पिछले कुछ समय से कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई ) चर्चा में बनी हुई है। चैट जीपीटी, बार्ड जैसी तकनीक के बारे में रोजाना पढ़ने और देखने को मिल रहा है। इन सबसे प्रभावित होकर एक आम आदमी के दिमाग में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर यह कृत्रिम बुद्धि क्या बला है ? यह कैसे काम करती है ?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम बुद्धिमत्ता को कंप्यूटर साइंस का अब तक का सबसे उन्नत रूप माना जाता है। आज मीडिया, सरकार, वैज्ञानिक, उद्योग, सेवा प्रदाता, मनोरंजन जगत, खेल विशेषज्ञ, किसान आदि सभी इसके बारे मे चर्चा कर रहे है।
यह तकनीक इतनी महत्वपूर्ण हो चली है कि भारत सरकार ने तो नीति आयोग को एआई जैसी प्रौद्योगिकियाँ विकसित करने और अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी है। नीति आयोग ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर राष्ट्रीय कार्य नीति बनाई है और बदलते समय के साथ नीति को लगातार विकसित भी कर रहा है, ताकि व्यापक रूप से इसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जा सके।
जब भी कोई नई टेकनालोजी अवतार लेती हैं तो लोगों के मन में उसके बारे में जानने समझने की जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से उठती है। सरलतम भाषा में कहें तो एआई का अर्थ है एक मशीन में सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जनक जॉन मैकार्थी के अनुसार यह एक विशेष रूप से बुद्धिमान कंप्यूटर प्रोग्राम को बनाने की विज्ञान और अभियांत्रिकी है जो मशीनों को बुद्धिमत्ता प्रदान करती है। एआई का अंतिम लक्ष्य ऐसे उपकरणों का निर्माण करना है जो अपनी अति विकसित बुद्धि से स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें और मानव श्रम को कम कर सकें।
अभी यह होता है कि हम मशीन को विभिन्न प्रकार के इनपुट देते है जिनका विश्लेषण करके मशीन (कंप्यूटर) हमें एक रिपोर्ट देती है जिनका अध्ययन करने पश्चात मनुष्य अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग कर यह निर्णय लेता है कि अब कौनसी गतिविधी करना उचित है। एआई का उद्देश्य होता है कि मशीन को मिले हुए इनपुट का विश्लेषण कर मशीन स्वयम निर्णय ले सके यानि वह अपने-आप यह तय कर पाये उसकी अगली गतिविधि क्या होगी। इसके लिए मशीन को अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार
अपनी प्रतिक्रिया चुनने के लिए प्रशिक्षित (प्रोग्राम) किया जाता है। इसके पीछे यही प्रयास होता है कि हम एक मशीन के अंदर मानव की तरह सोच कर निर्णय लेने की क्षमता विकसीत कर सके।
उदाहरण के तौर पर शतरंज के खेल मे आप बिसात पर अपने प्रतिद्वंदी के मोहरो की जमावट का अध्ययन कर उनके द्वारा चली जा सकने वाली आगामी चालों का विश्लेषण कर और अपना नफा नुकसान सोचकर कौनसा मोहरा कहाँ चलना है इसका निर्णय लेते है। जितना गहरे उतर कर आप सोच पाएंगे उतने ही आपकी जीत की संभावना बढ़ती जाती है। हर चाल के बाद खिलाड़ी यही क्रिया दोहराते है। जो खिलाड़ी जितनी दूर तक सोच पाता है उसके विजेता होने के चांस उतने ही ज्यादा होते है।
इसी तरह जब आप कंप्यूटर के साथ शतरंज खेलते है तो आपके द्वारा चली गई चाल की प्रतिक्रिया स्वरूप कंप्यूटर मशीन आपके सभी मोहरो का अवलोकन कर उनके द्वारा चली जा सकने वाली चालों का विश्लेषण करके स्वयम यह निर्णय लेती है कि उसको कौनसी चाल चलनी है। वह यह निर्णय उसको पहले से दिये गए प्रोग्राम या प्रशिक्षण पर निर्भर करती है। अगले चरण में मशीन को अपनी गलतियां याद रखना और उनको ना दोहराना सीखाया जाता है। इस तरह मशीन की बुद्धि उत्तरोत्तर विकसित होती जाती है।
आईये इसको और गहरे समझने का प्रयास करते है। समझते हैं कि इंसानों के सीखने की प्रक्रिया या प्राकृतिक बुद्धिमत्ता कैसे काम करती है। आपको निश्चित ही यह याद होगा कि अपने बाल्यकाल में आपने किस तरह से घर आए मेहमानो का अभिवादन करना सीखा था। बच्चा उसके बड़ों द्वारा दी गई शिक्षा के आधार पर यह निर्णय लेता है कि किससे हाथ मिलाना है, किसके गले मिलना है, किसको दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करना है और किसके चरण स्पर्श करना है। अब मान लीजिये कि बच्चे के चार ताऊजी है और आपने उसको किसी एक ताऊजी जो भौतिक रूप से उसकी नजरों के सामने मौजूद है, उनको सम्मान देने हेतु उनके चरण स्पर्श करने को कहा। तब वो आपके बताए अनुसार उनको सम्मान देते हुए उनके चरण स्पर्श करता है। भविष्य मे किसी दूसरे मेहमान के घर आने पर जब आप उसको बताते है कि यह सज्जन भी तुम्हारे ताऊजी है तो उसका मस्तिष्क यह सोच लेता है कि ताऊजी होने के नाते यह व्यक्ति भी उसी सम्मान का अधिकारी है जो मैंने पहले ताऊजी को दिया था और वो बच्चा स्व्यम यह निर्णय ले लेता है कि उसे इनके भी चरण स्पर्श करना है। हम जानते है कि भविष्य मे यही सम्मान वो तीसरे और चौथे ताऊजी को भी देगा। बच्चे का यह व्यवहार प्राकृतिक बुद्धिमता है और इसी तरह से बुद्धिमता पूर्ण निर्णय लेने के लिए किसी मशीन को प्रशिक्षित करना कृत्रिम बुद्धिमत्ता है।
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