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अजब हैं,गज़ब है,भारत के यह आम लोग,ना वह अमीर होते हैं,नाही ग़रीब,जिनको आम भाषा में मध्यम वर्गीय कहा जाता है..

Updated on 23-05-2021 10:18 PM
हँसते हंसत कट जाए रस्ते, 
 ज़िन्दगी यूँ ही चलती रहे। 
      खुशी मिले या गम, 
          बदलेंगे ना हम, 
     दुनिया चाहे बदलती रहे।। 
अजब हैं,गज़ब है,भारत के यह आम लोग,ना वह अमीर होते हैं,नाही ग़रीब,जिनको आम भाषा में मध्यम वर्गीय कहा जाता है,मध्यवर्गीय लोगों का मूल मंत्र मेहमान जो हमारा होता है,वह जान से प्यारा होता है,थोड़े से पैसे से हमारा गुज़ारा होता हैं,मध्यम वर्गीय लोगों कैसे अपनी जिंदगी गुज़ारते हैं,मैं इन चंद लाइनों में बताने की कोशिश करता हूँ । किसी ने खूब लिखा है,बिहार की राजधानी पटना,वहां के एक होटल की घटना,एक बुजुर्ग आया,साथ में अपनी पत्नी को भी लाया,बुजुर्ग ने खाना खाया,बुजुर्ग की पत्नी ने पंखा हिलाया,फिर बुजुर्ग की पत्नी ने खाना खाया,बुजुर्ग ने पंखा हिलाया,यह सब देख कर वेटर शर्माया,शर्माते हुए वेटर ने पूछा,आप दोनों में इतना प्रेम है,तो खाना साथ में क्यों नहीं खाया,इस पर बुजुर्ग ने फ़रमाया,बेटा तेरा सवाल नेक है पर क्या करें हम, हमारे पास दाँतो का सेट एक है ।
जो लोग हर हाल में खुश रहते हैं वह लोग मध्यवर्गीय कहलाते हैं, बड़े संतोष प्रिय हर हाल में खुश रहने वाले थोड़े में अपना गुजारा करने वाले,मध्यमवर्गीय परिवारों में कैंडल लाइट डिनर अक्सर होता है,जब घर की लाइट जाती है,मध्यम वर्गीय परिवारों के पास ना इनवर्टर होता ना जरनैटर, खाने का समय होता है,तो फौरन मोमबत्ती जला दी जाती है,पूरा परिवार मोमबत्ती की रोशनी में भोजन का आनंद लेता है,इसी कैंडल लाइट डिनर के लिए पैसे वाले लोग हजारों रुपए खर्च करते हैं,उनको इतना सुख नहीं मिलता जितना मज़ा मध्यम वर्गीय परिवार को कैंडल लाइट डिनर में आता है।
भोजन के दौरान पत्नी द्वारा नई-नई फरमाइश और पतिदेव बखूबी फरमाइशो को टालते हुए, बेटी पिता से कहती है,पिता जी अगर खाने के साथ कोल्ड ड्रिंक होती तो मज़ा आ जाता,पिता बेटी को समझाते हुए,मुन्नी कुछ दिन इंतजार करो तुम्हारे नाना नानी आने वाले हैं,जब वह आएंगे  तुम्हारी मम्मी दाल बाफले बनाएंगी उसके साथ हम लोग कोल्ड्रिंक का भी मज़ा लेंगे,बस दो महीने के बाद गर्मियों की छुट्टी होने वाली है,गर्मी की छुट्टियों में नाना नानी आएंगे तब हम खूब मस्ती करेंगे और चौराहे पर जो चाट का ठेला लगता है,उससे हम सब पेट भर कर चाट खाएंगे, मध्यमवर्गीय परिवारों के लिये चाट का ठेला किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं होता,अगर भूले बिसरे किसी रेस्टोरेंट में चले जाएं सबसे पहले मीनू कार्ड के लिए आपस में लड़ाई होती है,हर सदस्य चाहता है,वह मीनू कार्ड पहले देखें और अपनी मनपसंद चीज़ों का ऑर्डर दे पर पापा की जेब इसकी इजाजत नहीं देती, पापा बड़ी चालाकी से मीनू कार्ड अपने हाथ में लेते हैं,मम्मी के लिए पानी पूरी जो 50 रुपए प्रति प्लेट है,बेटे के लिए डोसा जो 60 रुपए प्लेट है,और बेटी के लिए इडली का आर्डर देते हैं,वह भी 50 रुपए प्लेट है,अब हिसाब लगाते हैं,जेब में 200 रुपए हैं घर भी वापस जाना है बस का किराया चारों का 40 रुपए बचते हैं केवल 10 रुपए,मेनू कार्ड में सबसे कम रेट की चीज़ चाय थी जिसकी कीमत 10 रुपए है । ऐसे गुज़रती है,एक मध्यम वर्गीय की जिंदगी जो अपने परिवार को खुश रखने के लिए दिन भर मेहनत करता है, फिर भी अपने परिवार के सपने पूरे नहीं कर पाता। पूरी जिंदगी निकल गई कपड़ों को ऑल्टर कराते कराते अब तो कपड़ों का रंग भी उड़ने लगा है, अब शर्ट के कॉलर भी  फटने लगे हैं, दर्जी ने अब साफ मना कर दिया बाबूजी अब शर्ट का कॉलर पलट के नहीं लगा सकते क्योंकि एक बार पलट के लगा चुके हैं,अमीर लोग एक बार में जितने पैसों के कपड़े खरीदते हैं,उतने पैसों में मध्यम वर्ग के लोग पांच साल के कपड़े बना ले क्योंकि कपड़े साल में एक बार दीपावली के समय ही बनते हैं, जब बड़े बेटे के कपड़े छोटे हो जाते हैं,वह कपड़े छोटे बेटे को दे दिए जाते हैं,मध्यम वर्ग के लोगों की खुशियां भी अजीब होती है, जब बेटा का क़द पिता के बराबर हो जाता है,तो खुशी इस बात की होती है, चलो अब पिता के कपड़े बेटा भी पहन सकता है । 
अगर मध्यम वर्गीय परिवार में शादी का न्योता आ जाए तो खुशी का आलम गज़ब का होता है, शादी में 251 रुपए का लिफाफा और खाने को मिलेंगे तरह-तरह के व्यंजन एक हफ्ते पहले से शादी में जाने की तैयारियां शुरू हो जाती है,जूतों पर पॉलिश कपड़ों पर कड़क प्रेस,पिताजी तैयार होकर अलमारी से परफ्यूम की बोतल निकालते हैं,जब वह परफ्यूम को हाथ में लेते हैं तो उनको अपनी शादी की याद आ जाती है, क्योंकि 17 साल पहले पिता जी को उनकी साली जो मेरी मौसी हैं उन्होंने यह परफ्यूम की बोतल दी थी, ऐसा लगता है यह परफ्यूम की बोतल उनके बच्चों की शादी तक चलेगी क्योंकि साल में दो- चार मौके ऐसे आते हैं जब परफ्यूम की बोतल खुलती है । शादी में जाने से पहले बड़ा भाई अपने छोटे भाई को समझाता है, कौन सा खाना कितना खाना है और इन भाइयों का ज़ोर स्वीट डिश एवं आइसक्रीम  पर ज़्यादा रहता है,मम्मी और पापा का ज़ोर दही बड़ा और पनीर की सब्जी पर था,क्योंकि घर पर पनीर जब  बनता है जब रात की सब्जी बच जाती है,रात सब्जी में पनीर डालकर और तड़का देकर मिक्स वेज विद पनीर बन जाती है । यह सब मैं इसलिए लिख रहा हूँ, मैं भी एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूँ,यह सब चीजें मेरे साथ भी घटित होती रहती हैं ।
हम लोगों को समझ 
      सको तो समझो। 
 हम हैं मध्यम वर्गीय जानी।। 
    जितना भी तुम समझोगे 
     होगी उतनी हैरानी ।। 
  अपनी छतरी तुमको दे दें, 
    कभी जो बरसे पानी 
 फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।। 
मोहम्मद जावेद खान,लेखक                                                        ये लेखक के अपने विचार है I 
संपादक, भोपाल मेट्रो न्यूज़

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