नई दिल्ली । बिहार चुनाव कराने में इस बार सरकार को दोगुने से ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है। 2015 के चुनाव कराने में जहां सरकारी खर्च लगभग 270 करोड़ आया था, वहीं इस बार ये व्यय अनुमानतः सवा छह सौ करोड़ रुपए हो सकता है। ये सरकारी खर्च होगा। इसमें राजनैतिक दलों द्वारा किया जाने वाला चुनाव प्रचार खर्च शामिल नहीं है। खर्च में बढ़ोत्तरी को देखते हुए चुनाव आयोग ने केंद्र सरकार के पास चुनाव बजट बढ़ाने का प्रस्ताव भेजने का फैसला किया है। निर्वाचन आयोग के शीर्षस्थ सूत्रों के अनुसार, बिहार चुनाव के बाद ये प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। अगले वर्ष पश्चिम बंगाल में भी चुनाव होने हैं। उसके बाद यूपी में 2022 में चुनाव होंगे। आम चुनाव हालांकि 2024 में होंगे, लेकिन सोशल दूरी के मानक उस समय तक बने रह सकते हैं, जिससे खर्च में बढ़ोतरी होना लाजिमी है। 2019 में हुए आम चुनावों में लगभग 5000 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए थे, जो 2014 के चुनाव खर्च का ठीक आधा था। सूत्रों के अनुसार, बिहार में चुनाव खर्च में ये बढ़ोतरी महामारी के कारण हुई है। चुनावकर्मियों के लिए 125 करोड़ रुपए के पीपीई किट खरीदे गए हैं। चुनाव कर्मियों की संख्या छह लाख है। इसके अलावा सैनेटाइजर, ग्लव्स और मास्क अलग से हैं। वहीं वोटरों की सुरक्षा के लिए भी इंतजाम करने से खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। लोकसभा चुनावों में खर्च केंद्र सरकार करती है, लेकिन विधानसभाओं के निर्वाचन में खर्च राज्य सरकार उठाती हैं।