इस देश पर कुर्बान हज़ारों लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का एहसान है हमारे ऊपर
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16-11-2021 12:00 AM
*लकड़ी की काठी,*
*लकड़ी का घोड़ा।।*
*लकड़ी के घोड़े,*
*पर मारा हथोड़ा।।*
*दौड़ा दौड़ा घोड़ा,*
*दुम उठा के दौड़ा।।*
एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में कंगना रनौत ने भारत की आज़ादी को लेकर बेहद विवादित बयान दिया है। बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने कहा है कि भारत को 2014 में आज़ादी मिली और 1947 में जो मिला वह "भिक्षा" थी।
जो असली घोड़ें पर बैठने से डरते हैं,जिनकी कलाइयों में इतनी ताकत नहीं की वो असली तलवार लेकर फिल्म के कैमरे के सामने खड़े हो सके,लकड़ी की तलवार, लकड़ी का घोड़ा,आज वह कह रहे हैं 1947 की आज़ादी हम को भीख में मिली है। जो धूल मिट्टी से डरते हैं,हर 5 मिनट के बाद उनका मेकअप मैन आकर मैडम के चेहरे को गीले टिशू पेपर से साफ करता हैं,हर 5 मिनट के बाद उनके बालों को संवारा जाता है,हर 5 मिनट के बाद उनके होठों पर लिपस्टिक लगाई जाती है,चेहरे पर पाउडर और मेकअप को पोत दिया जाता है,आज वह आज़ादी को लेकर बयानबाजी कर रहे हैं,बनावटी लोग क्या जाने असल जिंदगी क्या होती है,जब शरीर पर घाव होता है,जब उसमें से लहू बहता है,उसकी तकलीफ़ क्या होती है,यह क्या जाने,यह बनावटी लोग,भारत देश की आज़ादी में हजारों नौंजवानों ने अपनी जाने गवाई,उनके माता पिता का दर्द,यह क्या जाने,यह बनावटी लोग,ऐश परस्त जिंदगी जीने वाले यह बनावटी लोग,यह क्या जाने उन माँ-बाप का दर्द,जिन्होंने अपने जवान बेटों को देश के नाम कर दिया था। चन्द्रशेखर आज़ाद आयु 24 वर्ष,राम प्रसाद 'बिस्मिल'आयु 29 वर्ष,भगत सिंहआयु 24 वर्ष,अशफाक उल्ला आयु 27 वर्ष,आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने अपने लहू से भारत की धरती को सींचा है,इंडिया गेट पर 95300 स्वतंत्रता सेनानियों के नाम दर्ज हैं । ना जाने ऐसे कितने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी है,जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपनी जान न्यौछावर करी थी ।
वही कंगना कहती है,1947 में मिली आज़ादी असल में भीख थी और असली आज़ादी हमें साल 2014 में मिली है । यह फिल्मी भांड जो नशे में चूर रहते हैं,इन फिल्मी भांड़ो का कोई चरित्र होता है ना कोई धर्म,इनका मकसद एवं धर्म केवल पैसा,यह फिल्मी भांड क्या जाने उन माँ-बाप का दर्द,जिन्होंने अपनी संतानों को भारत की आज़ादी के लिए न्यौछावर कर दिया। तुम क्या जानों फांसी के फंदे पर लटकते हुए शहीदों के दर्द को,आज़ादी के दीवानों के गोलियों से छलनी होते हुए शरीर, बहते हुऐ खून के फव्वारे को,तुम क्या जानो इनका दर्द,यह वह शहीद है,जिन्होंने तलवारों पर सर वार दिया,अंगारों में जिस्म जला दिया,जिन्होंने देश की अस्मत के लिए अपनी जाने कुर्बान कर दी और तुम कहती हो हमको आज़ादी भीख में मिली है।
तुम फिल्मी लोगों की जिंदगी फिल्म की तरह होती है,सच्चाई से कोसों दूर,जैसे तुमने रानी लक्ष्मीबाई के किरदार को फिल्मी अंदाज में पेश किया था। ''मणिकर्णिका द क्वीन ऑफ झांसी यानी झांसी की रानी लक्ष्मी बाई पर आधारित फिल्म में तुम ने युद्ध का सीन एक नकली लकड़ी के घोड़े पर किया था,क्योंकि नकली झांसी की रानी असली घोड़े से डरती हैं,जो घोड़ा फिल्म में चलाते हुए दिखाया गया था,वह असली घोड़ा नहीं बल्कि लकड़ी का घोड़ा था जो मशीन के द्वारा एक ही जगह खड़े होकर केवल हिलता था,कंप्यूटर और कैमरे की मदद से पर्दे पर ऐसा दिखाया गया था,मानो असली घोड़ा फराटे से जंग के मैदान में दौड़ रहा हो । जनता तो भोली-भाली होती है,उसको ट्रिक फोटोग्राफी के बारे में नहीं मालूम इसलिए दर्शकों को युद्ध का सीन बहुत पसंद आया था । इस फिल्म में झांसी की रानी को अंग्रेंजों से लड़ते हुए दिखाया गया था। फ्लिम में घोड़े पर सवार होकर न जाने कितने अंग्रेजो को मौत के घाट उतार था। आज यह नकली लोग असली नायकों की शहादत पर और आजादी पर उंगलियां उठा रहे हैं।
इस देश पर कुर्बान हज़ारों लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का एहसान है हमारे ऊपर,इनका एहसान और बलिदान सौ जन्म लेने के बाद भी हम नहीं चुका सकते । आपके सम्मान में कुछ पंक्तियां ।
*ओ माई काहे को*
*करती फिकर मेरी,*
*क्यों आँखों से*
*दरिया बहाती है ।*
*तू कहती थी*
*तेरा चांद हूँ मैं,*
*और चांद हमेशा रहता है।।*
मोहम्मद जावेद खान, लेखक , संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़ ये लेखक के अपने विचार है I
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