कृषि कानूनों की वापसी अहिंसक आंदोलन और धैर्य की जीत
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21-11-2021 05:12 PM
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरु नानक जयंती के अवसर पर अचानक प्रातः नौ बजे राष्ट्र के नाम सम्बोधन में तीन कृषि कानून वापस लेने और एमएसपी से जुड़े मुद्दों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने का ऐलान कर दिया। इस प्रकार यह दिल्ली की सीमा पर 360 दिन से चल रहे दुनिया के सबसे बड़े अहिंसक किसान आंदोलन और किसानों की धैर्य की जीत के रुप में देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वभाव व कार्यशैली के विपरीत जाकर इस प्रकार की घोषणा की। लेकिन शायद उन्होंने यह सोचा होगा कि इस घोषणा का आंदोलनरत किसानों द्वारा स्वागत किया जायेगा और तत्काल वे उनकी अपील पर उठकर अपने-अपने घरों को चले जायेंगे तो ऐसा कुछ नहीं हुआ। किसान संगठनों और अन्य राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाओं co में घोषणा का स्वागत तो किया गया लेकिन इसके साथ ही आइना दिखाने व सीख देने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दिया गया। यदि मोदी समर्थक नेताओं और विपक्ष द्वारा गोदी मीडिया कहे जाने वाले मीडिया ने इसे मोदी का मास्टर स्ट्रोक बताया तो वहीं आंदोलनरत किसान और उनका समर्थन कर रहे राजनेताओं की प्रतिक्रियाओं से यह प्रतिध्वनि निकली कि यह मजबूरी में और अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए उठाया गया ऐसा कदम है जिसका मकसद पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा के विपरीत बन रहे माहौल को जितना संभव हो सके उतना अनुकूल बनाना है। उन्नीस राज्यों में हुए लोकसभा व विधानसभा उपचुनावों में अपेक्षित सफलता ना मिलने के बाद केंद्र सरकार ने पहले तो पेट्रोल-डीजल के दामों में गिरावट की तो वहीं अब देश के अन्नदाता किसान को अपने पाले में लाने की कोशिश की गयी है। मोदी ने जो कदम उठाया है वह भाजपा की सियासी जमीन को बचाने में कितना कारगर होगा यह तो पांच राज्यों के चुनावी नतीजों से ही पता चलेगा, क्योंकि भाजपा का मकसद इसके माध्यम से उत्तरप्रदेश व उत्तराखंड की अपनी सरकारों को बचाना और पंजाब में अनुकूल राजनीतिक फिजा बनाने का रहा है। यह पहला मौका नहीं है जब किसानों के सामने मोदी सरकार ने यू-टर्न लिया हो बल्कि इससे पूर्व भूमि अधिग्रहण के लिए लाये गये कानून से अपने कदम पीछे खींच लिए थे। लेकिन इसके बावजूद भी यह आमधारणा थी कि मोदी अपने द्वारा लिए गए निर्णयों को नहीं बदलते हैं, इस मामले में एक तो गांधीवादी अहिंसक आंदोलन की जीत हुई तो वहीं दूसरी ओर यह भी साबित हुआ कि सत्ताधारी दल चाहे उसके पास कितना ही बड़ा बहुमत क्यों न हो उसे आखिरकार अहिंसक आंदोलन के सामने झुकना ही पड़ता है। 1988 में महेन्द्र सिंह टिकैत के नेत्व वाला सबसे बड़ा आंदोलन सात दिन में खत्म हो गया था और लोकसभा में 400 से अधिक सांसदों के बहुमत वाली राजीव गांधी सरकार ने किसानों की 35 मांगे मान ली थीं। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 18 मिनट के सम्बोधन में कहा कि इन कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया संसद के शीतकालीन सत्र में पूरी होगी। किसानों को यह खुशखबरी देने के लिए उन्होंने गुरुनानक जयंती का अवसर चुना। मोदी का यह कथन कि सरकार किसानों, खासकर छोटे किसानों के कल्याण और गांव-गरीब की उन्नति के लिए नेकनियत से तीन कानूनों को लेकर आई थी, लेकिन काफी प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाई। गुरु पर्व का हवाला देते हुए उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि अब आप अपने-अपने घर लौटें और अब नई शुरुआत करते हैं। उन्होंने कहा कि मैं देशवासियों से क्षमा मांगते हुए सच्चे मन से कहना चाहता हूं कि शायद हमारी तपस्या में ही कहीं कुछ कमी रही होगी जिसके चलते दिए के प्रकाश जैसा सत्य कुछ किसान भाइयों को हम नहीं समझा पाये। उनके इस कथन से ही कुछ नेताओं की यह प्रतिक्रिया रही होगी कि मोदी सरकार की नियत पर भरोसा नहीं किया जा सकता और वह बाद में कभी भी फिर ऐसा कानून ला सकती है। दूसरी ओर किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे ने यह कहा कि हम संसद में कानून रद्द होने और एमएसपी के मामले पर ठोस कार्रवाई के बाद ही आंदोलन खत्म करेंगे। किसानों का कहना है कि आंदोलन में 700 से ज्यादा किसानों की जानें गई हैं उनके परिवारों को मुआवजा मिलना चाहिए तथा सरकार अब एमएसपी को कानून के दायरे में लाये। उत्तरप्रदेश की प्रभारी कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखकर मांग की है कि गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी को मंत्रिमंडल से हटाया जाए और प्रधानमंत्री उनके साथ मंच साझा ना करें। उन्होंने लिखा कि लखीमपुर खीरी के पीड़ितों को न्याय दिया जाए। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने शुक्रवार को महाराष्ट्र के पालघर में फौरी प्रतिक्रिया देते हुए ऐलान किया कि अभी किसान आंदोलन खत्म नहीं होगा। उन्होंने कहा कि किसानों का आंदोलन तत्काल वापस नहीं होगा हम उस दिन का इंतजार करेंगे जब कृषि कानूनों को संसद में रद्द किया जायेगा। कृषि कानून रद्द होने की घोषणा पर आल इंडिया किसान महासभा के महासचिव हन्नान मौला ने कहा कि जब तक सदन से इस घोषणा पर कार्रवाई नहीं होती तब तक यह कोशिश सम्पूर्ण नहीं होगी, इससे हमारे किसानों की समस्या भी हल नहीं होगी। एमएसपी के लिए हमारा आंदोलन जारी है और जारी रहेगा। दोनों किसान नेताओं की प्रतिक्रियाओं से आभास मिलता है कि उन्हें प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र के सम्बोधन में की गई घोषणा पर उस समय तक पूरा एतबार नहीं जब तक कि संसद में ये कानून वापस ना ले लिए जायें। कांग्रेस की अध्यक्ष तथा यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यह गांधीवादी आंदोलन की जीत है, उनकी प्रतिक्रिया थी कि लगभग 12 महीने के बाद गांधीवादी आंदोलन के माध्यम से देश के 62 करोड़ अन्नदाताओं-किसानों के संघर्ष व इच्छा शक्ति की जीत हुई, आज उन 700 किसान परिवारों की कुर्बानी रंग लाई है जिनके परिजनों ने न्याय के इस संघर्ष में अपनी जान न्यौछावर की है। आज सत्य, अहिंसा और न्याय की जीत हुई है। देश के वरिष्ठ राजनेता एनसीपी प्रमुख तथा मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए वाली सरकार में कृषि मंत्री रहे शरद पवार ने कहा कि मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को पारित करते समय सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया, संसद में हंगामें के दौरान बिल पास किए गए, अब चुनाव को लेकर लोग भाजपा नेताओं से इस मुद्दे पर सवाल पूछने लगे तो यह कानून वापस ले लिये गये। और यह भी
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि साफ नियत से किए गए सद्प्रयास को देश के कुछ किसानों को समझाने में हम सफल नहीं हुए इसका हमें खेद है। इस यात्रा में अनेक किसान संगठन, अर्थशास्त्री व वैज्ञानिकों ने भी हमारा साथ दिया उसके लिए मैं आभारी हूं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना था कि माफी मांगने से काम नहीं चलेगा, राजनीति छोड़ने का भी ऐलान करना चाहिए और मोदी सरकार को इस्तीफा देना चाहिए, यह किसानों की जीत और सरकार की हार है। लखीमपुर के आरोपी मंत्री पर कब कार्रवाई होगी और क्या नोटबंदी के लिए भी सरकार माफी मांगेगी। अखिलेश यादव का इस्तीफा मांगना और राजनीति छोड़ने की मांग अटपटी इसलिए लगती है क्योंकि लोकतंत्र में लोगों की भावनाओं की कद्र करते हुए प्रधानमंत्री किसी कथित जन-विरोधी निर्णय को वापस लेते हैं तो उसमें शर्मिन्दगी जैसी कोई बात नहीं होती। बसपा सुप्रीमो मायावती का कहना था कि देर से लिया गया सही फैसला है, जो किसान शहीद हुए उनके परिवार के एक सदस्य को नौकरी और आर्थिक मदद दी जाए। समर्थन मूल्य देने संबंधी राष्ट्रीय कानून बनाने की किसानों की मांग अभी पूरी नहीं हुई है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने पहले ट्वीट में लिखा कि अन्याय के खिलाफ यह जीत मुबारक हो। जयहिन्द, जयहिंद का किसान। इसके बाद उन्होंने दूसरे ट्वीट में लिखा जीत उनकी हुई जो लौटकर अपने घर नहीं आये और हार उनकी ही है जो अन्नदाताओं की जान नहीं बचा पाये। कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री प्रियंका गांधी ने भी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि 600 से अधिक किसानों की शहादत और साल भर के लम्बे अहिंसक संघर्ष की आपको कोई परवाह नहीं थी। अब जब चुनाव में हार दिखने लगी तो आपको सच्चाई समझ में आई। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की प्रतिक्रिया थी कि गुरु पर्व के शुभ दिन पर पीएम की घोषणा उनकी करुणामयी राजनीति को दर्शाती है। उन्होंने हमेशा हम सभी को देश के कृषि क्षेत्र के विकास के लिए सामूहिक रुप से काम करने के लिए प्रेरित किया है। उनका इरादा किसानों को स्थिति को मजबूत करना है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कहा है कि जनता यदि इसी प्रकार भाजपा को चुनावों में सबक सिखाती रही तो जनता की जीत ऐसी ही होती रहेगी। देश भर में किसानों पर दर्ज मुकदमें सरकार को वापस लेने चाहिए। मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह ने कहा कि केंद्र को मोदी सरकार के किसान विरोधी तीन कानून वापस लेने से किसानों का सत्याग्रह व संघर्ष सफल हुआ है, यह देश के अन्नदाता की ऐतिहासिक जीत है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सांसद दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री से मांग की है कि आने वाले सत्र में वे इस कानून को रद्द करने के लिए विधेयक लायें ताकि उस पर संसद की मुहर लग सके । एमएसपी को कानूनी स्वरुप देने के लिए केंद्र सरकार सभी दलों व किसान संगठनों से चर्चा करें और उसके बाद बजट सत्र में किसानों के पक्ष में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए कानून लायें और जो शहीद हुए हैं पूरे तरीके से सम्मान के साथ उनकी शहादत को स्वीकार करते हुए उन्हें मुआवजा और राहत राशि दी जाए। इस प्रकार जो राजनीतिक प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं तथा प्रधानमंत्री मोदी ने इस कानून को वापस लेते हुए जो कहा है उसमें से किस पर देश की जनता ने भरोसा किया यह पांच राज्यों के होने वाले चुनाव परिणामों से ही पता चल सकेगा।
अरुण पटेल,लेखक,सुबह सवेरे, प्रबंध संपादक ये लेखक के अपने विचार है I
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