इंसान की अजीबी फितरत रहती है पहले सोचता था की मैं इतना पैसा कमाओ कि मेरे सात पिड़ी को कमाने की जरूरत ना पड़े भलाई उससे उसके दादाजी के दादाजी का नाम पूछो तो नहीं मालूम होगा। उसकी एक और फितरत है मेरा नाम अमर होना चाहिए मेरे मरने के बाद भी मेरा नाम चलना चाहिए और एक और जटिल फितरत ने कई पिडियो के सुकून को बर्बाद कीया है खानदान, खानदान का नाम चलना चाहिए, खानदान का वारिस चाहिए, क्या है खानदान क्या है जाति और क्या है देश ऐसे कई तरीकों से इंसान ने अपने आप को बांट लिया। कई परिवारों में पुत्र प्राप्ति की बड़ी फितरत है उन्हें लगता है कि पुत्र है तो सब अच्छा है मरने के बाद कोई तो आग देने वाला चाहिए। इंसान की फितरत में कट्टरता भी भरी हुई है और वह धर्म रिती रिवाज अपनी सोच के प्रति इतना कट्टर होता है कि बस वही करता है जो वह सोचता है। अपने हर रोज का जीवन बड़ी कंजूसी से बिताएगा पर कहीं सार्वजनिक या धार्मिक कार्य के लिए चंदा या पैसा देने की बारी आई तो हाथ जोड़कर है इकट्ठी रकम जरूर दे देगा। कुछ लोगों की बड़ी अच्छी फितरत होती है वह अपना जीवन बड़ी मस्ती से, संगीत के साथ, प्रकृति के साथ शांति और सुकून के साथ, सादगी के साथ और जो है उसमें खुश रह कर बिताते हैं और यही फितरत सर्वोपरि है। काश ऐसी फितरत सबको लग जाए। अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्) ये लेखक के अपने विचार है I
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वर्तमान समय में टूटते बिखरते समाज को पुनः संगठित करने के लिये जरूरत है उर्मिला जैसी आत्मबल और चारित्रिक गुणों से भरपूर महिलाओं की जो समाज को एकजुट रख राष्ट्र…