न्यायालय यह वह जगह है जहां सबका विश्वास बना हुआ है। जब भी कही विवाद होता है तो व्यक्ति एक दूसरे को यही कहते है "आई विल सी यू इन कोर्ट" याने "मैं तुझे कोर्ट में देख लूंगा" एक और बात कहते हैं किस न्यायालय में देर है पर अंधेर नहीं। हम आए दिन मीडिया द्वारा यह पढते, सुनते और देखते आए हैं कि 10-20-40 या 60 साल बाद कोर्ट का फैसलाआया। जैसे हमारी तबीयत खराब होती है तो हमें तुरंत कड़वी या मिठी दवाई की जरूरत होती है ताकि हम जल्दी से जल्दी ठीक हो जाए। ठीक उसी तरह प्रार्थी जब कोर्ट में आवेदन लगाता है तब वह किसी दुख से पीड़ित रहता है और कुछ दुख से मुक्ति चाहता है। परंतु जब उसे न्याय मिलने के लिए बरसों इंतजार करना पड़ता है तो कई बार प्रार्थी की मृत्यु भी हो जाती है बाद में उसके बच्चों को न्याय मिलता है। प्रॉपर्टी विवादों में कई बार 40- 50 -60 साल बाद फैसले आते हैं जब तक व्यक्ति और परिवार की पूरी जिंदगी बदल जाती है। सभी विवाद के फैसले की एक मियाद तय होना चाहिए वरना ऐसे लंबे लंबे समय से जब कोर्ट के फैसले आते हैं तो व्यक्ति की जिंदगी तितर-बितर हो जाती है। बरसों तक कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाना वकील आदि की फीस यदि कहीं बाहर रहता है तो वहां से कोर्ट तक आना जाना यह सब खर्च करते करते भी आदमी की जिंदगी सूख जाती है। अतः न्याय शीघ्र अति शीघ्र होना चाहिए ताकि उसका फल व्यक्ति अपने उचित समय की जिंदगी में देख सकते हैं।
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