हँसते हँसते कट जाए रस्ते । ईमानदारी से यूंही ज़िंदगी चलती रहे ।। ख़ुशी मिले या ग़म । ईमानदारी नहीं छोड़ेंगे हम ।। चाहे भूखे रहे हम ।। ईमानदारी का नशा,दुनिया का सबसे महंगा नशा होता है,इस नशे में इंसान भूखा रहता है फिर भी यह नशा सिर चढ़कर बोलता है,यह नशा भी अजीब होता है,इस नशे के आदि ज़्यादातर आम ग़रीब इंसान होते है,इस नशे से नेता, अभिनेता और अधिकारी दूर भागते हैं,अगर यह नशा उनके सिर चढ़कर बोलेगा, तो इन बेचारों कि तिजोरियां एवं जेबे खाली की खाली रह जाएंगी, शायद ऊपर वाले ने ईमानदारी के सांचे हमारे देश के लिए बहुत कम बनाए हैं,अगर कुछ ईमानदारी के सांचे बनाए है,तो इन सांचो में ग़रीब एवं मध्यम वर्गीय लोगों को ही ढ़ाल कर हमारे देश की धरती पर भेजता है,आप इन इमानदारी के नशेलो को बहुत आसानी से देख कर समझ जाएंगे,बिना ब्रांड के सादे कपड़े,बिना इस्त्री के कपड़े,फटे कपड़े,गंदे कपड़े,पैबंद लगे हुए कपड़े,यही होती है इन ईमानदारी के नशेलो की पहचान। आइए आपको ईमानदारी के नशेलो से मिलवाते हैं । भोपाल के राम भरोसे,जब से उसने होश संभाला तब से अपने परिवार की कंगाली के ही दर्शन किए, उसको विरासत में केवल और केवल इमानदारी मिली, जिसे उसने बख़ूबी से संजोए रखा है,ऑटो रिक्शा चलाने वालों का पेशा बड़ा बदनाम है,अक्सर लोगों की किराए को लेकर बहस ऑटो ड्राइवर से होती है,लोग इनको 10 20 रुपए के लिए चोर तक बना देते हैं,अगर कहीं का किराया 50 रुपए होता है,और यह उन से 70 रुपए ले ले,तो मामला थाने तक पहुंच जाता है,पर पांचों उंगलियां बराबर नहीं होती,बहुत सारे मेहनतकश गरीब ड्राइवरों ने ऐसी मिसाल पेश की है,जो सुनता है,वह भी चकित हो जाता है । भोपाल के नायक राम भरोसे जो सुबह से किराए का ऑटो लेकर निकलते हैं, सवारी के लिए दर-दर भटकते हैं,उसको मालूम है,अगर सवारिया नहीं मिली तो शाम को ऑटो मालिक को ऑटो का किराया कैसे दे पाएंगे और रात को बच्चे शायद फिर से भूखे सो जाएंगे,इसी गुन तारे में वह ऑटो लेकर सवारियों का इंतजार कर रहे थे,भोपाल के अशोका गार्डन इलाके में उनको तीन सवारियां मिली जिनको भोपाल स्टेशन जाना था,बार-बार राम भरोसे से कह रहे थे,ऑटो तेज़ चलाओ ट्रेन का टाइम हो गया है, राम भरोसे ने उनको भोपाल स्टेशन छोड़ा,जल्दबाजी में सवारी अपना एक बैग ऑटो में छोड़कर स्टेशन की ओर चले गए, राम भरोसे ने देखा ऑटो में सवारी अपना बैग छोड़कर चले गए है, वह थोड़ी देर तक ऑटो में बैठकर सवारियों का इंतजार करता रहा, जब सवारियां वापस ना आई तो रामभरोसे वह बैग लेकर भोपाल के बजरिया थाने पहुंचा और उसने पुलिसकर्मियों को बताया कि उसके ऑटो में एक सवारी यह बैग छोड़ कर चले गए जब पुलिस वालों ने उसके बैग को खोलकर देखा तो सब पुलिस वालों के होश उड़ गए,उस बैग के अंदर तकरीबन तीन लाख रुपए नगद और तकरीबन पांच तोला सोने के जेवर रखे हुए थे । सवारियों को बीना स्टेशन के पास पता चला कि वह एक बैग ऑटो में भूल आए हैं,वह लोग बीना स्टेशन पर उतरे और उन्होंने टैक्सी पकड़ कर वापस भोपाल आकर जीआरपीएफ थाने में ऑटो ड्राइवर की शिकायत दर्ज करवाई,उन सवारियों को यह लग रहा था,ऑटो ड्राइवर वह बैग लेकर रफूचक्कर हो गया होगा, जीआरपी पुलिस ने सवारियों से बोला आप स्टेशन के पास बजरिया थाने जाए वहां पर उस ऑटो ड्राइवर की शिकायत दर्ज करवाएं,जैसे ही वह सवारी बजरिया थाने पहुंची,और थाना प्रभारी से अपने बैग के गुम होने की शिकायत दर्ज करवाने के लिए आवेदन दिया,तो थाना प्रभारी ने उनको वह काला बैग दिखाया और पूछा कि यह आपका बैग है,उस बैग को देखकर उनकी जान में जान आई, जब थाना प्रभारी ने सवारियों से पूछा कि आप के बैग में क्या-क्या है,आप बताएं, तो उन्होंने सब चीज़ों के बारे में विस्तृत तरीके से थाना प्रभारी को बताया,थाना प्रभारी ने राम भरोसे ऑटो ड्राइवर को बुलाया और ड्राइवर से सवारियों की पहचान करवाई,तो यह वही सवारियां थी,जो अपना बैग ऑटो में भूल कर चले गए थे,इस भाग दौड़ में राम भरोसे ऑटो नहीं चला पाए और उनके दिन भर की मेहनत ज़ाया चली गई । यह घटना त़करीबन 10 वर्ष पुरानी है, आइए हम आपको बताएं राम भरोसे के परिवार में कौन-कौन रहता था है, बूढ़ी माँ जो कई महीनों से अपने आँखों के चश्मे का इंतजार कर रही है,बेटा राम भरोसे कई महीनों से माँ को आश्वासन दे रहा है,माँ बहुत जल्दी आपका चश्मा ले आऊंगा उनका पांच साल का बेटा,जो रोज़ पिता से बल्ला और गेंद की फरमाइश करता है,पर राम भरोसे कई महीनों से टाल रहे हैं,क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं है की वह बच्चे को बैट बॉल दिला सके, उनकी बेटी जो दस वर्ष पूर्व पांचवी कक्षा की छात्र हुआ करती थी, रोज़ अपनी माँ से स्कूल की फीस के बारे में बोलती थी पर राम भरोसे स्कूल की फीस जमा नहीं कर पा रहे थे,क्योंकि रामभरोसे के पास इतना पैसा नहीं था कि वे बच्ची के स्कूल की फीस जमा करा सकें । वही हम सवारियों के बारे में आपको बताएं यह सवारिया भोपाल से दिल्ली अपनी बेटी की शादी करवाने के लिए जा रहे थे,उस बैग में उनकी बेटी की शादी के लिए पैसे और जेवर रखे थे । अगर राम भरोसे यह बैग लेकर चुपचाप घर चले जाते तो ना सवारियों को उनका नाम मालूम था,ना ही ऑटो का नंबर, पर रामभरोसे को ईमानदारी विरासत में मिली थी,उसके ज़मीर ने उसे इजाज़त नहीं दी कि वह बैग को घर लेकर जाए । ऐसे होते हैं ईमानदारी के नशेले । काश हमारे नेता,मंत्री और अधिकारी राम भरोसे जैसे बन जाए, इन नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों पर भी ईमानदारी का नशा चढ़ जाए यकीन मानिए अगर ऐसा हो जाता है तो फिर से हमारा देश सोने की चिड़िया कहलाने लगेगा । ईमानदारी महँगा शौक है साहब । जो सब के बस की बात नहीं है ।। मोहम्मद जावेद खान ,संपादक ,भोपाल मेट्रो न्यूज़ ये लेखक के अपने विचार है I
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