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स्कूल परिसर सोचता होगा,कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन

Updated on 05-07-2021 12:21 PM
शिक्षा के मंदिरों में लगे हैं ताले,
शिक्षा के पुजारी कर रहे हैं, मेहनत,मज़दूरी वाह क्या ज़माना आया है।
 आओ गुरु,दर्शन दीजो, 
 तुम हो शिक्षा के दाता, 
 माता पिता तुम मेरे, 
 माँ ने दिया जन्म, 
 पिता ने दिया नाम, 
 मै था कोरी मिट्टी, 
 तुमने दिया आकार।।
बहुत दिन गुज़र गए,जब कहा जाता था,गुरु ही ब्रह्मा है,गुरु ही विष्णु है,और गुरु ही भगवान है, ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ । गुरु यानी शिक्षक और शिक्षक का मतलब शिक्षा और गुरु की महिमा अपार है,उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता,पिछले एक वर्ष से शैक्षिक संस्थाएं बंद है,यानी शिक्षा के मंदिरों में सन्नाटा पसरा है, स्कूल परिसर ढूंढ रहा है,अपने पुराने दिन,बच्चों का शोर,बच्चों की मस्ती धमाल,बच्चों का लड़ना,फिर मान जाना छोटी-छोटी बातों पर बुरा मानना फिर मुस्कुराते हुए सब भूल जाना । स्कूल परिसर सोचता होगा,कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन । कभी हमने सोचा है,हमारे शिक्षा के मंदिरों के पुजारियों यानी शिक्षको के बारे में,पिछले एक वर्ष से घरों में बेरोज़गार बैठे हैं,लॉकडाउन में मज़दूरों के लिए बड़ी-बड़ी बातें कहीं गई,मज़दूरों के लिए लोगों ने फ्री राशन बांटा,लोगों ने उनको  रुपए पैसे से मदद की,मज़दूरों को लोगों ने राष्ट्र निर्माता तक बोला। मगर किसी का ध्यान शिक्षा के मंदिरों के पुजारियों की तरफ नहीं गया,यह वह पुजारी है,जिन्होंने कोरी मिट्टी को आकार देकर देश को बड़े-बड़े अधिकारी,व्यापारी नेता दिए हैं,आज यह शिक्षा के पुजारी किस तरह अपना जीवन यापन कर रहे हैं,आप सोच भी नहीं सकते,किसी शिक्षा के पुजारी ने सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली,तो किसी ने फल और सब्जी की दुकान सजा ली, हद यह हो गई कुछ शिक्षक ठेलों पर फल और सब्जी बेचने के लिए गली और मोहल्लों में आवाज़ लगा रहे हैं । सरकारी एवं निजी कार्यालय खुल गए,दुकानें खुल गई,होटल - रेस्टोरेंट में महफिल जमने लगी,बीयर बार में गिलास खनक ने लगें,दारू की दुकानों पर रौनक बढ़ने लगी,पान के ठेले सजने लगे,चाय के होटलों में लोग चाय की चुस्की लगाने लगे,शॉपिंग मॉल गुलज़ार हो गए, बाजा़रों में रोशनी चमकने लगी, फिटनेस सेंटर और जिम में लोग जाने लगे,पर अफ़सोस हमारे शिक्षण संस्थाओं में,कोचिंग क्लासओं में सन्नाटा पसरा है, और हमारे शिक्षक मज़दूरी करने पर मजबूर हैं,निजी संस्थाओं के शिक्षकों के बारे में कभी हमने सोचा है की वह अपना घर,अपना परिवार कैसे चला रहे होंगे,आज तक एक बात समझ में नहीं आई क्या कोरोना वायरस शैक्षणिक संस्थाओं से ही फैलेगा,ऐसा नहीं है,छोटे बच्चे घरों से नहीं निकल रहे,वह अपने माता पिता के साथ बाज़ार भी जाते हैं,शॉपिंग मॉल भी जाते हैं और माता पिता के साथ सैर पर भी जाते हैं,जब यह बच्चे अपने माता पिता के साथ बाहर निकल रहे हैं,तो स्कूल जाने में क्या परेशानी है। कभी आपने सोचा है,जो शिक्षक आपके बच्चे को स्कूल में पढ़ाते थे,आज वह आपके घर के सामने ठेले पर सब्ज़ी बेच रहा है,जब शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के लिए बच्चों के क्लास में दाखिल होता था,तो उनके सम्मान में सब बच्चे खड़े होकर अपने गुरु को प्रणाम करते थे, आज वही गुरु शॉपिंग मॉल के गेट पर खड़े होकर शॉपिंग मॉल में आने जाने वाले लोगों को सलाम ठोक रहा है ।
जो शिक्षक सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे थे उनका जीवन यापन तो सामान्य तरीके से चल रहा है,पर जो शिक्षक निजी स्कूलों में नौकरी कर रहे थे, ज्यादातर ऐसे शिक्षकों की नौकरी छूट गई है,या उनको एक चौथाई पगार मिल रही है,निजी स्कूल संचालकों का कहना है,जबसे कोरोना महामारी शुरू हुई है, तब से बच्चों के अभिभावकों ने स्कूल की फीस जमा नहीं की है, ऐसे में वह शिक्षकों को पगार कैसे दें,रहा सवाल ऑनलाइन क्लासेस का, ऑनलाइन क्लासेस बड़े शहरों में और पैसे वाले बच्चों के लिए तो संभव है,पर जो बच्चे दूर-दराज के गांवो में रहते हैं,ना उनके पास महंगे एंड्राइड मोबाइल हैं,अगर मोबाइल है,तो नेट कनेक्शन नहीं है,ऑनलाइन क्लासेस तो केवल दिल को बहलाने वाली बात है ।
 जीवन के घोर अंधेरो में, 
 प्रकाश बनकर आता है। 
 हर लेता है वह दुख सारे, 
 खुशियों की फसल उगाता है। 
 ज्ञान का सागर भरा हुआ, 
 बस वही गुरु कहलाता है।।
मोहम्मद जावेद खान,लेखक                                   ये लेखक के अपने विचार है I 
संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़

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