कब तक मुआवज़े की रहा तकोगे, उठ जाओ,जाग जाओ। हक़ के खातिर अंतिम सांस तक लड़ना सीख लो। अपने हक़ की लड़ाई तुम, तन्हा ही लड़ना सीख लो॥ 2 दिसंबर 1984 कि रात,यह रात बहुत डरावनी थी,2 दिसंबर की रात अपनी झोली में हज़ारों लोगों की जिंदगी समेटकर ले गई थी, अक्सर रातें आराम करने के लिए होती है,लेकिन 2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल वासियों के लिए मनहूस साबित हुई थी,आज भी उस रात के पीड़ित अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं,उस रात में जो चिंताएं बढ़ाई थी,आज भी वह चिंताएं बदस्तूर जारी है, 2 दिसंबर 1984 की रात वह कैसी थी दर्दनाक रात,उसको सोचो तो नींद नहीं आती,उस रात घरों से बाहर दौड़ते लोग,सड़कों पर मूर्छित होकर गिरते लोग,अपनों से बिछड़ते लोग,जो बच गए,वह आज भी इलाज के लिए दर-दर भटक रहे हैं । भोपाल में सफेद हाथी रूपी भोपाल मेमोरियल अस्पताल बनाया गया था,आज उस अस्पताल को ही इलाज की जरूरत है,भोपाल के गैस पीड़ितों को अपने इलाज के हक़ की लड़ाई लड़ना मजबूरी नहीं, ज़रूरी है,इसलिए मैं कहता हूँ, उठो भोपाल वासियों,उठो भोपाल के गैस पीड़ितों,तुम अपने इलाज का अधिकार मांगो,ना किसी से इलाज के लिए सिफारिश,भोपाल मेमोरियल अस्पताल के ज़िम्मेदार तुम्हारी आवाज़ को अनसुना कर दें,या तुम्हारी आवाज़ को कुचल दें,तुम्हारे ज्ञापनों को जला दें, तुम्हारे हक़ की लड़ाई,तुम्हारे इलाज की लड़ाई को लड़ना और भोपाल मेमोरियल अस्पताल की कमियों के बारे में सवाल पूछना, तुम्हारा हक़ है,यह अस्पताल तुम्हारे ही पैसों से बना है,किसी के बाप के पैसों से नहीं। भले ही भोपाल मेमोरियल अस्पताल के मुद्दे पर राजनीति करना नेताओं का पेशा हो सकता है,पर यह मुद्दा तुम्हारी हक़ की लड़ाई का है, तुम्हारे परिवार की जिंदगी का है, कब तक मुआवज़ो की आस लगाए बैठोगे,कब तक तुम दूसरों पर भरोसा लगाए बैठोगे,उठ जाओ,अपने हक़ के लिए,बहुत हुआ इलाज के लिए इधर-उधर भटकना,जब सरकार ने तुम्हारे हक़ के करोड़ों रुपयों से अस्पताल बनवाया था,तब भोपाल के हर एक गैस पीड़ित को आशा थी,चलो पैसा इतना ना मिला हो,पर इलाज के लिए देश का सर्वश्रेष्ठ अस्पताल तो मिला,पर यह हक़ीक़त,अब ख्वाब में बदल गई है,अब शायद तुम्हारी भी आदत भोपाल मेमोरियल अस्पताल में लाइनों में लगने की हो गई है,अस्पतालों के डॉक्टरों का दुर्व्यवहार सहने की आदत में शुमार हो गई है,शायद तुम्हारी मजबूरी या आदत बन गई है । फिर मैं तुमसे कहता हूँ,तुम अपने इलाज का हक़ मांगते हो,किसी से तुम भीख नहीं मांगते,बाहर के चंद लोग आकर तुम्हारे मुद्दों पर राजनीति कर रहे हैं, तुम्हारा मुद्दा,तुम्हारा अस्पताल, तुम भोपाल वासी,यह बाहर वाले कौन? एक हो जाओ,अपने हक़ के लिए,एक हो जाओ आज। भोपाल मेमोरियल अस्पताल की स्थिति कैसी है,सब जानते हैं, अस्पतालों में छोटी-छोटी कमियों की वजह से बड़े-बड़े उपकरण धूल खा रहे हैं। इसका एक उदाहरण भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एवं रिसर्च सेंटर की डिजिटल सबट्रैक्शन एंजियोग्राफी मशीन का है। सात कराेड रुपए में लगाई गई थी,इस मशीन को चलाने के लिए अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट ही नहीं हैं। इस अस्पताल का हाल यह है,किडनी एवं आंखों की बीमारीयों से संबंधित मरीज़ो का इलाज इस अस्पताल में नहीं मिल रहा है, अस्पताल की नेफ्रोलॉजी यूनिट में डायलिसिस मशीनों में से कई मशीनें धूल खा रही है और खराब पड़ी है,मरीज़ो को सोनोग्राफी के लिए महीनों तक इंतजार करना पड़ता है,कई बार ऐसा देखने को मिला,जब सोनोग्राफी करवाने की दिनांक आई,उससे पहले ही मरीज़ इस दुनिया से अलविदा हो गया । भोपाल मेमोरियल अस्पताल के लिए कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है,अंधे पीसे और कुत्ते खाए यानी पैसा भोपाल के गैस पीड़ितों का और इलाज बाहर के मरीज़ों का । भोपाल मेमोरियल अस्पताल,जो तुम्हारे पैसों से बना है,वहां पर प्रतिदिन 2000 से अधिक मरीज़ ओपीडी मेंआते हैं,जहां पर कुछ को डॉक्टर देख पाते हैं,बाकी को अदालत की तरह अगली तारीख़ दे दी जाती है,डॉक्टर आकर देख ले,तो दवाओं की कमी,अगर दवा मिल जाए तो सोनोग्राफी,एक्स-रे, सीटीस्कैन के लिए महीनों का इंतजार,भोपाल मेमोरियल अस्पताल में कुल 350 बेड हैं,पर यहां की स्थिति बड़ी दयनीय है, ज़्यादातर बिस्तर खाली पड़े हैं, अगर वार्ड में इक्का-दुक्का मरीज़ है,तो वार्ड में पंखे बंद,एसी बंद मरीज़ अपने खुद के पंखे लेकर अस्पताल आते हैं,अब अस्पताल के ज़िम्मेदारों को यह बताना पड़ेगा की अस्पताल का वार्षिक बजट120 करोड़ रुपये से अधिक का है,यह पैसा किस मद में खर्च होता है,क्योंकि अब अस्पताल में गिने चुने डॉक्टर बचें हैं,ज़्यादातर अस्पताल के कई विभागों में डॉक्टर ही नहीं है,यहां की करोड़ों रुपए की मशीनें धूल खा रही है,या खराब पड़ी है । झूठ का नंगा नाच छोड़, हक़ीक़त में जीना सीख़ लो। अपने हक़ की लड़ाई तन्हा ही लड़ना सीख लो।
मोहम्मद जावेद खान, लेखक, संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़ (ये लेखक के अपने विचार है )
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