हमारे यहां कई बार यह कहा जाता है कि वृक्ष जैसी विशालता रखो वृक्ष खुद धूप में खड़ा रहकर अपनी छाया में कई लोगों को पनाह देता है I स्वयं जमीन से पोषण प्राप्त कर जीवन धारी को खाने के लिए फल देता है I इकोलॉजी का संतुलन बनाने के लिए खुद कार्बन डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ता है। ऐसे तमाम कई गुण वृक्ष के हैं जिसकी तुलना कर हमें यह सिखाया जाता है कि आप भी वृक्ष जितनी विशालता रखें। वृक्ष का जीवन भी कठिनाई भरा है कभी प्रकृति की आपदाएं उसका जीवन नष्ट करती है तो कभी इंसान उसे काट डालता है। बरगद का वृक्ष बड़ा विशाल ह्रदय वाला माना जाता है वह अपने फैलाव के साथ जड़े भी मजबूत कर लेता है। पर संत कबीर के इस दोहे के बाद यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इंसान को वृक्ष की विशालता से तुलना दी जाती थी परंतु उसमें भी कुछ वृक्ष के गुण में कमी थी जो इस दोहे में बताई गई "बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर" । तो दोस्तों जीवन का आचरण वृक्ष से हम सीख कर प्रकृति को लौटा सकते हैं। यही वास्तविकता है यही इकोसिस्टम है और यही प्रकृति का चक्र है जिसके लिए हम नियमित है। इसलिए प्रकृति के करीब रहेगे तो सुखी रहोगे।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, इंजीनियर) ये लेखक के अपने विचार है
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