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अध्ययन में खुलासा, देश के लोगों की औसत में आयु में हुई बढ़ोत्तरी

Updated on 18-10-2020 09:34 PM
नई दिल्ली । ताजा अध्ययन में पता चला है कि भारत में 1990 से लेकर पिछले तीन दशक में जीवन प्रत्याशा 10 वर्ष से अधिक बढ़ी है, लेकिन इन मामलों में राज्यों के बीच काफी असमानता दिखाती है। अध्ययन में विश्व भर के 200 से ज्यादा देशों और क्षेत्रों में मृत्यु के 286 से अधिक कारणों और 369 बीमारियों की समीक्षा की गई। अध्ययन के अनुसार वर्ष 1990 में भारत में जीवन प्रत्याशा 59.6 वर्ष थी जो 2019 में बढ़कर 70.8 वर्ष हो गई। केरल में यह 77.3 वर्ष हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में 66.9 वर्ष है। अध्ययन में शामिल गांधीनगर के ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ’ के विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में ‘स्वस्थ जीवन प्रत्याशा’ बढ़ना उतना आकस्मिक नहीं है जितना जीवन प्रत्याशा बढ़ना क्योंकि, लोग बीमारी और अक्षमताओं के साथ ज्यादा वर्ष गुजार रहे हैं। 
अध्ययन के सह-लेखक ने कहा, ‘‘भारत सहित लगभग हर देश में हम जो मुख्य सुधार देख रहे हैं वह सक्रामक रोगों में कमी और दीर्घकालिक (क्रॉनिक) बीमारियों में तेजी से बढोतरी है। भारत में मातृ मृत्यु दर बहुत अधिक हुआ करती थी, लेकिन अब इसमें कमी आ रही है। हृदय संबंधी बीमारियां पहले पांचवें स्थान पर थीं और अब यह पहले स्थान पर हैं और कैंसर के मामले बढ़ रहे है।’’ वैज्ञानिकों के अनुसार वायु प्रदूषण के बाद उच्च रक्तचाप तीसरा प्रमुख खतरनाक कारक है जो भारत के आठ राज्यों में 10-20 प्रतिशत तक स्वास्थ्य हानि के लिए जिम्मेदार है। अध्ययन से पता चलता है कि वायु प्रदूषण की वजह से करीब 1.67 मिलियन मौत हुई। इसके बाद हाई ब्लड प्रेशर, (1.47 मिलियन), तंबाकू के उपयोग से (1.23 मिलियन), खराब डाइट से (1.18 मिलियन) और हाई ब्लड शुगर से (1.12 मिलियन) मौ हुई है। 
एक उदाहरण देकर शोधकर्ताओं ने कहा कि भारत में कुल रोग का 58 प्रतिशत अब गैर-संचारी रोगों के कारण है, 1990 में 29 प्रतिशत से,जबकि एनसीडी के कारण समय से पहले होने वाली मौतों में 22 से 50 प्रतिशत तक दोगुनी से अधिक हुई है। अध्ययन में पाया गया कि पिछले 30 वर्षों में भारत में मोटापा, हाई ब्लड शुगर जैसे पुरानी बीमारियों,से ज्यादा नुकसान हुआ है। वैज्ञानिकों के अनुसार, हाई ब्लड प्रेशर वायु प्रदूषण के बाद तीसरा प्रमुख जोखिम कारक है, जो भारत के आठ राज्यों में सभी स्वास्थ्य हानि के 10-20 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है, मुख्य रूप से दक्षिण भारत में इसके अधिक मरीज हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि दुनिया भर में स्वास्थ्य के लिए सामाजिक और आर्थिक विकास के महत्व की अत्यधिक मान्यता है। स्वास्थ्य प्रगति पर सामाजिक और आर्थिक विकास के अत्यधिक प्रभाव को देखते हुए, आर्थिक विकास को गति देने मंत्र अपनाना होगा।


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