अथाह बढ़ती महंगाई का दौर और बड़ी बड़ी कंपनी और पैसे वालों के हाथ में प्रॉपर्टी कारोबार चले जाने से पांच-पचास हजार माहवार तनख्वाह पाने वाला व्यक्ति हजारों रुपए स्क्वायर फीट से बिकने वाले मंहगे प्लाट नहीं खरीद सकता है। हाउसिंग सहकारी संस्थाएं एकमात्र माध्यम में जो नो लॉस नो प्रॉफिट आधार पर रजिस्टर्ड होती है और सदस्य जमीन खरीद कर विधिवत अनुमतिया प्राप्त कर कॉलोनी का विकास कर सदस्यता क्रमांनुसार भूखंड आवंटित करते हैं। सरकार ने पहले सहकारिता को बढ़ावा देने के लिए सहकारी संस्था के भूखण्डो को रजिस्ट्री शुल्क से मुक्त रखा था इसलिये उस जमाने में 10-15 ₹ से ₹100-200 स्क्वायर फीट तक अच्छी लोकेशन पर भूछण्ड मिल जाते थे। इंदौर का बड़ा हिस्सा सहकारी संस्थाओ द्वारा ही विकसित हुआ है। वैसे तो इंदौर विकास प्राधिकरण, हाउसिंग बोर्ड का गठन बिना किसी लाभ के भूखण्ड, मकान, फ्लैट बनाकर देने के लिए किया गया है। आज भी यदि सहकारी संस्थाओं को सरकार बढ़ावा दे तो अधिक से अधिक ₹ 300-400 स्क्वायर फीट तक आम व्यक्ति को प्लाट मिल जाएगा। कुछ सरकारी संस्थाओं में गड़बड़ी हुई और उनके कर्ताधर्ता को सजा भी मिली। सहकारिता से कई जिंदगी बदल गई अनेक व्यक्तियों को रोजगार मिला हैं। सहकारिता आंदोलन द्वारा आम आदमी की आर्थिक स्थिति स्थिर होगी। सत्ताधारी, विपक्षी और आम जनता तीनों ने मांग करना चाहिए।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ( ये लेखक के अपने विचार है )
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