस्थिति और पर्यावरण पर बहुत शोध करना होगा तभी हम किसी भी जीवन के सत्य तक पहुंचेगे। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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