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दलितों को साधते ‘‘शिव‘‘ और अपनों को एकजुट करते ‘‘कमल‘‘

Updated on 10-04-2022 11:10 AM
2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ पूरे एक्शन मोड में आ गए हैं। कमलनाथ ने उन नेताओं को जो अपने आपको कांग्रेस में उपेक्षित महसूस कर रहे थे उन्हें फिर से सक्रिय करने की पहल करते हुए एक 22 सदस्यीय दिग्गज नेताओं की राजनीतिक मामलों की समिति गठित की है जो आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए मुद्दों की तलाश करते हुए रणनीति बनायेगी। इस समिति में उन नेताओं को शामिल किया गया है जिनकी अपनी मजबूत जमीनी पकड़ है। इस समिति की बैठक हर पखवाड़े होगी। ऐसा समझा जाता है कि हाल ही में लम्बे समय से प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में अपने आपको  हाशिये पर महसूस कर रहे पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव और राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से नई दिल्ली में हुई मुलाकात के बाद इस समिति का गठन किया गया है। यह समिति हाईकमान के इशारे पर ही गठित की गयी है ऐसा कांग्रेसी गलियारों में माना जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी जेट गति से न केवल विभिन्न वर्गों के हितों में फैसले करते हुए लाभार्थियों का एक बड़ा वोट बैंक तैयार कर रहे हैं बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर सामाजिक न्याय पखवाड़ा के तहत दलितों के बीच भाजपा की पैठ बढ़ाने और उन्हें फिर से पूरी मजबूती से भाजपा से जोड़ने के अभियान में भिड़ गए हैं। इस पखवाड़े में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा और मुख्यमंत्री का विशेष जोर अन्य लाभार्थी वर्गों के साथ ही दलित मतदाताओं को भाजपा की ओर आकर्षित करने पर है। इस प्रकार अब आने वाले विधानसभा चुनावों तक दोनों ही पार्टियां सड़कों पर और मतदाताओं को अपने से जोड़ने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते नजर आएंगी।
    15 साल बाद बनी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के दलबदल के कारण डेढ़ साल में ही गिरने के बाद से पहली बार प्रदेश में कांग्रेस की एक बड़ी बैठक का आयोजन किया गया जिसमें चार पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, दो पूर्व मुख्यमंत्री और 22 पूर्व मंत्रियों ने भाग लिया। संभवतः इसका आयोजन इसलिए किया गया था कि यह संदेश दिया जाए कि पार्टी पूरी तरह एकजुट है और उसमें अब कोई मतभेद या गुटबंदी नहीं हैै। नेतृत्व को लेकर बार-बार उठने वाली आवाजों और विपक्ष के तानों को बोथरा करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के इस कथन का कि कमलनाथ ही पार्टी का चेहरा हैं और उनके नेतृत्व में ही हम 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, पर तीन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, कांतिलाल भूरिया और सुरेश पचौरी के साथ ही अजय सिंह ने भी सहमति जताई। वैसे कांग्रेस में चेहरा घोषित कर चुनाव मैदान में जाने की परम्परा नहीं रही, लेकिन जब पार्टी सत्ता में होती है तो मुख्यमंत्री और जब विपक्ष में होती है तो प्रदेश अध्यक्ष ही पार्टी का चेहरा माने जाते हैं। किसी अन्य प्रभावशाली नेता का महत्व कम न हो इसलिए उसे चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बना दिया जाता है। यदि कमलनाथ संगठनात्मक चुनाव के बाद अध्यक्ष बनेंगे तो फिर निश्चित तौर पर चेहरा वही होंगे। अभी तक कांग्रेसी गलियारों में भोपाल से लेकर दिल्ली तक यह धारणा बन गयी थी कि कांग्रेसी राजनीति में जो भी हो रहा है वह अकेले कमलनाथ या उनके कुछ अन्य विश्वासपात्र लोगों द्वारा ही किया जा रहा है, इस प्रकार से लगभग पूरी तरह एकाधिकारी उनका हो गया है। इसके चलते कुछ नेता अपने आपको उपेक्षित मानते हुए अनमने चल रहे थे। कमलनाथ ने भी शायद यही महसूस किया इसलिए उन्होंने एक बैठक बुलाई और उसके बाद आनन-फानन में एक-दो दिन के भीतर ही समिति गठित कर डाली और यही समिति अब मिलकर सारे फैसले करेगी। भविष्य में होने वाली बैठकों के सुझावों पर कितना और किस ढंग से अमल करना है यह तो कमलनाथ पर ही निर्भर करेगा क्योंकि फिलहाल वह दोनों प्रमुख पदों पर  हैं। अब यह तो कुछ समय बाद ही यह पता चल सकेगा कि कमलनाथ की अगुवाई में सामूहिक नेतृत्व के तहत पार्टी को सक्रिय कर मैदान में ले जाने की जो पहल हुई है वह कितनी कारगर साबित होती है। कमलनाथ की अध्यक्षता में बनी इस समिति में विभिन्न वर्गों, अंचलों और गुटीय संतुलन का भी ध्यान रखा गया है। पहली बार चुने गये किसी भी विधायक को इस समिति में स्थान नहीं दिया गया है।
सियासी बिसात पर भाजपा 
        मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार और संगठन अब सामाजिक न्याय के क्षेत्र में संयुक्त रुप से एक बड़ा अभियान चलाने वाले हैं और जिसका केंद्रीय फोकस विभिन्न योजनाओं के हितग्राहियों को पार्टी की विचारधारा से जोड़ना है। शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों पार्टी के विधायकों व सांसदों से वर्चुअल संवाद स्थापित कर उन्हें हितग्राहियों को पार्टी से जोड़ने के टिप्स दिये। इस दौरान भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश और प्रदेश  भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा भी वर्चुअली जुड़े हुए थे। सियासी बिसात जो भाजपा बिछाने जा रही है उसके तहत सामाजिक न्याय अभियान तथा कांग्रेस का गढ़ मानी जा रही सीटों पर ध्यान देने व उन पर जीत का परचम फहराने और 14 अप्रैल अम्बेडकर जयंती के मौके पर बड़े पैमाने पर कार्यक्रम आयोजित करने का फैसला किया गया है। सामाजिक न्याय पखवाड़ा के तहत आयुष्मान योजना, पीएम आवास हितग्राही कार्यक्रम, नल-जल योजना, प्रधानमंत्री किसान योजना, अनुसूचित जाति के स्कूलों और कोरोना के वैक्सीन वाले हितग्राही व गरीब कल्याण अन्न योजना पर विशेष जोर दिया गया है। भाजपा ने जो तीन स्तरीय कार्ययोजना बनाई है उसमें दलित, कमजोर वर्ग और हारी हुई सीटों व बूथ मैनेजमेन्ट पर फोकस करना तय किया गया है। विधानसभा सीटों को तीन श्रेणियों में रखा गया है और भाजपा माइक्रो स्तर तक अब काम करेगी जिसकी जिम्मेदारियां नेताओं को दी जायेगी। भाजपा ने ऐसी 50 से अधिक सीटें चिन्हित की हैं जो या तो कमजोर हैं या जिन्हें वह दुष्कर मानती है। कमजोर सीटों मेे 2018 में हारी हुई सीटों के साथ ही उन सीटों को शामिल किया गया है जिन्हें उपचुनाव में पार्टी नहीं जीत पाई। पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि दलित वोट ग्वालियर-चम्बल और मध्यभारत अंचल में अपेक्षाकृत भाजपा की जगह कांग्रेस को अधिक मिला है। दलितों और आदिवासियों के बाहुल्य वाले क्षेत्रों में भाजपा की तुलना में कांग्रेस की राह कुछ आसान रही है इसलिए इन अंचलों में अपनी राह आसान बनाने की मशक्कत भाजपा करने जा रही है।
और यह भी
         पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में फिलहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का समूचा ध्यान इस समय खैरागढ़ विधानसभा उपचुनाव पर केंद्रित  है। डॉ. रमन सिंह की मदद के लिए मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चुनाव प्रचार करते हुए भूपेश बघेल सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि जब तक यहां डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री थे तब तक छत्तीसगढ़ विश्वसनीय विकास की ग्रोथ के रुप में पहचाना जाता था किन्तु मन में दर्द होता है कि अब कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार के कार्यकाल में छत्तीसगढ़ भ्रष्टाचार की ग्रोथ के लिए पहचाना जाता है, यहां विकास खत्म हो गया है तथा भ्रष्टाचार का राज है। छत्तीसगढ़ से अपना लगाव प्रदर्शित करते हुए शिवराज ने कहा कि छत्तीसगढ़ से मेरा भावनात्मक रिश्ता है और छत्तीसगढ़ मेरे दिल में बसता है। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोप लगाया कि डॉ. रमन सिंह ने किसानों को सिर्फ छलने का काम किया था जबकि कांग्रेस सरकार बनने की बाद हमने किसानों का कर्ज माफ किया। किसानों से हमने समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की तथा अन्तर की राशि किसानों को राज्य सरकार ने दी। किसानों से हमने जो वायदा किया था उसे पूरा किया गया है। खैरागढ़ में जुबानी जंग भी काफी तीखी हो गयी है और शिवराज के तीखे शाब्दिक हमलों का प्रत्युत्तर देते हुए भूपेश बघेल ने पलटवार करते हुए कहा कि काका अभी जिन्दा है, काका के सामने मामा कहां टिकिही ? वो आके अपने और रमन सिंह के घोटालों के बारे में बात करें। छत्तीसगढ़ी में उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में जतका हमन धान के कीमत देथन ओतका दे सकते हो तो बता दें।
अरुण पटेल, लेखक, प्रबंध संपादक सुबह सवेरे      (ये लेखक के अपने विचार है)

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