किसी भी देश की सरकार वहां की जनता को एक ही नजर से देखती है, एक ही कानून एक संविधान का अधिकार देती है। कहने को लोकतंत्र, पर सत्ता बनती है पार्टीतंत्र की। वोट के लिए पार्टी जो भी तय करे वह जनहित लेकिन है वास्तविकता में स्व:हित सत्ता में फिर से आना है वही वोट फिर से चाहिए। जी हां मैं बात कर रहा हूं सत्ता में आने के लिए पार्टियां किस तरह से सरकारी खजाने का पैसा फ्री में बांटने का ऑफर करते हैं जैसे यह उनका व्यक्तिगत पैसा हो। यदि हम सत्ता में आए तो लैपटॉप फ्री बाटेगे, बिजली बिल और कर्ज माफ करेंगे, और सबसे बड़ी बात जो जहां रह रहा है उसको रहने का अधिकार देंगे।
मध्य प्रदेश भ्रष्ट आचरण अधिनियम में स्पष्ट उल्लेख है कि जब तक विकास ना हो बसाहट नहीं हो सकती। लोग सड़क किनारे और सरकारी काकड़ पर बस्तियां बना लेते हैं उन्हें सरकार भी मदद करती है लाइट, पानी, रोड सब उपलब्ध कराते हैं पर यदि कोई ग्रामीण क्षेत्र में फार्म हाउस के जरिए शहर वासी को बसाना चाहता है वह भी निजी खरीदी हुई जमीन पर तो उसके लिए कई कड़क नियम बना देते हैं। वहां पर विकास नियमों की बात करेंगे। जब कब्जे धारियों को पट्टा दे देते हो तब नियम कहां जाते हैं। आज हालत यह है कि 25-50 हजार ₹ महीने कमाने वाला कोई घर नहीं बना पा रहा परंतु कब्जा करने वालों के 3-3, 4-4 मकान कईयो के है।
बहुत सोचा पर समझ नहीं पा रहे, ऐसा क्यों ??
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) (ये लेखक के अपने विचार है )
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