असम विधानसभा चुनाव में कसौटी पर है तोमर और बघेल की रणनीति
Updated on
22-03-2021 01:26 PM
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए असम और पश्चिम बंगाल काफी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि असम में उसे अपनी सरकार बरकरार रखते हुए दूसरी पारी खेलना है तो वहीं दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में भाजपा को उम्मीद है कि बरसों से वह पश्चिम बंगाल में अपनी सरकार बनाने का जो सपना देख रही थी वह इस चुनाव में साकार हो सकता है । भाजपा को भरोसा है कि इस बार उसके अनुकूल पहली बार सकारात्मक माहौल विधानसभा चुनाव में नजर आ रहा है और वह तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो तथा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की 10 साल पुरानी सत्ता को उखाड़ कर अपने भगवाई चमक-दमक वाली सत्ता स्थापित कर सकती है। पश्चिम बंगाल में मध्य प्रदेश के कई बड़े नेता लगे हुए हैं और कैलाश विजयवर्गीय भाजपा के प्रदेश प्रभारी हैं। असम में भाजपा ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को प्रभारी बनाया है। वहीं दूसरी ओर वहां सत्ता की मजबूत दावेदार कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को चुनाव का प्रभारी बनाया है। वहां पर नरेंद्र सिंह तोमर और भूपेश बघेल की चुनावी रणनीति दांव पर लगी है और नतीजों के बाद ही यह पता चल सकेगा कि तोमर और बघेल में से किसकी रणनीति सफल रहती है।
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर असम विधानसभा चुनाव में फिर से भाजपा का कमल खिलाने के लिए कांग्रेस पर भारत की सबसे बड़ी सांप्रदायिक पार्टी होने का आरोप लगाते हुए कह रहे हैं कि देश में भ्रष्टाचार का जन्म कांग्रेस की कोख से ही हुआ है और उसने चुनावों में सांप्रदायिक ताकतों के साथ गठबंधन किया है। इस प्रकार असम के मतदाताओं को समझा रहे हैं कि कांग्रेस के स्थान पर फिर से भाजपा को एक मौका और दें ताकि विकास की नई इबारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनवाल लिख रहे हैं वह सिलसिला तेजी से आगे बढ़ता रहे । वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कांग्रेस ने असम में कांग्रेस के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनाने की जिम्मेदारी सौंप रखी है। बघेल भाजपा के आरोपों का तर्कसंगत उत्तर देते हुए छत्तीसगढ़ पैटर्न पर चुनावी व्यूह रचना करने के साथ ही मतदाताओं से सरकार बनने पर 5 वायदे जो चुनाव में गेम चेंजर हो सकते हैं को पूरा करने की गारंटी दे रहे हैं। तोमर के द्वारा असम में एआईयूडीएफ के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल के साथ कांग्रेस के चुनावी गठबंधन संबंधित आरोप पर पर बघेल पलटवार करते हुए कहते हैं कि स्थानीय चुनाव में जब भाजपा एआईयूडीएफ से समझौता करती है तब उन्हें एतराज नहीं होता और आज जब वो अलग हो गए हैं तो भाजपा को तकलीफ हो रही है। बघेल का आरोप है कि भाजपा के लोग अपनी सुविधा से फैसला करते हैं। भाजपा यह बताए कि आखिर उसने स्थानीय चुनावों में अजमल के साथ समझोता क्यों किया था । नरेंद्र सिंह तोमर और भूपेश बघेल दोनों की संगठनात्मक क्षमता मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में परखी जा चुकी है। 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में नरेंद्र सिंह तोमर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे और दोनों चुनावों में भाजपा को बहुत अच्छी सफलता मिली थी।छत्तीसगढ़ में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए जो बूथ स्तर का प्रबंधन भूपेश बघेल ने किया था, उसके चलते 15 साल की भाजपा की डॉ रमन सिंह सरकार को 2018 के विधानसभा चुनाव में न केवल उखाड़ फेंका अपितु तीन चौथाई बहुमत से सरकार बनाई। असम में अपने भरोसे के नेताओं और कार्यकर्ताओं की टीम को लेकर गए हैं और बूथ को मजबूत करने की रणनीति को मैदान तक उतार चुके हैं ।
कांग्रेस पर तोमर के आरोप
केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस पर भारत की सबसे बड़ी सांप्रदायिक पार्टी होने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस ने असम, बंगाल और केरल में सांप्रदायिक ताकतों के साथ चुनावी गठबंधन किया है। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर ने दावा किया कि कांग्रेस एक ओर पंथनिरपेक्षता की बात करती है और दूसरी ओर लोगों को आपस में लड़ाती है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने बंगाल में अपने कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद एक सांप्रदायिक पार्टी के साथ गठबंधन किया है। पश्चिम बंगाल में माकपा नीत वाम मोर्चे, कांग्रेस और नवगठित इंडियन सेकुलर फ्रंट (आइएसएफ) ने गठजोड़ किया है। आइएसएफ के प्रमुख एक प्रभावशाली मुस्लिम मौलवी हैं। तोमर ने कहा, 'कांग्रेस का मुस्लिम लीग (केरल) के साथ भी गठबंधन है। असम में उसका बदरुद्दीन अजमल (एआइयूडीएफ अध्यक्ष) के साथ गठबंधन है जो सांप्रदायिकता का पर्याय हैं।' उन्होंने कहा कि इस कारण कांग्रेस सांप्रदायिकता के बारे में बात करने का अधिकार खो चुकी है। तोमर ने दावा किया कि कांग्रेस उन इलाकों में एआइयूडीएफ के साथ अपने गठबंधन को प्रचारित नहीं कर रही है जहां उसे लगता है कि इससे उसकी चुनावी संभावना पर असर पड़ सकता है। कांग्रेस को लगता है कि असम के लोग इसे नहीं समझते, लेकिन वे सब समझते हैं, अब उसे भी इसका पता चल जाएगा ,जब चुनाव परिणाम घोषित होंगे। इस प्रकार असम के चुनाव प्रचार में भाजपा अजमल के साथ कांग्रेस के गठजोड़ का मामला जोरशोर से उठा रही है और लगता है कि उसे इस बात का पक्का भरोसा है कि यहां पर इसके सहारे आसानी से मतों का ध्रुवीकरण करने में वह सफल रहेगी ।
छत्तीसगढ़ मॉडल पर बनेगी सरकार
चुनाव में कांग्रेस की कमान संभाल रहे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस बात के लिए आश्वस्त हैं कि गुजरात मॉडल की नहीं अपितु छत्तीसगढ़ मॉडल पर असम में कांग्रेस की सरकार बनेगी। चुनाव में अजमल के साथ समझौते को लेकर भाजपा द्वारा कांग्रेस पर लगाए जा रहे आरोप का उत्तर देते हुए भूपेश बघेल कहते हैं कि सीएए का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों का एलायंस असम में चुनाव लड़ रहा है। वह यह भी दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में ही असम में शांति स्थापित हुई थी और हम फिर से असम में सरकार बनाने जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ मॉडल जिस पर सरकार बनाने का दावा बघेल कर रहे हैं उनके अनुसार वह मॉडल यह है कि 2018 विधानसभा चुनाव के पहले बघेल ने बूथ स्तर पर काफी काम किया था और उसका ही असर था कि 90 में से 68 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। बघेल कहते हैं कि तीन चौथाई बहुमत से छत्तीसगढ़ में हम जीते थे और यही फार्मूला हम असम लेकर आए हैं। इस फार्मूले को असम के प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष ने स्वीकार किया है।असम की 127 विधानसभा सीटों में से 126 सीटों पर संकल्प शिविर पूरे हो चुके हैं। शिविर में सैकड़ों की तादात में बूथ स्तर के कार्यकर्ता आते थे और इसका जबरदस्त सकारात्मक असर हुआ है तथा आज हम यहां सरकार बनाने की स्थिति में हैं। 15 साल तक असम के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई के निधन से क्या कांग्रेस उनकी कमी महसूस कर रही है के संबंध में बघेल कहते हैं कि निश्चित तौर पर तरुण गोगोई की कमी खल रही है। वह हमारे बहुत बड़े नेता थे और असम में शांति स्थापना उनके कार्यकाल में हुई तथा विकास के ढेरों काम हुए, उनकी कमी तो है, लेकिन समय रूकता नहीं, समय चलता रहता है। वर्तमान पीढ़ी ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया है और मैं समझता हूं कि असम के नतीजे जबरदस्त आएंगे।
कांग्रेस ने बघेल को क्यों सौंपी जिम्मेदारी
कांग्रेस हाईकमान ने आखिर बघेल को ही क्यों असम में जिम्मेदारी सौंपी यह सवाल उठना स्वाभाविक है। छत्तीसगढ़ से चाय बागानों में काम करने के लिए छत्तीसगढ़िया मजदूर बहुत बड़ी संख्या में असम गए थे और फिर असम में ही रह गए थे उनके बीच फिर से कांग्रेस का जनाधार बढ़ाने के लिए बघेल से मुफीद कोई नेता नहीं हो सकता था इसलिए उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई। बघेल वहां पर पूरी सक्रियता से चुनाव प्रचार करने में जुटे हुए हैं और उनका जोर चाय बागानों में काम करने वाले मजदूरों को फिर से कांग्रेस के पाले में लाना है। यही कारण है कि चाय बागान इलाके में पहले कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और बाद में राहुल गांधी का चुनावी दौरा आयोजित किया गया। उल्लेखनीय है कि डिब्रूगढ़ इलाके में छत्तीसगढ़ के मजदूर रहते हैं. पिछले चुनाव में भाजपा की सरकार बनाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही थी। बघेल यह स्वीकार करते हैं कि चाय बागानों के मजदूर पिछले चुनाव में हमसे नाराज थे पिछले विधानसभा चुनाव में इनके एकतरफा मतों के कारण ही भाजपा की जीत हुई। लेकिन अब हालात बदले है, क्योंकि भाजपा के वादे खोखले साबित हुए हैं इसलिए इस इलाके में कांग्रेस की स्थिति फिर से मजबूत हो गई है।
और यह भी
चुनावी वायदों के बारे में भूपेश बघेल कहते हैं कि हम वादा नहीं कर रहे अपितु गारंटी दे रहे हैं कि हमारी सरकार बनने पर चाय बागान के श्रमिकों को 365 रूपए मजदूरी देंगे, सीएए लागू नहीं होगा,गृहणियों को दो हजार रूपए सम्मान निधि दी जाएगी, 200 यूनिट तक बिजली बिल माफ होगा तथा पांच लाख लोगों को सरकारी नौकरी दी जाएगी । सवाल यह उठता है कि मतदाता कांग्रेस की गारंटी पर क्यों भरोसा करें के बारे में बघेल यह भी दावा कर रहे हैं कि मतदाता बिल्कुल भरोसा करेगा क्योंकि छत्तीसगढ़ में कर्जमाफी, 2500 रूपए समर्थन मूल्य पर धान खरीदी का जो वादा किसानों से किया था, उसे हमने पूरा किया। जब केंद्र सरकार ने अड़ंगा लगाया तो हमने राजीव गांधी न्याय योजना शुरू की और इस साल 92 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा।किसान, मजदूरों के साथ जो वादे हमने किए थे, वह पूरे किये और जो छत्तीसगढ़ में हो सकता है, वह असम में भी हो सकता है।
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