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गणेश जी और अंधी बुढ़िया की कथा

Updated on 18-11-2020 05:26 PM
जय गजानन महाराज  
काफ़ी समय पहले की बात है एक गांव में एक अंधी बुढ़िया रहती थी। वह गणेश जी की परम भक्त थी। आंखों से भले ही दिखाई नहीं देता था, परंतु वह सुबह शाम गणेश जी की बंदगी में मग्न रहती। नित्य गणेश जी की प्रतिमा के आगे बैठकर उनकी स्तुति करती।भजन गाती व समाधि में लीन रहती। गणेश जी बुढ़िया की भक्ति से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा यह बुढ़िया नित्य हमारा स्मरण करती है, परंतु बदले में कभी कुछ नहीं मांगती।भक्ति का फल तो उसे मिलना ही चाहिए। ऐसा सोचकर गणेश जी एक दिन बुढ़िया के सम्मुख प्रकट हुए तथा बोले - माई, तुम हमारी सच्ची भक्त हो।जिस श्रद्धा व विश्वास से हमारा स्मरण करती हो, हम उससे प्रसन्न हैं। अत: तुम जो वरदान चाहो, हमसे मांग सकती हो।बुढ़िया बोली - प्रभो ! मैं तो आपकी भक्ति प्रेम भाव से करती हूं। मांगने का तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। अत: मुझे कुछ नहीं चाहिए। गणेश जी पुन: बोले - हम वरदान देने के लिए आए हैं। .बुढ़िया बोली - हे सर्वेश्वर, मुझे मांगना तो नहीं आता।अगर आप कहें, तो मैं कल मांग लूंगी। तब तक मैं अपने बेटे व बहू से भी सलाह मशविरा कर लूंगी। गणेश जी कल आने का वादा करके वापस लौट गए।बुढ़िया का एक पुत्र व बहू थे। बुढ़िया ने सारी बात उन्हें बताकर सलाह मांगी। बेटा बोला - मां, तुम गणेश जी से ढेर सारा पैसा मांग लो। हमारी ग़रीबी दूर हो जाएगी। सब सुख चैन से रहेंगे। बुढ़िया की बहू बोली - नहीं आप एक सुंदर पोते का वरदान मांगें।वंश को आगे बढ़ाने वाला भी, तो चाहिए। बुढ़िया बेटे और बहू की बातें सुनकर असमंजस में पड़ गई।उसने सोचा - यह दोनों तो अपने-अपने मतलब की बातें कर रहे हैं। बुढ़िया ने पड़ोसियों से सलाह लेने का मन बनाया पड़ोसन भी नेक दिल थी। उसने बुढ़िया को समझाया कि तुम्हारी सारी ज़िंदगी दुखों में कटी है। अब जो थोड़ा जीवन बचा है, वह तो सुख से व्यतीत हो जाए। धन अथवा पोते का तुम क्या करोंगी ! अगर तुम्हारी आंखें ही नहीं हैं, तो यह संसारिक वस्तुएं तुम्हारे लिए व्यर्थ हैं। अत: तुम अपने लिए दोनों आंखें मांग लो।बुढ़िया घर लौट आई। बुढ़िया और भी सोच में पड़ गई उसने सोचा - कुछ ऐसा मांग लूं, जिससे मेरा, बहू व बेटे- सबका भला हो। लेकिन ऐसा क्या हो सकता है ? इसी उधेड़तुन में सारा दिन व्यतीत हो गया।बुढ़िया कभी कुछ मांगने का मन बनाती, तो कभी कुछ, परंतु कुछ भी निर्धारित न कर सकी। दूसरे दिन गणेश जी पुन: प्रकट हुए तथा बोले - आप जो भी मांगेंगे, वह हमारी कृपा से हो जाएगा। यह हमारा वचन है। गणेश जी के पावन वचन सुनकर बुढ़िया बोली - हे गणराज, यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं, तो कृप्या मुझे मन इच्छित वरदान दीजिए। मैं अपने पोते को सोने के गिलास में दूध पीते देखना चाहती हूं।बुढ़िया की बातें सुनकर गणेश जी उसकी सादगी व सरलता पर मुस्कुरा दिए। बोले - तुमने तो मुझे ठग ही लिया है। मैंने तुम्हें एक वरदान मांगने के लिए बोला था, परंतु तुमने तो एक वरदान में ही सब कुछ मांग लिया। तुमने अपने लिए लंबी उम्र तथा दोनों आंखे मांग ली हैं।बेटे के लिए धन व बहू के लिए पोता भी मांग लिया पोता होगा, ढेर सारा पैसा होगा, तभी तो वह सोने के गिलास में दूध पीएगा। पोते को देखने के लिए तुम जिंदा रहोगी, तभी तो देख पाओगी। अब देखने के लिए दो आंखें भी देनी ही पड़ेंगी। फिर भी वह बोले - जो तुमने मांगा, वे सब सत्य होगा। इतना कहकर गणेश जी अंर्तध्यान हो गए।कुछ समय पाकर गणेश जी की कृपा से बुढ़िया के घर पोता हुआ। बेटे का कारोबार चल निकला तथा बुढ़िया की आंखों की रौशनी वापस लौट आई।बुढ़िया अपने परिवार सहित सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी।

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