हमारे पूर्वज प्रकृति अनुसार चलते थे और प्रकृति के विज्ञान को मानते थे समझते थे। जैसे-जैसे हम पढ़ना लिखना सीखते गए हम सुविधा और विकास की जुगाड़ में लग गए और वह आवश्यक भी था परंतु एक सीमा तक। प्रकृति के विज्ञान को हम पढ़ने लगे और रिसर्च करने लगे, काफी कुछ समझ भी गए परंतु यह हमारा ज्ञान प्रकृति के विज्ञान का मात्र सिमित अंश है। पृथ्वी परिवर्तनशील है यह स्थीर नहीं है लगातार घूम रही है अतः यह अपना एक चुंबकीय फील्ड भी बनाती है और ऊर्जा भी पैदा करती है। चुंकी घूम रही है इसलिए हर चीज को अपनी ओर आकर्षित करती है जिसे हम ग्रेविटेशनल फोर्स कहते हैं। प्रकृति ने हमारा शरीर एक अनुपम कृति के रूप में बनाया इतना उसमें यांत्रिकी, मैकेनिक और मस्तिष्क दिया और हमारे जीवन की समय सीमा निर्धारित कर दी। हम हमारे शरीर को जितना मेंटेन करेंगे उतना अच्छा जीवन जिएंगे। हमारे शरीर में इतने गुण है कि हमारी हड्डी टूटने पर वह अपने आप जुड़ जाती है नई चमड़ी अपने आप बन जाती है। हमारे शरीर में आगे पीछे इतने सेंसर है कि हम किसी भी चीज की अनुभूति कर लेते हैं। पर हम इस खूबसूरत शरीर पर स्वयं समय नहीं देकर भौतिक चीजों में ज्यादा ध्यान देने लगे। हर इंसान ने चाहे गरीब हो अमीर हो यह निश्चित कर लेना चाहिए कि उसे अपने शरीर के लिए कम से कम आधा घंटा रोज देना है। ताजी हवा, पानी, शुद्ध खाना, धूप, मेहनती काम यह हमारे शरीर की आवश्यकता है।
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वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…