आज है पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती
Updated on
02-10-2021 12:52 PM
लालबहादुर शास्त्री का जन्म : 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) : मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकंद, सोवियत संघ रूस, भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे।
लालबहादुर
शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में एक कायस्थ परिवार
में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्राथमिक
विद्यालय में शिक्षक थे अत: सब उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में
उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी ।
लालबहादुर
की माँ का नाम रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक
लालबहादुर को परिवार वाले प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब
नन्हें अठारह महीने का हुआ दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। उनकी माँ
रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं। कुछ समय बाद उसके
नाना भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हें की परवरिश करने में उसके मौसा
रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए उसने
प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और
काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिली I
तब से उन्होंने अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया।
1928 में उनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ।
ललिता शास्त्री से उनके छ: सन्तानें हुईं, दो पुत्रियाँ-कुसुम व सुमन और
चार पुत्र-हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक।
राजनीतिक जीवन "मरो
नहीं, मारो!" का नारा लालबहादुर शास्त्री ने दिया जिसने क्रान्ति को पूरे
देश में प्रचण्ड किया। संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा समाप्त
करने के पश्चात् वे भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुए
यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी ने अपना सारा जीवन
सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता
संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय
भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा।
स्वाधीनता संग्राम के जिन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें
1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो
आन्दोलन उल्लेखनीय हैं। शास्त्रीजी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में
पुरुषोत्तमदास टंडन और पण्डित गोविंद बल्लभ पंत के अतिरिक्त जवाहरलाल नेहरू
भी शामिल थे। सबसे पहले 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने टण्डनजी के
साथ भारत सेवक संघ की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू
किया। इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरूजी के साथ उनकी निकटता बढ़ी। प्रधान मन्त्री उनकी
साफ सुथरी छवि के कारण ही उन्हें 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया
गया। उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी शीर्ष
प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है और वे ऐसा करने में सफल
भी रहे। उनके क्रियाकलाप सैद्धान्तिक न होकर पूर्णत: व्यावहारिक और जनता
की आवश्यकताओं के अनुरूप थे।
निष्पक्ष रूप से यदि देखा जाये तो
शास्त्रीजी का शासन काल बेहद कठिन रहा। पूँजीपति देश पर हावी होना चाहते थे
और दुश्मन देश हम पर आक्रमण करने की फिराक में थे। 1965 में अचानक
पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया। परम्परानुसार
राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के प्रमुख व
मन्त्रिमण्डल के सदस्य शामिल थे। संयोग से प्रधानमन्त्री उस बैठक में कुछ
देर से पहुँचे। उनके आते ही विचार-विमर्श प्रारम्भ हुआ।
तीनों
प्रमुखों ने उनसे सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूछा: "सर! क्या हुक्म है?"
शास्त्रीजी ने एक वाक्य में तत्काल उत्तर दिया: "आप देश की रक्षा कीजिये
और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?"
शास्त्रीजी ने इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सारा देश एकजुट हो गया। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
भारत
पाक युद्ध के दौरान 6 सितम्बर को भारत की 15वी पैदल सैन्य इकाई ने द्वितीय
विश्व युद्ध के अनुभवी मेजर जनरल प्रसाद के नेत्तृत्व में इच्छोगिल नहर के
पश्चिमी किनारे पर पाकिस्तान के बहुत बड़े हमले का डटकर मुकाबला किया।
इच्छोगिल नहर भारत और पाकिस्तान की वास्तविक सीमा थी। इस हमले में खुद मेजर
जनरल प्रसाद के काफिले पर भी भीषण हमला हुआ और उन्हें अपना वाहन छोड़ कर
पीछे हटना पड़ा। भारतीय थलसेना ने दूनी शक्ति से प्रत्याक्रमण करके बरकी
गाँव के समीप नहर को पार करने में सफलता अर्जित की। इससे भारतीय सेना लाहौर
के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुँच गयी। इस अप्रत्याशित
आक्रमण से घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिये
कुछ समय के लिये युद्धविराम की अपील की। पाकिस्तान के आक्रमण का सामना करते
हुए भारतीय सेना ने लाहौर पर धाबा बोल
दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण को देख अमेरिका ने लाहौर में रह रहे अमेरिकी
नागरिकों को निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की मांग की। रूस और
अमेरिका के चहलकदमी के बाद भारत के प्रधानमंत्री को रूस के ताशकंद समझौता
में बुलाया गया। शास्त्री जी ने ताशकंद समझौते की हर शर्तों को मंजूर कर
लिया मगर पाकिस्तान जीते इलाकों को लौटाना हरगिज स्वीकार नहीं था।
अंतर्राष्ट्रीय दवाब में शास्त्री जी को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करना
पड़ा पर लाल बहादुर शास्त्री ने खुद प्रधानमंत्री कार्यकाल में इस जमीन को
वापस करने से इंकार कर दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ
युद्ध विराम पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही भारत देश के
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का संदिग्ध निधन हो गया। 11 जनवरी 1966
की रात देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री की मृत्यु हो गई।
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