चैट-जीपीटी, बार्ड और इनके जैसे अन्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित जनरेटिव बॉट प्रणालियों की क्षमताओं को सोशल मीडिया, दूर संचार, दूरदर्शन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और अन्य संचार माध्यमों में कुछ इस तरह से बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है जैसे कि यह बॉट सब कुछ अपने आप कर सकता है, जैसे कि उसका स्वयं का मस्तिष्क बन चुका है, जैसे कि उसकी अपनी विचारधारा है, जैसे कि वो हर सवाल का सही जवाब दे सकता है, जैसे कि यह एक मानव बुद्धि से भी बढ़कर बुद्धिमान मशीन है।
दरअसल ऐसा है नहीं, ये बॉट एक मशीन मॉडल मात्र है। जीपीटी का फुल फॉर्म ही जेनरेटिव प्रि-ट्रेंड ट्रांसफार्मर है जिसका मतलब होता है कि पहले से सिखाए या स्टोर किए गए पाठों के आधार पर वह नया पाठ बनाता है लेकिन पता नहीं क्यों यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि ये एक मनुष्य की तरह सोच कर स्वयं अपनी बुद्धि से नवीन पाठों का निर्माण कर रहे है।
लोगों के दिमाग में यह भ्रम कुछ इस कदर घर कर चुका है कि जैसे ही यह खबर सामने आई कि गूगल के बॉट “बार्ड” ने एक गलत जवाब दिया है, तो लोगों की भावनाएं इस कदर आहत हुई कि गूगल की कंपनी अल्फ़ाबेट के शेयर धड़ाधड़ गिरने लगे और कंपनी को 120 अरब डॉलर यानी करीब 991 हजार 560 करोड़ रुपये का भारी नुकसान उठाना पड़ा।
अब बात करते हैं चैट-जीपीटी की बुद्धि की, तो चैट जीपीटी से आप भजिए बनाने की विधि पूछिए तो वो आपको सही तरीके से भजिए या पकौड़े बनाने के लिए सामग्री और विधि दोनों बताएगा क्योंकि यह जानकारी इसके संग्रह में पहले से मौजूद है। अब आप इससे पूछिए कि क्या मैं इस भजिए के घोल मे चाँवल का आटा मिला सकता हूँ तो वो कहेगा हाँ इसको मिलाने से भजिए अधिक कुरकुरे बनेगे। लेकिन जब इससे यह पूछा गया कि क्या मैं भजिए के इस घोल में अंडे मिला सकता हूँ तो यह कनफ्यूज हो जाएगा क्योंकि आमतौर पर ऐसा किया नही जाता है और इसके प्रशिक्षण मॉडल में यह जानकारी मौजूद नहीं है। अब आप इससे अंडे के भजिए बनाने की विधि पूछिए तो यह आपको अंडे को पीसकर मैदा, सूजी और मसालों के साथ मिलाने को कहेगा। जबकि हम सभी यह जानते हैं कि अंडा पकौड़ा उबले अंडे को बेसन के घोल मे डालकर बनाया जाता है।
इसी तरह कोई भी चैट बॉट यहाँ तक कि बहुचर्चित चैट जीपीटी भी हर सवाल का सटीक उत्तर नही दे सकता है। लेकिन अपने निजी स्वार्थों के चलते और कृत्रिम बुद्दिमता के तेजी से बढ़ते बाजार में अग्रणी रहने की दौड़ में सारे टेक दिग्गज हर संभव तरीका आजमाने में लगे है। बार्ड की गलती के बारे में खबर आने के बाद अल्फाबेट के शेयरों में करीब 8.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई थी। खबर यह भी है कि इस हादसे के बाद माइक्रोसॉफ्ट के शेयरों मे 3% की तेजी दर्ज की गई। यह तो बस एक शुरुआत मात्र है आगे चलकर तकनीक के इस व्यापक बाजार में और भी खिलाड़ी आएंगे और तकनीक का घमासान युद्ध देखने को मिलेगा।
वैसे तो इस बात में कोई दो मत नहीं है कि ये चैट बॉट आधुनिक तकनीक का बेमिसाल कमाल हैं। लेकिन हमें यह समझने की जरूरत है कि जिस तरह दर्शकों से भरे हाल में एक जादूगर जब अपनी कला का प्रदर्शन करता है तब यह जानते हुए भी कि जादू जैसी कोई चीज नहीं होती, दर्शकों को यह विश्वास हो जाता है कि उस जादूगर के पास कोई दिव्य शक्ति है। उसी तरह हमें यह विश्वास दिलाया जा रहा है कि ये बॉट किसी मनुष्य की तरह सोचने और व्यवहार करने में निपुण है और यह जानते हुए भी कि अभी तक मानवीय भावनाओ या बुद्धि का मशीनीकरण करना संभव नही हुआ है हम यह मान ले रहे है कि ये बॉट सब कुछ या कुछ भी सटीकता से बताने में सक्षम है।
हम जब जादूगर के उस जादू के पीछे की तकनीक को समझ जाते हैं तो हमें लगता है कि यह एक हाथ की सफाई मात्र या कोई वैज्ञानिक तथ्य है। इसी तरह ये बॉट भी इंसान द्वारा बनाई गई एक मशीन मात्र हैं। जिसकी अपनी सीमायेँ हैं और यह आपको केवल उतनी ही सूचना या जानकारी दे सकते हैं जो इनको पहले से ही बताई जा चुकी है या इनको बनाते समय सिखाई जा चुकी है। सरल उदाहरण के लिए हम इनकी तुलना एक पुस्तक या भरे-पूरे पुस्तकालय से कर सकते हैं, एक पुस्तक आपको उतनी ही जानकारी दे सकती है कितनी कि उसके लेखक ने लिखी है या एक पूस्ताकलय में जाकर आप वही जानकारी पा सकेंगे जो वहाँ उपलब्ध समस्त पुस्तकों में पहले से दर्ज है। लेकिन यह अंत नही है बल्कि सितारों के आगे जहां और भी है, दुनिया की समस्त किताबों से परे भी ज्ञान है, अरबों पन्नों में दर्ज शब्दों के आगे भी जानकारीयां हैं। नयी खोज निरंतर होती रहती है और नवीन सूचनाए लगातार जन्म लेती रहती हैं।
इन चैट बाटों द्वारा दी गई जानकारी भ्रमपूर्ण या गलत साबित हो जाने से एक बड़ा संभावित खतरा सामने आया है कि ये बॉट अपने निर्माताओं के नियंत्रण में है और ये आपको वही जवाब देंगे जो इसके निर्माता आपको बताना चाहते हैं। जैसे कि एक पुस्तक आपको वही जानकारी देगी जैसा लेखक ने लिखा है। जैसे एक लेखक के अपने पूर्वाग्रह हो सकते है वैसे ही इस तकनीक के निर्माण कर्ताओं के भी पूर्वाग्रह हो सकते हैं। यहां यह समझना भी बहुत जरूरी है कि बॉट विकसीत करने वालों के निहित स्वार्थ और उद्देश्य क्या है। यह तो तय है कि ये बॉट एक निष्पक्ष और इमानदार मशीन नहीं है और इसके द्वारा उत्पन्न किए जा रहे विचारों पर सतत निगरानी और कड़ा नियंत्रण अति आवश्यक है अन्यथा यह लोगों को दिग्भ्रमित कर अपनी मनचाही दिशा में ले जा सकता है।
वर्तमान में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी निर्भरता जिस तरह से कंप्यूटर, इन्टरनेट, गूगल, चैट-जीपीटी आदि पर बढ़ती जा रही है तो वह दिन दूर नहीं जब ये अति क्षमतावान कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लैस प्रणालीयां आपको पूर्वाग्रह से ग्रसित जानकारी प्रदान कर आपके सोचने की दिशा को बदल सकती है। यहाँ तक कि ये आपकी सोच को अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए नियंत्रित भी कर सकने में सक्षम हो सकती है। ये किसी एक बड़े समूह की विचारधारा को किसी के पक्ष या विपक्ष में सहूलियत से मोड सकती है। इनके द्वारा प्रदाय की जा रही जानकारी और सूचनाओ के आधार पर जनता की सोच को मनचाही दिशा देकर सरकारों को बनाने या गिराने का गंदा खेल खेला जा सकता है। किसी व्यक्ति विशेष या समूह के प्रति नफरत फैलाने का काम किया जा सकता है यहाँ तक कि भ्रामक सूचनाए फैलाकर युद्ध भी शुरू करवाया जा सकता है। इन सबको रोकने के लिए इस तरह के सूचना प्रदान करने वाले आविष्कारों पर कडा नियंत्रण बेहद जरूरी है। समय आ गया है कि इन सूचनाओ और जानकारी की सत्यता के परीक्षण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय नियामक आयोग जैसा एक संस्थागत ढांचा बनाने के बारे में गंभीरता से सोचा जाय।
बगैर किसी संस्थागत नियंत्रण के जानकारी और सूचना के लिए इन मशीनों पर अत्यधिक निर्भरता मानव सभ्यता के अस्तित्व लिए एक बड़ा खतरा साबित हो सकती है।
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