एक फरवरी, 2021 को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले वर्ष 2021-22 के बजट के समक्ष सात बड़ी चुनौतियां हैं। एक, कोविड-19 से निर्मित अप्रत्याशित आर्थिक सुस्ती का मुकाबला करने और विभिन्न वर्गों को राहत देने के लिए व्यय बढ़ाना। दो, रोजगार के नये अवसर पैदा करना। तीन, तेजी से घटे हुए निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए आकर्षक प्रावधान करना। चार, बैंकों में लगातार बढ़ते हुए एनपीए को नियंत्रित करना और क्रेडिट सपोर्ट को जारी रखना। पांच, महंगाई पर नियंत्रण रखना। छह, नयी मांग का निर्माण करना और सात, कोरोना वायरस से बचाव के लिए टीकाकरण एवं अन्य स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च में वृद्धि करना। ऐसे में वित्तमंत्री वर्ष 2021-22 के बजट में राजकोषीय घाटे (फिजिकल डेफिसिट) का नया खाका पेश करती हुई दिखाई दे सकती हैं। गौरतलब है कि सरकार ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटे को 3.5 प्रतिशत सीमित करने का लक्ष्य रखा था। कोरोना महामारी के कारण जीडीपी में संकुचन और राजस्व संग्रह तथा व्यय के बीच बढ़ते हुए अंतर के कारण राजकोषीय घाटा बढ़कर 7 से 8 प्रतिशत के बीच पहुंच सकता है। यह घाटा आगामी वित्त वर्ष में बढ़ने की पूरी संभावनाएं रखता है। पिछले दिनों 7 जनवरी को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा वित्त वर्ष 2020-21 की पूरी अवधि के लिए आर्थिक विकास दर के जो अनुमान जारी किए हैं, उनके अनुसार चालू वित्त वर्ष में विकास दर की गिरावट 7.7 प्रतिशत पर सिमटने की बात कही गई है। यदि हम पिछले वर्ष 2020 की ओर देखें तो एक ओर देश में कोरोना वायरस के संकट से उद्योग कारोबार की बढ़ती मुश्किलों के मद्देनजर सरकार की आमदनी तेजी से घटी वहीं दूसरी ओर आर्थिक एवं रोजगार चुनौतियों के बीच कोविड-19 के संकट से चरमराती देश की अर्थव्यवस्था के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत वर्ष 2020 में सरकार ने एक के बाद एक 29.87 लाख करोड़ की राहतों के एेलान किए, जिनके कारण सरकार के व्यय तेजी से बढ़ते गए। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चालू वित्त वर्ष में एक ओर सरकार की आमदनी में बड़ी कमी आई, वहीं दूसरी ओर व्यय तेजी से बढ़े हैं। स्थिति यह है कि कोविड-19 की अप्रत्याशित आर्थिक चुनौतियों के कारण चालू वित्त वर्ष 2020-21 के तहत कर संग्रह और सरकारी संस्थाओं के विनिवेश से मिलने वाली प्राप्तियां बजट अनुमान से करीब 7 लाख करोड़ रुपये कम रह सकती हैं। वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर से करीब 24.23 लाख करोड़ रुपये और विनिवेश से करीब 2.10 लाख करोड़ रुपये आने का अनुमान था। इस प्रकार कुल करीब 26.33 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिलने का अनुमान प्रस्तुत किया गया था। अब सरकार द्वारा प्रस्तुत किए गए संशोधित अनुमान के मुताबिक कुल मिलाकर करीब 19.33 लाख करोड़ रुपये या चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान से 26.58 फीसदी कम राजस्व मिल सकता है।उल्लेखनीय है कि एयर इंडिया, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) तथा भारतीय कंटेनर निगम लिमिटेड (कॉनकॉर) की बिक्री प्रक्रिया पूरी नहीं होने से केंद्र को वित्त वर्ष 2020-21 के अंत में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के विनिवेश से मिलने वाली अनुमानित रकम प्राप्त नहीं हो पाई है। निवेश से सरकार को करीब 40 से 50 हजार करोड़ रुपये की ही आय प्राप्त हो पाई है। ऐसे में आमदनी में कमी के बावजूद कोविड-19 के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में राजकोषीय घाटे की चिंता न करके सरकार द्वारा देश को कोविड-19 की आर्थिक महात्रासदी से बाहर निकालने के लिए जो रणनीतिक कदम उठाए गए, वे लाभप्रद रहे हैं। अब आगामी एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का आगामी बजट अर्थव्यवस्था के संकुचन वाले दौर से गुजरने के बीच पेश किया जाने वाला है। संकुचन के बाद पेश हुए बजटों में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के जिस तरह भारी प्रोत्साहन दिए गए थे, इस बार कोविड-19 के बाद संकुचित अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिए और अधिक भारी प्रोत्साहन आगामी वित्त वर्ष के बजट में दिखाई दे सकते हैं। ऐसे में नये वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट के तहत सरकार द्वारा कोविड-19 की चुनौतियों के बीच राजकोषीय घाटे की चिंता न करते हुए विकास की डगर पर आगे बढ़ने के प्रावधान सुनिश्चित किए जा सकते हैं। वित्तमंत्री प्रमुखतया खेती और किसानों को लाभान्वित करते हुए दिखाई दे सकती हैं। वित्तमंत्री द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के उपायों के साथ-साथ कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के विकास के माध्यम से बेरोजगारी और गरीबी को दूर करने वाले कामों को प्रोत्साहन दिया जा सकता है। वित्तमंत्री द्वारा कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) में नया जीवन फूंकने के कदम उठाए जा सकते हैं। देश के शेयर बाजार को आगामी वित्त वर्ष 2021-22 के बजट से तेजी से बढ़ने के प्रोत्साहन मिल सकते हैं। विगत यद्यपि 21 जनवरी को बंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स ने 50,000 अंकों की स्वर्णिम ऐतिहासिक ऊंचाई को छू लिया और फिर इसमें कुछ गिरावट भी आई है। अब सेंसेक्स के 50 हजार पर बने रहने और शेयर बाजार को भारतीय उद्योग-कारोबार के लिए पूंजी का खुला भंडार बनाने के लिए आगामी आम बजट प्रभावी भूमिका निभा सकता है। बजट में शेयर और म्यूचुअल फंड पर लगने वाले लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ कर (एलटीसीजी) को हटाया जा सकता है। नये बजट के तहत पर्यटन उद्योग, होटल उद्योग, देशव्यापी टीकाकरण अभियान, स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास जैसे विभिन्न आवश्यक क्षेत्रों के साथ-साथ रोजगार वृद्धि के लिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर और बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए बड़े बजट आवंटन दिखाई दे सकते हैं। नये बजट में डिजिटल भुगतान के लिए भी नये प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। इनके अलावा देश के छोटे आयकरदाताओं, नौकरीपेशा (सैलरीड) और मध्य वर्ग के अधिकांश लोगों को लाभान्वित करने के लिए आयकर की छूट की सीमा को दोगुना करके 5 लाख रुपए तक किया जा सकता है। निस्संदेह पूरा देश कोविड-19 से निर्मित विभिन्न आर्थिक चुनौतियों से राहत पाने की आस में नये बजट की ओर टकटकी लगाकर देख रहा है। ऐसे में वित्तमंत्री सीतारमण 1 फरवरी को राजकोषीय घाटे की फिक्र न करते हुए अपने वादे के अनुसार चमकीले आर्थिक प्रोत्साहनों से सजे-धजे वर्ष 2021-22 के नये बजट से अर्थव्यवस्था को गतिशील करने के लिए आगे बढ़ती हुई दिखाई दे सकती हैं। निश्चित रूप से कोविड-19 के बीच अप्रत्याशित सुस्ती के दौर से अर्थव्यवस्था को निकालने, रोजगार अवसरों को बढ़ाने, निवेश के लिए प्रोत्साहन देने तथा विभिन्न वर्गों को राहत देने के लिए बड़े बजट आवंटनों के कारण राजकोषीय घाटे को पांच प्रतिशत तक विस्तारित किया जाना चिंताजनक नहीं माना जाएगा। राजकोषीय घाटे के आकार में वृद्धि उपयुक्त ही कही जाएगी। इससे एक ओर आम आदमी की क्रय शक्ति बढ़ेगी, जिससे नयी मांग का निर्माण होगा और उद्योग-कारोबार की गतिशीलता बढ़ेगी, वहीं दूसरी ओर बढ़े हुए सार्वजनिक व्यय और सार्वजनिक निवेश से बुनियादी ढांचे को मजबूती मिलेगी।
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